सार
उत्तर प्रदेश के जिले कानपुर का बाराह देवी मंदिर पौराणिक और प्राचीनतम मंदिरों में शामिल है। मंदिर के सटीक इतिहास की जानकारी तो किसी के पास नहीं है। लेकिन कानपुर और आस-पास के ज़िलों में रहने वालो लोगों में मंदिर की देवी के प्रति अटूट आस्था है।
सुमित शर्मा
कानपुर: चैत्र नवरात्र का पहला दिन मां दुर्गा के प्रथम शैलपुत्री स्वरुप में पूजा-अर्चना की जाती है। लॉकडाउन के बाद पहली बार नवरात्रि के पर्व पर मंदिरों में पूरी क्षमता के साथ श्रद्वालू पहुंच रहे हैं। नवरात्री के पहले ही दिन माता के दर्शन के लिए भक्तो की लंबी कतारें लगी हैं। कानपुर का बाराह देवी मंदिर पौराणिक और प्राचीनतम मंदिरों में शामिल है। मंदिर के सटीक इतिहास की जानकारी तो किसी के पास नहीं है। लेकिन कानपुर और आस-पास के ज़िलों में रहने वालो लोगों में मंदिर की देवी के प्रति अटूट आस्था है। वैसे तो बाराहदेवी मंदिर में पूरे साल भक्तों का तांता लगा रहता है। नवरात्र के पावन पर्व पर प्रतिदिन लाखों लोग दर्शन करने के लिए आते हैं।
कानपुर के दक्षिणी इलाके में स्थित मां बाराह देवी मंदिर के नाम पूरे इलाके का नाम बाराह देवी पड़ गया। जिस इलाके में यह मंदिर बना है उस इलाके का नाम भी बाराह देवी है। सिर्फ इतना ही नहीं मंदिर के नाम से कानपुर दक्षिण के ज्यादा तर इलाको के नाम रखे गए हैं जैसे की बर्रा -01 से लेकर बर्रा -09 तक, बिन्गवा, बारासिरोही, बर्रा विश्व बैंक आदि नाम प्रचलित हैं। बारह देवी मंदिर की सबसे खास बात यह है कि जो भक्त दर्शन के लिए आता है। वह अपनी मनोकामना मान कर चुनरी बांधता है। जिसकी भी मन्नत पूरी होती है वह खोल देता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, और इस पर लोगो का अटूट विश्वास है।
1700 वर्ष पुराना है मंदिर
मंदिर के लोगो की माने तो कई वर्ष पहले एएसआई की टीम ने बारह देवी मंदिर का सर्वेक्षण किया था। जिसमें यह पाया गया था कि यह मां बारह देवी की प्रतिमा लगभग 15 से 17 सौ वर्ष पुरानी है। वास्तव में मंदिर का इतिहास क्या है इसकी सटीक जानकारी किसी को नही है। इस मंदिर में लंबे समय से आने वाले भक्तो के अनुसार मां उनकी हर मुराद पूरी करती है। यही वजह है कि वह मां के आशीर्वाद पर पूरा भरोसा रखते हैं।
भक्तों में है अटूट आस्था
बारहदेवी मंदिर में यूं तो साल भर माता के दर्शनों को लिए भक्तो की कतार लगी रहती है। लेकिन नवरात्रि के दिनों में मंदिर में भक्तो का जनसैलाब उमड़ता है। लाखो भक्त नवरात्रि के दिनों में मां के दर्शन कर अपनी मनोकामनाओं का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। बिधनू से आए बनवारीलाल के मुताबिक बाराह देवी पर हमारी आस्था अटूट है। हर साल हम परिवार के साथ माता के दर्शन के लिए आते हैं। माता के दर्शन से एक आत्मविश्वास की जाग्रति होती है और हमारी सभी मनोकामनाए पूरी होती हैं।
मां बारहदेवी मंदिर से जुड़ा इतिहास
मंदिर के पुजारी दीपक के मुताबिक इन कथाओं में सबसे प्रसिद्ध कथा है कि एक बार पिता से हुई अनबन पर उनके कोप से बचने को घर से एक साथ 12 बहनें भाग गईं थीं। किदवई नगर में मूर्ति बनकर स्थापित हो गईं। पत्थर बनी यहीं 12 बहनें कई सालों बाद बाराह देवी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुईं। यह भी कहा जाता है कि बहनों के श्राप से उनके पिता भी पत्थर हो गए थे।
कानपुर दक्षिण इलाके के इस प्रसिद्ध मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। मंदिर की कमेटी के सदस्य भानू की माने तो माता का विवाह अर्रा गांव में हुआ था। पिता लठुआ बाबा की किसी बात पर उनसे अनबन हो गई और विवाह के बाद भी उन्होंने उन्हें ससुराल नहीं भेजा। ससुराल के लोगों ने कई बार उन पर दबाव भी बनाया, लेकिन वे नहीं माने। एक बार नाराज पिता ने उन्हें दौड़ा लिया तो वह बहनों संग घर से भाग निकलीं और किदवई नगर स्थित एक पेड़ के नीचे बैठ गईं। इसी बीच लठुआ बाबा भी वहां पहुंच गए। उन्होंने पिता को पत्थर होने का श्राप दिया और खुद भी पत्थर की बन गईं। मां के दरबार में शहर के साथ ही दूसरे जिलों के श्रद्धालु भी मत्था टेकते हैं। मान्यता है कि मां के दरबार में मांगी गई मन्नत जरूरत पूरी होती हैं।
मंदिर परिसर में ही बच्चों के मुंडन संस्कार और कन छेदन जैसे काम लोग बड़ी ही सिद्दत से करते हैं। इस पावन अवसर पर प्राचीन मंदिर में एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। नौ दिनों तक चलने वाले इस मेले में कानपुर के साथ-साथ आसपास जिले के लोग भी आते हैं। इस दौरान यहां पर जिनकी मन्नतें पूरी होती हैं, वो ज्वारा लेकर माता के दरबार आते हैं।
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