सार
धर्म ग्रंथों के अनुसार, माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को षट्तिला एकादशी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। इस बार यह एकादशी 20 जनवरी, सोमवार को है।
उज्जैन. इस बार सोमवार को एकादशी होने से इस व्रत का महत्व और भी बढ़ गया है क्योंकि सोमवार भगवान शिव का दिन माना जाता है और एकादशी भगवान विष्णु की प्रिय तिथि है। 20 जनवरी को इस विधि से करें एकादशी का व्रत और पूजा-
षट्तिला एकादशी की व्रत व पूजा विधि
- षट्तिला एकादशी पर भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखना चाहिए। व्रत करने वालों को गंध, फूल, धूप दीप, पान सहित विष्णु भगवान की षोड्षोपचार (सोलह सामग्रियों) से पूजा करनी चाहिए।
- उड़द और तिल मिश्रित खिचड़ी बनाकर भगवान को भोग लगाना चाहिए। रात को तिल से 108 बार ऊं नमो भगवते वासुदेवाय स्वाहा इस मंत्र से हवन करना चाहिए। भगवान की पूजा कर इस मंत्र से अर्घ्य दें-
सुब्रह्मण्य नमस्तेस्तु महापुरुषपूर्वज।
गृहाणाध्र्यं मया दत्तं लक्ष्म्या सह जगत्पते।।
- रात को भगवान के भजन करें, अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाएं। इसके बाद ही स्वयं तिल युक्त भोजन करें। यह व्रत सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला है।
षटतिला एकादशी की कथा इस प्रकार है-
- एक बार नारद मुनि भगवान विष्णु के धाम वैकुण्ठ पहुंचे। वहां उन्होंने भगवान विष्णु से षटतिला एकादशी की कथा तथा उसके महत्व के बारे में पूछा। तब भगवान विष्णु ने उन्हें बताया कि-
- प्राचीन काल में पृथ्वी पर एक ब्राह्मण महिला रहती थी। उसके पति की मृत्यु हो चुकी थी। वह मुझमें बहुत ही श्रद्धा एवं भक्ति रखती थी। एक बार उसने एक महीने तक व्रत रखकर मेरी आराधना की।
- व्रत के प्रभाव से उसका शरीर तो शुद्ध हो गया परंतु वह कभी ब्राह्मण एवं देवताओं के निमित्त अन्न दान नहीं करती थी। अत: मैंने सोचा कि यह स्त्री वैकुण्ठ में रहकर भी अतृप्त रहेगी।
- इसलिए मैं स्वयं एक दिन उसके पास भिक्षा लेने गया। ब्राह्मण की पत्नी से जब मैंने भिक्षा की याचना की तब उसने एक मिट्टी का पिण्ड उठाकर मेरे हाथों पर रख दिया। मैं वह पिण्ड लेकर अपने धाम लौट आया।
- कुछ दिनों पश्चात वह देह त्याग कर मेरे लोक में आ गई। यहां उसे एक कुटिया और आम का पेड़ मिला। खाली कुटिया को देखकर वह घबराकर मेरे पास आई और बोली की मैं तो धर्मपरायण हूं फिर मुझे खाली कुटिया क्यों मिली?
- तब मैंने उसे बताया कि यह अन्नदान नहीं करने तथा मुझे मिट्टी का पिण्ड देने से हुआ है। मैंने फिर उसे बताया कि जब देव कन्याएं आपसे मिलने आएं, तब आप अपना द्वार तभी खोलना जब तक वे आपको षटतिला एकादशी के व्रत का विधान न बताएं।ॉ
- उस स्त्री ने ऐसा ही किया और जिन विधियों को देवकन्या ने कहा था उस विधि से षटतिला एकादशी का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उसकी कुटिया अन्न व धन से भर गई।
- इसलिए हे नारद इस बात को सत्य मानों कि जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है और तिल एवं अन्नदान करता है उसे मुक्ति और वैभव की प्राप्ति होती है।