सार

काशी विश्वनाथ धाम आज कल चर्चा का मुख्य विषय बना हुआ है। आपको बता दें काशी विश्वनाथ से जुड़े एतिहासिक अभिलेखों को काशी विद्वत परिषद संरक्षित करेगी। काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश एशियाई पुस्तकालय में आरक्षित है। 

वाराणसी: वाराणसी (Varanasi) की आत्मा कहा जाने वाला काशी विश्वनाथ (Kashi Vishwanath Dham) म का सोमवार को लोकार्पण होने वाला है। काशी विश्वनाथ मंदिर बहुत सा इतिहास अपने आप में समेटे हुए हैं। धाम से जुड़े एतिहासिक अभिलेखों ( Historical Records) को विद्वानों और संतों की प्रतिष्ठित संस्था काशी विद्वत परिषद (Kashi Vidvat Parishad ) सुरक्षित रखेगी। काशी विश्वनाथ मंदिर सोमवार को एक नए अवतार में दिखेगा, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) भव्य काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का उद्घाटन करेंगे।

एशियाई पुस्तकालय में मौजूद है मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश
काशी विद्वत परिषद के सचिव राम नारायण द्विवेदी (Ram Narayan Trivedi) ने कहा कि बनारस के राजा टोडरमल ने 1595 ईस्वी में मंदिर का पुनर्निर्माण किया था। 1669 में, मुगल राजा औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश जारी किया था। आदेश अभी भी एशियाई पुस्तकालय, कोलकाता (Asian Library, calcutta) में आरक्षित है। यह विध्वंस समकालीन लेखक मुस्तैद खान द्वारा विस्तार से वर्णित किया गया है।

इन अभिलेखों से नई पीढ़ी जानेगी मंदिर का इतिहास
राम नारायण द्विवेदी ने कहा कि सभी अभिलेखों को व्यवस्थित तरीके से संरक्षित (protect) किया जाएगा ताकि नई पीढ़ी को मंदिर के इतिहास के बारे में पता चल सके। साथ ही उन्होंने बताया कि इस इतिहास के बारे में बहुत कम लोग जानते होंगे कि राजा रणजीत सिंह और औसनगंज के राजा त्रिविक्रम नारायण सिंह जैसे कई राजाओं ने मंदिर के लिए दान दिया था। राजा त्रिविक्रम नारायण सिंह ने मंदिर के गर्भगृह के लिए चांदी के दरवाजे दान में दिए थे। औसनगंज राज्य वाराणसी, जौनपुर और गाजीपुर में फैला हुआ है। इतिहासकारों के अनुसार, मंदिर को पहली बार 1194 में तोड़ा गया था और 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह के शासनकाल के दौरान फिर से हमला किया गया था।

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