सार

बीजेपी के पिछड़े समाज के बड़े नेताओं ने पार्टी छोड़कर समाजवादी पार्टी (एसपी) का दामन थामा, इससे एसपी को शुरुआती 'मनोवैज्ञानिक बढ़त' मिलने की बात कही गई। इससे संकेत ये दिया गया कि समाजवादी पार्टी, बीजेपी का किला ध्वस्त कर देगी। इन नेताओं ने एक साथ बीजेपी पर पिछड़ी जातियों की अनदेखी, आरक्षण पर खतरा और बीजेपी पर एक जाति विशेष का प्रभाव होने का आरोप लगाकर पार्टी छोड़ी थी। 
 

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2022 का सातवां व अंतिम चरण चल रहा है। बीजेपी ओर सपा के बीच में मजबूत टक्कर देखने को मिल रही है। यूपी में ऐसा पहली बार देखने को मिल रहा है कि सात चरण बीत जाने के बाद राजनीति के बड़े-बड़े दिग्गज कुछ भी कहने से बत रहे है। माना जा रहा है कि चुनाव शुरू होने से नेताओं की दलबदल की राजनीति ने पूरे चुनाव का समीकरण बदल कर रख दिया है। वैसे तो बहुत से नेताओं ने पार्टी बदलने का काम किया है। लेकिन इसमे तीन प्रमुख नाम ऐसे हैं जिनके दल बदलने से कहीं न कहीं चुनावी महौल भी बदला हुआ नजर आने लगा। 

बीजेपी के पिछड़े समाज के बड़े नेताओं ने पार्टी छोड़कर समाजवादी पार्टी (एसपी) का दामन थामा, इससे एसपी को शुरुआती 'मनोवैज्ञानिक बढ़त' मिलने की बात कही गई। इससे संकेत ये दिया गया कि समाजवादी पार्टी, बीजेपी का किला ध्वस्त कर देगी। इन नेताओं ने एक साथ बीजेपी पर पिछड़ी जातियों की अनदेखी, आरक्षण पर खतरा और बीजेपी पर एक जाति विशेष का प्रभाव होने का आरोप लगाकर पार्टी छोड़ी थी। 

अब इन सभी नेताओं की अग्निपरीक्षा है, क्योंकि चाहे ओम प्रकाश राजभर हों, दारा सिंह चौहान हों या फिर स्वामी प्रसाद मौर्य न सिर्फ इन नेताओं को न सिर्फ चुनाव जीतना जरूरी है, बल्कि पिछड़ी जातियों का वोट भी अपने साथ खड़ा करने की जिम्मेदारी है। खुद के लिए वोट लेना और समाजवादी पार्टी को अपने समाज का वोट दिलवाना ये भी इन तीनों नेताओं की आगे के सियासत का रुख तय करेगा।

'सच्चाई' ये भी है कि इन तीनों नेताओं की सीट कड़े मुकाबले में है और तीनों को अपनी सीट बचाने के लिए जूझना पड़ रहा है। पडरौना से फाजिलनगर आकर चुनाव लड़ लड़े स्वामी प्रसाद मौर्य को स्थानीय स्तर पर कड़े विरोध का सामना करना पड़ा और लोगों ने कई बार उन्हें बाहरी का तमगा देकर अपना विरोध जताया। स्वामी प्रसाद मौर्य, ओम प्रकाश राजभर और दारा सिंह चौहान के खिलाफ बीजेपी ने पिछड़ी जाति के ही ताकतवर नेताओं को टिकट देकर आगे किया. स्वामी प्रसाद मौर्य के सामने गंगा सिंह कुशवाहा के बेटे सुरेंद्र कुशवाहा मैदान में थे, तो समाजवादी पार्टी के बागी मुस्लिम चेहरे बीएसपी से चुनाव मैदान में थे. ऐसे में स्वामी प्रसाद मौर्य के लिए मुश्किलें और बढ़ गई थीं। 

बता दें कि जहुराबाद सीट से ओम प्रकाश राजभर ने 2017 में बीजेपी गठबंधन से जीत दर्ज की थी लेकिन इस बार मामला जबरदस्त तरीके से त्रिकोणीय हो चुका है। बीजेपी ने बीएसपी से दो बार विधायक रहे कालीचरण राजभर को ओम प्रकाश राजभर के खिलाफ उतरा है, तो समाजवादी पार्टी की कभी दिग्गज नेता रहीं शादाब फातिमा बीएसपी से चुनाव मैदान में हैं। अगर इलाके में आप लोगों से बात करें, तो लोग ओम प्रकाश राजभर के लिए भी यह सीट बेहद ही खतरनाक बता रहे हैं. यानी ऐसी सीट जहां ओम प्रकाश राजभर को भी वोटों के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है। 

ओम प्रकाश राजभर को यकीन है कि आखिर में मुसलमानों का वोट शादाब फातिमा को नहीं बल्कि समाजवादी पार्टी मिलेगा। दूसरी तरफ राजभर वोट में बिखराव की भी आशंका है। हालांकि, राजभरों के सबसे बड़े नेता के तौर पर उभर चुके ओम प्रकाश राजभर का मानना है कि उनका समाज एकमुश्त वोट करेगा क्योंकि उनके समाज की प्रतिष्ठा का भी प्रश्न है. वहीं, यादव बिरादरी एसपी चीफ अखिलेश यादव के नाम पर ओम प्रकाश राजभर के साथ मजबूती के साथ खड़ी दिखाई देती है, लेकिन ओम प्रकाश राजभर के लिए जीत आसान नहीं है, क्योंकि विरोधियों ने 'राजभर हराओ' अभियान चला रखा है। 

तीसरी मऊ की घोसी सीट है, जहां से दारा सिंह चौहान समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। उसी सीट से बीजेपी ने प्रवीण राजभर को अपना उम्मीदवार बनाया है। वहीं समाजवादी पार्टी के बागी सुधाकर सिंह ने जमीन पर बगावती तेवर अपना रखें हैं। हालांकि वह खुद लड़ नहीं रहे हैं, लेकिन चर्चा यह है कि बीएसपी के वसीम इकबाल ने दारा सिंह चौहान के चुनाव को कठिन बना दिया है। अब यह तीनों नेता चुनावी चक्रव्यूह में हैं इसमें से कौन चक्रव्यू भेद पाता है यह तो कहना मुश्किल है लेकिन समाजवादी पार्टी के साथ जाने के बावजूद राह इतनी कठिन होगी यह अंदाजा इन तीनों नेताओं में से किसी को नहीं था।