सार
उत्तराखंड के सिद्ध शक्ति पीठ पूर्णागिरी मार्ग के उत्तर प्रदेश से प्रवेश द्वार वाले पीलीभीत जिले में भी कई प्राचीन मंदिर देवी शक्ति स्थलों के रूप में अटूट आस्था के केंद्र हैं। यहां नवरात्र में ही नहीं, भक्त वर्ष भर देवी स्वरूपों की पूजा करते हैं।
राजीव शर्मा
पीलीभीत: उत्तर प्रदेश के तराई बेल्ट पीलीभीत में नवरात्र भक्त करते हैं शक्ति स्वरूप देवियों के नौ प्रसिद्ध शक्ति पीठों पर पूजा अर्चना। यहां शक्ति स्वरूप देवियों के कई प्रसिद्ध स्थल हैं। पीलीभीत उत्तराखंड का सिद्धपीठ पूर्णागिरी का प्रवेश द्वार तो है ही, यहां शहर में नकटा दानव का वध करने वाली यशवंतरी देवी की पूजा प्राचीनकाल से होती आई है। माती-माफी में मातेश्वरी गूंगा देवी और शाहगढ़ में काली देवी विराजमान हैं। इलावांस, बराही और भगौतीपुर के देवी मंदिर भी प्रसिद्ध हैं। पूरनपुर में लाइनपार स्थित देवीस्थान मंदिर खास है। तकिया दीनारपुर स्थित कालीमठ और यहां पर ही नवस्थापित पीतांबरा देवी शक्तिपीठ पर भक्त पूजा-अर्चना कर रहे हैं। नवरात्र में शक्ति पीठों पर भक्तों की भीड़ बढ़ गई है और मैया के जयकारे निरंतर गूंज रहे हैं। आप भी जानिए क्या है इन शक्ति पीठों की मान्यता और महत्व-
यशवंतरी देवी ने नकटा दानव के वध को लिया था अवतार, आज भी है चौराहा
पीलीभीत शहर के बीच स्थित यशवंतरी देवी मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, हजारों साल पहले नकटा दानव नाम का एक राक्षस था। जिसने यहां के लोगों का जीना मुश्किल कर रखा था। इस राक्षस के अत्याचार से छुटकारा पाने के लिए यहां के लोगों ने हवन-पूजन किया, जिसके बाद यशवंतरी देवी ने यहां अवतार लिया और नकटा दानव नामक राक्षस का वध कर दिया। यशवंतरी देवी मंदिर से करीब 500 मीटर की दूरी पर आज भी नकटादाना राक्षस के नाम पर चौराहा बना हुआ है, जो शहर के सबसे व्यस्ततम चौराहे में से एक है। यह चौराहा टनकपुर हाइवे पर मौजूद है। बताया जाता है कि राक्षस इसी चौराहे पर खड़ा होकर लोगों को जिंदा खा जाता था, इसलिए इस चौराहे को नकटादाना चौराहे के नाम से जाना जाता है। वैसे तो यहां दर्शन पूजन के लिए प्रतिदिन भक्त पहुंचते हैं परंतु नवरात्रों में काफी अधिक भीड़ रहती है और श्रद्धालु निरंतर भजन पूजन व कीर्तन करते रहते हैं।
माती-माफी में विराजी हैं मातेश्वरी गूंगा देवी
पीलीभीत की पूरनपुर तहसील मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर कुरैया क्षेत्र के माती गांव में मातेश्वरी गूंगा देवी का प्रसिद्ध मंदिर है। यहां हर रोज दर्शन पूजन करने सैकड़ों श्रद्धालु पहुंचते हैं। प्रत्येक अमावस्या को मंदिर पर मेला लगता है। आषाढ़ माह में शुभ दिनों में जातों का विशेष मेला भी लगता है। देवीअपने भक्तों की मनोकामना पूरी करती हैं, ऐसी भक्तों की मान्यता और विश्वास है। नवरात्र व्रतों के दौरान यहां भजन कीर्तन व कथा भागवत कथा का आयोजन भी होता है। यह मंदिर सदियों पुराना है। किवदंती है कि मातेश्वरी गूंगा देवी चक्रवर्ती सम्राट राजा वेणु की सबसे छोटी पुत्री थीं। सभी बहनें अन्यत्र चली गईं लेकिन मां गूंगा देवी ने पिता के शहर में रहना उचित समझा। मतंग नगरी से यह माती गांव में तब्दील हो गया। अंग्रेजों ने मान्यता देखकर यहां लगान माफ करते हुए माती के साथ माफी शब्द जोड़ दिया। यहां कोई बड़ा युद्व भी हुआ था जिससे