सार

आगरा में सेना के जवानों ने पैराशूट जंप किया। इसे तमिलनाडु के कुन्नूर में हुए हेलिकॉप्टर हादसे में शहीद हुए सीडीएस जनरल बिपिन रावत उनकी पत्नी और 11 अन्य वीर सपूतों को समर्पित किया गया।

आगरा। उत्तर प्रदेश के आगरा में भारतीय सेना के जवानों ने पैराशूट जंप (Parachute jump) किया। इस जंप को सेना ने 8 दिसंबर को तमिलनाडु के कुन्नूर में हुए हेलिकॉप्टर हादसे में शहीद हुए सीडीएस जनरल बिपिन रावत (CDS General Bipin Rawa) उनकी पत्नी और 11 अन्य वीर सपूतों को समर्पित किया। 1971 में पाकिस्तान के साथ हुए जंग में एक खास ऑपरेशन तंगेल एयरड्रॉप (Tangail airdrop) के 50 साल पूरा होने के अवसर पर शनिवार को पैराशूट जंप का आयोजन किया गया था। 

सेना की मध्य कमान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल योगेंद्र डिमरी ने 120 पैराट्रूपर्स और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भाग लेने वाले चार दिग्गजों को शामिल करते हुए सामूहिक छलांग का नेतृत्व किया। भारतीय सेना ने एक बयान में कहा कि पैराशूट कूद को सेना और वायुसेना के बीच संयुक्त कौशल की सर्वोत्तम भावना से सटीक समन्वय द्वारा चिह्नित किया गया। क्योंकि जनरल रावत ने तीनों सेनाओं के एकीकरण और संयुक्त कौशल का सपना देखा था।

तंगेल एयरड्रॉप और बांग्लादेश में उसके बाद के अभियानों में भाग लेने वाले कई दिग्गजों ने आगरा में यह ऐतिहासिक कार्यक्रम देखा। 1971 के युद्ध में शामिल रहे लेफ्टिनेंट जनरल निर्भय शर्मा, लेफ्टिनेंट जनरल आरआर गोस्वामी, मेजर जनरल शिव जसवाल, कर्नल थॉमस कोचप्पन और कर्नल प्रमोद तेम्बे भी मौजूद लोगों में शामिल थे। ड्रॉप जोन में 1971 के युद्ध और प्रसिद्ध तंगेल एयर ड्रॉप के दौरान पूर्वी क्षेत्र में शत्रुजीत ब्रिगेड की भागीदारी को प्रदर्शित करने के लिए एक हथियार और उपकरण प्रदर्शन और फोटो गैलरी भी स्थापित की गई थी।

अब तक का सबसे बड़ा हवाई अभियान है तंगेल एयरड्रॉप 
50 साल पहले 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ाई हुई थी। पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) की राजधानी ढाका के उत्तर में तंगेल में भारतीय पैराट्रूपर्स जवानों को एयर ड्रॉप किया गया था। इन जवानों ने लड़ाई में महत्वपूर्ण रोल निभाया था और पाकिस्तान को घुटने टेकने को मजबूर कर दिया था। तंगेल एयरड्रॉप भारतीय पैराट्रूपर्स का अब तक का सबसे बड़ा हवाई अभियान है। 

तंगेल ऑपरेशन का उद्देश्य जमालपुर-तंगेल-ढाका रोड पर पोंगली ब्रिज और लुहाजंग नदी पर नौका स्थल पर कब्जा करना था ताकि ढाका की रक्षा के लिए उत्तर से पीछे हट रही पाकिस्तानी सेना की 93 ब्रिगेड को रोका जा सके। भारतीय सेना की दूसरी पैराशूट बटालियन के लगभग 750 जवान इस सफल मिशन में शामिल थे। लेफ्टिनेंट कर्नल कुलवंत सिंह पन्नू के नेतृत्व में 17 पैराशूट फील्ड रेजिमेंट की आर्टिलरी बैटरी, 411 (इंडिपेंडेंट) पैराशूट फील्ड कंपनी की प्लाटून, मेडिकल टुकड़ी, सर्जिकल टीम और शत्रुजीत ब्रिगेड के अन्य प्रशासनिक सैनिकों के साथ बटालियन समूह को काटने का काम सौंपा गया था।
 

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