सार

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले की शहर विधान सभा में सबसे अधिक नामांकन हुए हैं। यहां से सीएम योगी आदित्यनाथ खुद चुनाव लड़ रहे हैं, इसलिए यह प्रदेश की हॉट सीट मानी जा रही है। देश प्रदेश की निगाहें इस सीट पर टिकी हैं।

अनुराग पाण्डेय
 
गोरखपुर:
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले की शहर विधान सभा में सबसे अधिक नामांकन हुए हैं। यहां से सीएम योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) खुद चुनाव लड़ रहे हैं, इसलिए यह प्रदेश की हॉट सीट मानी जा रही है। देश प्रदेश की निगाहें इस सीट पर टिकी हैं। हैरान कर देने वाली बात ये है कि विधान सभा चुनाव में योगी के गढ़ में ही उन्हें 22 कैंडिडेट चुनौती देने के लिए उतरे हैं। जबकि पांच बार के सांसद योगी आदित्यनाथ हर बार लोकसभा चुनाव ​रिकॉर्ड तोड़ वोटों से जीतते रहे हैं। पहली बार विधान सभा चुनाव लड़ रहे योगी के सामने और ​शहर विधान सभा में सबसे अधिक उम्मीद्वारों ने पर्चा भरा है। गोरखनगरी में योगी को हरा पाना आसान तो नहीं है लेकिन गोरखपुर की जनता उलट फेर करने में माहिर है। इसलिए यहां पर हर पार्टी दमखम से कैंपेन कर रही है। 

गोरखपुर में कुल 9 विधान सभा है। 9 विधान सभा में कुल 159 कैंडिडेट ने पर्चा भरा है। इसमे कैं​पियरगंज से 15, पिपराईच से 20, गोरखपुर शहर से 23, गोरखपुर ग्रामीण से 21, सहजनवा से 19, खजनी से 11, चौरी चौरा 20, बांसगांव से 09 और चिल्लूपार से 11 कैंडिडेट ने पर्चा दाखिल किया है। 

भाजपा, सपा और बसपा में लड़ाई
गोरखपुर विधानसभा चुनाव में अभी तक जो समीकरण दिख रहा है। उसमें भाजपा (BJP), सपा (SP) और बसपा (BSP) में टक्कर देखने को मिलेगी। वहीं कांग्रेस (Congress) पार्टी ने प्रत्याशी जरूर डिक्लेयर कर दिए हैं, लेकि​न विधान सभा में लोगों के बीच चर्चा में कहीं नहीं दिख रही है। इसलिए कांग्रेस को अभी क्षेत्र में और मेहनत करनी होगी। 

वोट काटेंगे छोटे दल और निर्दल
गोरखपुर विधानसभा में भाजपा, सपा, कांग्रेस, बसपा को छोड़ दिया जाए तो इनसे कहीं अधिक संख्या निर्दल और छोटे दल के प्रत्याशियों की है। निर्दल और छोटे दल खुद तो चुनाव नहीं जीतेंगे ले​किन किसी ना किसी प्रत्याशी की हार का कारण जरूर बनेंगे। गोरखपुर की चिल्लूपार और गोरखपुर ग्रामीण सीट की बात करें तो हर बार यहां पर तीन से चार हजार के अंतर पर हार जीत होती है। वहीं छोटे दल और निर्दल प्रत्याशी कम से कम 10 हजार वोट इधर से उधर करते हैं। जो प्रत्याशियों की हार का कारण बन जाता है। इस बार भी निर्दल और छोटे दल के ढेर सारे प्रत्याशी मैदान में उतरे हैं। देखते हैं ये किसके लिए फायदेमंद और हानिकारक बनते हैं।

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