पूरा शहर खेड़े में तब्दील हो गया। इसे खोदने पर ईंट, रोड़ा व हड्डियों का चूरा बहुतायत में निकलता है। लोगों को 14वीं सदी के शिलालेख, चांदी के सिक्के, हीरा व स्वर्ण आभूषण भी यहां मिले हैं। मनौती पूरी होने पर भक्तों ने यहां देवी मंदिर के अलावा कई मंदिर बनवाए। इनमें से कई मंदिर जीर्णशीर्ण हो गए हैं। मंदिर परिसर की जमीन पर कलियुगी भक्त कब्जा कर रहे हैं। लगभग 150 एकड़ में फैले मंदिर से जुड़े शाही सरोवर भुगनई ताल की भी मान्यता है। नवरात्र के समापन पर कन्याभोज व भंडारे भी होते हैं। इस समय दर्शन पूजन को भक्तो का रैला उमड़ रहा है। पुजारी सचिन गिरि बताते हैं कि सच्चे मन से जो कोई कुछ मांगता है मां उसे निराश नहीं करतीं।
इलावांस देवी मंदिर में मिला था 13वीं सदी का शिलालेख
पीलीभीत के बीसलपुर तहसील का गांव इलावांस पुरातत्व की धरोहर है। यहां प्राचीन देवी मंदिर है। इस मंदिर पर मनौती पूरी होने के कारण दूर दूर तक मान्यता है। मंदिर के चारों ओर टीले हुआ करते थे। ग्रामीणों ने खेत समतल करने के लिए वर्षों पहले जब खुदाई की तो प्राचीन मूर्तियां व शिलालेख मिले। पुरातत्व विभाग तक मामला पहुंचा तो विभाग के विशेषज्ञों की टीम आई। पुरातत्व विभाग ने यहां उत्खनन के लिए संस्तुति की, लेकिन वह अभी तक फाइलों में ही कैद है। यहां रुहेलखंड विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग की टीम भी अप्रैल 2019 में सर्वे कर चुकी है। प्रशासन की अनदेखी से ग्रामीण जब तब वहां खुदाई करते रहते हैं, जिसमें अक्सर प्राचीन सिक्के निकल आते हैं। पिछले दिनों कुछ ग्रामीणों ने कथित खजाना पाने के लालच में बेतरतीब ढंग से वहां खुदाई कर डाली। इससे पुरातत्व की यह धरोहर खुर्द-बुर्द हो सकती है।
पीलीभीत के बिलसंडा ब्लाक क्षेत्र के इलावास को पर्यटन स्थल बनाने की घोषणा मुख्यमंत्री स्वयं कर चुके हैं। पिछले वर्ष फरवरी में जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का दौरा नूरानपुर में हुआ था, तब इस क्षेत्र को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए 50 लाख की धनराशि देने की घोषणा भी उन्होंने की थी। यहां स्थित प्राचीन मंदिर के प्रति लोध किसान बिरादरी के लोगों की बहुत आस्था है। आसपास के जिलों से भी इस बिरादरी के तमाम लोग दर्शन पूजन करने वहां पहुंचते हैं। यहां निकला शिलालेख 13वीं सदी का माना जाता है। अति प्राचीन मूर्तियां चोरी हो चुकी हैं। देवी मंदिर पर नवरात्रि में भव्य मेला लगता है और दर्शन पूजन के लिए काफी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। प्रतिदिन भी श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है अमावस पर यहां भव्य मेला लगता है।
बराही देवी के नाम पर बनी टाइगर रिजर्व जंगल की बराही रेंज
पीलीभीत टाइगर रिजर्व की पांच वन रेंजों में से एक वन रेंज का नाम है बराही रेंज। शायद कम लोगों को ही पता होगा कि इस रेंज का नाम बराही क्यों पड़ा। दरअसल इस रेंज से सटा हुआ बराही देवी का प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर में बराही देवी विराजमान हैं। माता की पूजा अर्चना करने सैकड़ों भक्त यहां पहुंचते हैं। वर्ष में कई बार यहां मेला भी लगता है। नवरात्रि में विशेष पूजा- अर्चना करने लोग बराही देवी मंदिर पर पहुंचते हैं। बराही देवी की पुराने समय में भी काफी अधिक