सार

मथुरा जिले के विश्व प्रसिद्ध मंदिर में 5000 साल पुरानी परंपरा नहीं टूटी है। राधा अष्टमी के मौके पुरुष सेवादारों ने ही मंदिर की पूजा संपन्न करवाई है। मंदिर में महिला सेवादार के पूजा करवाने की चर्चा थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। 

प्रयागराज: उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के विश्व प्रसिद्ध राधा रानी मंदिर में 5000 साल पुरानी परंपरा नहीं टूटी है। मंदिर में महिला पुजारी द्वारा पूजा करवाने को लेकर चर्चा बनी हुई थी। लेकिन मंदिर में मौजूद गोस्वामी समाज के पुजारियों ने ही राधा अष्टमी के मौके पर मंदिर में पूजा संपन्न करवाई है। मंदिर में परंपरा अनुसार हमेशा गोस्वामी समाज के पुरुषों को ही यहां का सेवादार बनने का मौका मिलता है। राधा रानी मंदिर के पुजारी को लेकर हुए विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शनिवार को मामले की सुनवाई की थी। लेकिन अदालत ने अंतिम आदेश जारी नहीं किया था। इसी कारण यह चर्चा थी कि राधा रानी मंदिर में महिला पुजारी के पूजा कराने से मंदिर की 5000 साल पुरानी परंपरा टूट जाएगी। 

पुरुषों को मिलता है सेवादार बनने का मौका
मंदिर में राधा अष्टमी के पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन यहां लगने वाले मेले में लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। यह मंदिर 5000 साल पुराना है। इस वर्ष 4 सितंबर यानि कि रविवार को राधा अष्टमी का पर्व है। बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण श्री कृष्ण के पौत्र राजा बज्रनाथ ने करवाया था। वहीं मंदिर की देखभाल बाबा थोक, लक्ष्मण थोक व अक्षय राम थोक बारी-बारी एक साल के अंतराल पर करते हैं। मंदिर में पुजारी के तौर पर सेवा करने वाले सेवादार गोस्वामी ब्राह्मण हैं। इसके लिए तीन गुटों में बंटे परिवार ने 1-1 साल मंदिर का सेवादार बनने का नियम बना रखा है। 1 वर्ष के कार्यकाल के दौरान परिवार के कई सदस्यों को मंदिर की सेवा करने का अवसर प्राप्त होता है। 

हाईकोर्ट ने महिला की नियुक्ति को बताया गलत
तय नियम के मुताबिक इस वर्ष 27 अप्रैल से 20 अक्टूबर तक के लिए हरबंस लाल गोस्वामी को मंदिर के पुजारी के तौर पर नियुक्त होना था। लेकिन उनकी 1999 में मृत्यु हो गई थी। इस कारण उनके भाई के पौत्र रासबिहारी को उनके स्थान पर सेवादार नियुक्त होना था। सेवादार के पद पर नियुक्ति को लेकर परिवार में कोई भी विवाद नहीं था। रासबिहारी ने तय समय पर सेवादार का पद भी ग्रहण कर लिया था। लेकिन इसी दौरान माया देवी नामक एक महिला ने खुद को हरबंस लाल गोस्वामी की विधवा होने का दावा किया और मंदिर की सेवादार बनने का अधिकार मांगा था। जिसके बाद निचली अदालत के एक आदेश पर माया देवी को प्रशासन ने उस पद पर नियुक्त भी करा दिया था। हालांकि बाद में हाईकोर्ट ने भी सेवादार पद पर माया देवी की नियुक्ति को सही नहीं माना था।

रासबिहारी को नहीं मिली राहत 
कोर्ट ने कहा था कि माया देवी गलत मंशा के साथ मंदिर की सेवादार के पद पर काबिज हुई है। परिवार ने भी इस नियुक्ति पर आपत्ति जताई थी। परिवार का कहना था कि माया देवी न तो पुरूष हैं और ना ही उनके परिवार की सदस्य हैं। 5000 साल से मंदिर में पुरूष सेवादारों की ही नियुक्ति होती आई है। परिवार का आरोप था कि माया देवी हरबंस लाल की पत्नी होने का झूठा दावा कर रही हैं। अदालत के पैसले में भी माया देवी को हरबंस लाल गोस्वामी की पत्नी भी नहीं माना गया था। इन्हीं आदेशों के आधार पर रासबिहारी ने छाता सर्किल के सिविल जज जूनियर डिविजन के अर्जी डाली थी। उन्होंने राधा अष्टमी के मौके पर खुद को सेवादार के तौर पर काबिज कराए जाने की मांग की थी। 

12 सितंबर को होगी मामले पर सुनवाई
रासबिहारी ने शनिवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की थी। अधिवक्ता आशुतोष शर्मा ने मामले पर सुनवाई को जरूरी बताते हुए छुट्टी वाले दिन ही सुनवाई करने की अपील की थी। जिसके बाद जस्टिस विवेक चौधरी की सिंगल बेंच ने शनिवार को छुट्टी के दिन इस मामले पर सुनवाई की थी। छुट्टी के दिन मामले पर सुनवाई करने के बाद भी कोर्ट ने अंतरिम आदेश देने से मना कर दिया था। अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा था कि राधा अष्टमी के कारण मंदिर में मेला लगा है। ऐसे में सेवादार बदलने का आदेश दिए जाने पर वहां की कानून व्यवस्था बिगड़ सकती है और जन्माष्टमी के जैसे ही हालात हो सकते हैं। कोर्ट ने माया देवी को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। अदालत 12 सितंबर को मामले की सुनवाई करेगी।

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