सार

स्कूलों में अप्रैल महीने से सत्र शुरू हो चुका है और चार महीने बीतने को हैं लेकिन अभी तक बच्चे बिना किताबों के ही पढ़ने को मजबूर हैं। बता दें कि सर्व शिक्षा अभियान के तहत परिषदीय स्कूलों में बच्चों को निशुल्क पाठ्य पुस्तकें, ड्रेस, जूते-मोजे और बैग बांटे जाते हैं।

आशीष पाण्डेय, लखनऊ

स्कूल खुलते ही बच्चों को सबसे ज्यादा नई किताबें, बैग और ड्रेस का इंजतार होता है। यही लालच उन्हें स्कूल जाने और पढ़ाई करने के लिए उत्साहित भी करता है। लेकिन सरकारी स्कूल के नौनिहालों का इंतजार खत्म ही नहीं हो रहा।

चार माह पहले शुरू हुआ था सत्र 
स्कूलों में अप्रैल महीने से सत्र शुरू हो चुका है और चार महीने बीतने को हैं लेकिन अभी तक बच्चे बिना किताबों के ही पढ़ने को मजबूर हैं। बता दें कि सर्व शिक्षा अभियान के तहत परिषदीय स्कूलों में बच्चों को निशुल्क पाठ्य पुस्तकें, ड्रेस, जूते-मोजे और बैग बांटे जाते हैं। लेकिन हर साल अधिकारियों की लापरवाही और लेट-लतीफी के कारण महीनों बाद तक किताबें और बैग स्कूलों में नहीं पहुंच पाते हैं।

आधिकारियों की लापरवाही बच्चों पर पड़ रही भारी
प्रदेश सरकार के मुताबिक किताबें जुलाई माह में स्कूलों तक पहुंच जानी चाहिए लेकिन पूरा माह बीतने के बाद भी अधिकारी ऐसा करने में नाकामयाब रहे। इसकी वजह से बच्चे बिना किसी वर्क बुक और किताबों के पढ़ने को मजबूर हैं। लखनऊ जिले के एक सरकारी शिक्षक ने बताया कि सबसे ज्यादा परेशानी कक्षा एक और दो के बच्चों को पढ़ाने में होती हैं क्योंकि उन्हें वर्कबुक और किताबों के जरिए ही ज्यादा से ज्यादा पढ़ाना होता है लेकिन अब बिना किताबों के ऐसा करना थोड़ा मुश्किल हो रहा है। बेसिक शिक्षा परिषद ने अप्रैल में स्कूल खुलने से पहले ये आदेश जारी किया था कि पुरानी किताबों को जमा कराकर उनसे बच्चों को पढ़ाया जाए लेकिन ज्यादातर छोटी कक्षाओं में किताबें फट चुकी हैं या फिर खो गई हैं ऐसे में सभी बच्चों को किताबें दे पाना मुमकिन नहीं है।

औचक निरीक्षण के बाद भी नहीं दे रहा कोई ध्यान
शिक्षक संघ इस बारे में लगातार पत्र लिखकर स्कूलों में किताबें पहुंचाने की मांग कर रहा है। राष्ट्रीय शिक्षक महासंघ के बहराइच जिले के अध्यक्ष ने बताया कि स्कूलों में इस समय अधिकारियों का औचक निरीक्षण चल रहा है इसके लिए अधिकारियों की पूरी टीम बनाई गई है जो स्कूलों में जाकर निरीक्षण कर रही है लेकिन इसके बावजूद किसी का भी ध्यान किताबों की तरफ नहीं है न ही वो इसके बारे में कोई पूछताछ करते हैं। अब देखना है कि स्कूल और बच्चों का ये इंतजार कब खत्म होगा और वो किताबों के साथ स्कूल आएंगे।

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