ख्याति थी। इसी कारण टाइगर रिजर्व जंगल की रेंज का नाम बराही वन रेंज रखा गया होगा जो आज भी प्रचलित है। बराही नाम का गांव भी बसा हुआ है। बताया जाता है कि पुराने समय में यह देवी मंदिर वट वृक्ष की जड़ों से घिरा हुआ अनुपम छटा बिखेरता था परंतु पिछले कुछ दिनों में लोगों ने इसका जीर्णोद्धार कराकर इसे नया रूप देने का प्रयास किया है। माता के मंदिर की मान्यता को लेकर इलाके में कई तरह की चर्चाएं हैं। लोगों का मानना है कि बराही देवी अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती आ रही हैं। जंगल पास में होने के बावजूद भक्तों का रैला यहां आता रहता है।
पद-प्रतिष्ठा प्रदाता है पीताम्बरा देवी शक्ति पीठ
प्राचीन तंत्र ग्रंथों में 10 महाविद्याओं का उल्लेख मिलता है। उनमें से एक है बगलामुखी। मां भगवती बगलामुखी का महत्त्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट है। भारत में मां बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर माने गए हैं, जो दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) तथा नलखेड़ा (मध्यप्रदेश) में हैं। पीलीभीत के पूरनपुर के पास तकिया दीनारपुर में माता का चौथा मंदिर बनवाने का श्रेय बाबा सूरज गिरि को जाता है। उन्होंने माता बगलामुखी (पीतांबरा देवी) का 70 फिट ऊंचा विशाल मंदिर बनवाया है। इसमें पीतांबरा देवी की भव्य प्रतिमा स्थापित की गई है। प्रतिमा के नीचे बगलामुखी चक्र भी स्थापित है। मंदिर में गणेश जी, माता सरस्वती जी, महालक्ष्मी जी, भैरव जी के अलावा कई अन्य देवी-देवताओं की भी स्थापना है। इस मंदिर में पीले वस्त्र पहन कर ही पूजा करने का विधान है। पीला ही चढ़ावा माता स्वीकार करतीं हैं। मनोकामना पूरी होने के कारण इस शक्तिपीठ पर भारी भीड़ उमड़ती है। प्रत्येक सोमवार को यहां भव्य मेला लगता है। नया मंदिर होने के बावजूद दूर-दूर तक इस मंदिर की ख्याति है। संस्थापक महंत बाबा सूरज गिरि बताते हैं कि पद और प्रतिष्ठा प्रदान करने वाली माता पीताम्बरा देवी की गुप्त आराधना करने कई बड़े जनप्रतिनिधि व अधिकारी यहां पहुंचते हैं। वर्तमान में इस मंदिर के पुजारी आचार्य अंशुल शास्त्री हैं। मां पीताम्बरा के तकिया व दतिया मंदिर में एक समानता यह भी है कि इन दोनों मंदिरों के पास श्मशान है। यहां एक तरफ गोशाला भी खोली गई है। मंदिर में भक्तों के प्रवेश के नियम कायदे भी अलग हटकर हैं। मंदिर खुलने का समय भी निर्धारित किया गया है। नवरात्र में यहां काफी भीड़ उमड़ रही है।
शाहगढ़ वाली माता काली, जहां लगता है हर अमावस को मेला
पीलीभीत के शाहगढ़ में माता काली विराजमान हैं। यहां प्रत्येक अमावस को भव्य मेला लगता है। आषाढ़ में जातों का मेला तो भव्य होता है। नवरात्र व्रतों में भी यहां काफी अधिक श्रद्धालु दर्शन पूजन करने पहुंचते हैं। इस मंदिर का इतिहास चक्रवर्ती सम्राट राजा वेणु से ही जुड़ा हुआ माना जाता है। बताया जाता है कि शाहगढ़ में राजा का किला था, जो खेड़े में तब्दील हो गया। खेड़े के टीला के कुछ अंश अभी भी यहां मौजूद हैं। राजा का शाही सरोवर पुरैना ताल भी इस गांव में ही स्थित है, जिसमें अभी भी हजारों कमल पुष्प खिलते हैं। मान्यता के चलते इस मंदिर पर भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। इस नवरात्र पर भी यहां व्यापक साफ सफाई की गई है और यहां पहुंचने वाले भक्तों को पेयजल व पूजा सामग्री आदि उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जा रही है। बताते हैं कि शाहगढ़ व माती के किलों में एक जैसी ही ईंट लगी थी और दोनों स्थान सुरंग के जरिये आपस में जुड़े थे, इस सुरंग के कुछ अंश बीच में भी मिलते हैं।
