सार
शारदीय नवरात्रि के अंतिम दिन (7 अक्टूबर) मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। मां सिद्धिदात्री भक्तों को हर प्रकार की सिद्धि प्रदान करती हैं।
उज्जैन. मां सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। इनकी दाहिनी ओर के ऊपर वाले हाथ में गदा और नीचे वाले हाथ में चक्र है। बाईं ओर के ऊपर वाले हाथ में कमलपुष्प और नीचे वाले हाथ में शंख है। देवी सिद्धिदात्री के आशीर्वाद के बाद श्रद्धालु के लिए कोई कार्य असंभव नहीं रह जाता और उसे सभी सुख-समृद्धि प्राप्त हो जाते हैं।
इस विधि से करें देवी सिद्धिदात्री की पूजा
सबसे पहले चौकी (बाजोट) पर माता सिद्धिदात्री की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें। उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका(सात सिंदूर की बिंदी लगाएं) की स्थापना भी करें। इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा माता सिद्धिदात्री सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें। तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।
ध्यान मंत्र
सिद्ध गंधर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना यदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायनी॥
अर्थात्- सिद्धि योगी, गंर्धव, यक्ष, सुर, असुर जिनकी पूजा करते हैं। सिद्धियां प्रदान करने वाली ऐसी सिद्धिदात्री देवी की मैं पूजा करता हूं।
नवरात्र के अंतिम दिन देवी सिद्धिदात्री की ही पूजा क्यों की जाती है?
नवरात्र के 8 दिनों तक जब कोई व्यक्ति भक्ति के मार्ग पर चलता है तो अंतिम दिन उसे सिद्धियां प्राप्त होती हैं, इसलिए नवरात्र के अंतिम दिन इन देवी की पूजा का विधान है। देवी सिद्धिदात्री की कृपा से साधक के अंतर्मन में ज्ञान का प्रकाश भर जाता है और उसके लिए कोई काम असंभव नहीं रह जाता। सांसारिक सुखों का त्याग करके वह ईश्वर से साक्षात्कार करने योग्य हो जाता है।
7 अक्टूबर के शुभ मुहूर्त
सुबह 9.00 से 10.30 तक- शुभ
दोपहर 1.30 से 3.00 तक- चर
दोपहर 3.00 से 4.30 तक- लाभ
शाम 4.30 से 6.00 तक - अमृत