सार

फील्ड फायरिंग रेंज में हुए हादसे में जान गंवाने वाले नायब सूबेदार ने दो दिन पहले ही बच्चों को दिवाली पर घर आने की जानकारी दी थी। उनसे वादा भी किया था कि वह पटाखे और नए कपड़े लेकर आएंगे। हालांकि इससे पहले ही उनका पार्थिव शरीर घर पहुंच गया। 

झांसी: बबीना फील्ड फायरिंग रेंज में युद्धाभ्यास के दौरन टैंक से गोला दागते समय बैरल फटने से नायब सूबेदार सुमेर सिंह और सुकांता मंडल शहीद हो गए। नायब सूबेदार राजस्थान के झुंझनूं के उदयपुरवादी तहसील के बगड़िया की ढाणी के रहने वाले थे। सूबेदार जगत सिंह ने बताया कि सुरे सिंह अच्छे गनर और अचूक निशानेबाज थे। इसी के साथ ही वह टैंक के मास्टर ट्रेनर भी थे। वह 100 से अधिक जवानों को टैंक से गोले दागने और उसे ऑपरेट करने की ट्रेनिंग दे चुके थे। जिस दौरान वह टैंक-90 के साथ जवानों को गोले दागने की ट्रेनिंग दे रहे थे उसी समय गोला टैंक के बैरल में ही अटक गया। धुआं उठा, वह कुछ भी समझ पाते इससे पहले ही तेज धमाके के साथ बैरल में ब्लास्ट हो गया। इसी ब्लास्ट में सुमेर सिंह और सुकांता शहीद हो  गए।

दिवाली पर घर आने का किया था वादा
55 वर्षीय आर्म्ड रेजीमेंड के नायब सूबेदार सुमेर सिंह की बबीना में पोस्टिंग थी। वह अपनी 23 साल की नौकरी पूरी कर चुके थे। आर्म्ड रेजीमेंट में होने के चलते वह इतने सालों से लगातार टैंक के गोले ही दाग रहे थे। डेढ़ माह पहले ही वह छुट्टी से वापस आए थे। दो दिन पहले ही उन्होंने घर पर फोन कर जानकारी दी थी कि दीपावली पर घर आऊंगा। हालांकि दीपावली से पहले ही उनका पार्थिव शरीर उनके घर पहुंच गया। इसके साथ ही सुमेर सिंह का बच्चों से किया गया वादा भी अधूरा रह गया। उन्होंने अपने बच्चों से कहा था कि दिवाली पर घर पटाखे और कपड़े लेकर आएंगे। 

सबसे छोटे थे सुमेर, एक भाई की पहले हो चुकी है मौत
5 भाइयों और एक बहन में सुमेर सबसे छोटे थे। उनके एक भाई की मौत पहले ही हो चुकी थी। सुमेर शुरू से ही सेना में शामिल होकर देश की सेवा करना चाहते थे। बेटे की इच्छा को ध्यान में रखकर पिता व परिवार के अन्य सदस्यों ने भी उन्हें हमेशा से प्रोत्साहित किया। 1998 में उन्हें सेना की वर्दी मिली थी। उनकी काबिलियत के बल पर वह पदोन्नति प्राप्त करते हुए नायब सूबेदार के पद पर पहुंचे। कारगिल युद्ध के दौरान नायब सूबेदार सुमेर सिंह वगेरिया जैसलमेर में पाकिस्तान की सीमा पर तैनात थे। युद्ध के दौरान उनकी टैंक यूनिट को सतर्क कर दिया गया था। ऐसे इसलिए जिससे जरूरत पड़ने पर तत्काल उनकी टैंक यूनिट कारगिल पहुंच सके। इस दौरान मुस्तैदी से उन्होंने अपनी डयूटी निभाई थी। 

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