काली मठ मंदिर बना है शक्ति का केंद्र
काली देवी का मठ मंदिर पीलीभीत के पूरनपुर के पास तकिया दीनारपुर गांव में स्थित है। यहां पर नागराज का मंदिर है और बगल में शिव जी विराजमान हैं। स्थापना के पीछे कहा जाता है कि काली देवी के स्वप्न देने पर बाबा सूरज गिरि महाराज ने यहां पर देवी माता का यह मंदिर स्थापित कराया। यह चमत्कारी मंदिर माना जाता है। इस मंदिर में प्रत्येक सोमवार को भक्तों का सैलाब उमड़ता है। प्रतिदिन भी काफी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं। इस मंदिर में दीपक जलाने की परंपरा है। भक्तों में मान्यता है कि दीपक जलाने व आरती करने से देवी माता खुश होती हैं। इस नवरात्र पर भी यहां मेले जैसा माहौल देखा जा रहा है। भजन, कीर्तन, भंडारों व यज्ञ आदि का क्रम भी यहां चलता रहता है। मंदिर के महंत बाबा सूरज गिरि जी महाराज बताते हैं कि जनपद में मां काली मठ सर्वाधिक जाग्रत स्थल बन गया है। यहां कई अन्य जिलों के श्रद्धालु भी अक्सर आते रहते हैं। पीताम्बरा पीठ की स्थापना से यहां की रौनक और अधिक बढ़ गई है।
भगौतीपुर की देवी में है भक्तों की अटूट आस्था
पीलीभीत के पूरनपुर मैगलगंज रोड पर कसगंजा व गुलरिया भूपसिंह के बीच में जलुआपुर के निकट भगौतीपुर गांव में देवी माता का प्राचीन मंदिर है। यहां मान्यता के चलते काफी श्रद्धालु उमड़ते हैं। प्रतिदिन दर्शन, पूजन, मुंडन, अन्नप्राशन, हवन, भजन-कीर्तन और भंडारों के क्रम यहां चलते रहते हैं। जबकि प्रत्येक माह की अमावस को भव्य मेला लगता है। नवरात्र व जातों का मेला भी खास है। यहां कई प्राचीन मंदिर बने हैं जहां पहुंचकर भक्त पूजा अर्चना करके देवी का आशीर्वाद लेते हैं। मान्यता है कि माता सबकी मनौती पूरी करती हैं। बुजुर्ग बताते हैं कि भगवती देवी का स्थान होने के कारण ही इस गांव का नाम भगौतीपुर पड़ा है। भगौतीपुर देवल 36 एकड़ के विशाल मैदान में फैला हुआ है। देवल की जमीन गुलड़िया भूपसिंह के जमींदार सूबेदार सिंह के द्वारा सन 1836 में दान की गई थी। अब जमींदार के परिवारीगण अमित सिंह और धर्मेंद्र सिंह देवल की देखरेख करते हैं।
पूरनपुर के लाइनपार का देवीस्थान
पीलीभीत के पूरनपुर का लाइनपार साहूकारा मोहल्ला इस वजह से खास है क्योंकि यहां देवी का वास है। प्राचीन काल से यहां के मंदिर को देवीस्थान मंदिर के नाम से जाना जाता है। प्रत्येक शुक्रवार व सोमवार को यहां काफी श्रद्धालु पहुंचते हैं। प्रत्येक अमावस को भव्य मेला लगता है। आषाढ़ में जातो का मेला एवं नवरात्र में भी यहां भव्य मेला आयोजित होता है। देवी माता के अलावा अन्य कई देवी-देवताओं के मंदिर भी मंदिर परिसर में हैं। छाया की भी भरपूर व्यवस्था है। मंदिरों की भव्य रंगाई पुताई भी कराई गई है। भक्तों की प्रबल मान्यता है कि यहां मनोकामना देवी पूरी करती हैं। मुहल्ले के पंडित अनिल शास्त्री बताते हैं कि यह मंदिर काफी प्राचीन है। अब यहां काफी जीर्णोद्धार भी कराया गया है। कई नए मंदिर भी बन गए हैं। इस नवरात्र भी यहां काफी चहल-पहल देखी जा रही है।