सार

सीएसडीएस की ओर से दिए गए आंकड़ों की मानें तो पश्चिम यूपी में जयंत चौधरी की अगुआई वाली राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) से गठबंधन का सपा को अधिक फायदा नहीं मिला। जाट वोटर्स को ध्यान में रखकर किए गए इस गठबंधन के बावजूद 2017 के मुकाबले साइकिल की सवारी करने वाले जाटों की संख्या कम हो गई। यूपी की कुल आबादी में 2 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाले जाट वोटर्स की पहले और दूसरे फेज में खूब चर्चा हुई। 

लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने समाजवादी पार्टी को मात दे दी है। सपा शुरुआत से ही पश्चिमी यूपी के भरोसे पर जीत का दम भर रहे थे। लेकिन जो हुआ वो साफ तौर पर देखा जा सकता है। सपा इस उम्मीद में थी की 2022 के चुनाव में रालोद के गठबंधन का पश्चिमी यूपी में बड़ा फायदा मिलेगा लेकिन चुनाव परिणाम बताते हैं कि पिछली बार से ज्यादा नुकसान उठाने को मिला है। मुकाबले को 80:20 और 15:85 खांचे में बांटने की तमाम कोशिशों का किसे कितना फायदा हुआ और कितना नुकसान? इस तरह के तमाम सवालों के जवाब आंकड़ों के विश्लेषण से मिलने लगे हैं।

रालोद से गठबंधन का सपा को नहीं मिला फायदा नहीं
सीएसडीएस की ओर से दिए गए आंकड़ों की मानें तो पश्चिम यूपी में जयंत चौधरी की अगुआई वाली राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) से गठबंधन का सपा को अधिक फायदा नहीं मिला। जाट वोटर्स को ध्यान में रखकर किए गए इस गठबंधन के बावजूद 2017 के मुकाबले साइकिल की सवारी करने वाले जाटों की संख्या कम हो गई। यूपी की कुल आबादी में 2 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाले जाट वोटर्स की पहले और दूसरे फेज में खूब चर्चा हुई। सपा को 2017 में जहां 57 फीसदी जाट वोट मिले तो इस बार महज 33 फीसदी वोट मिले हैं। वहीं भाजपा को 2017 में 38 जाटों का साथ मिला था तो इस बार 54 फीसदी जाटों ने कमल के निशान को चुना। यही वजह है कि तमाम दावों के बावजूद भाजपा पश्चिमी यूपी में एक बार फिर सबसे आगे निकल गई। 

सपा के पक्ष में मुस्लिम गोलबंदी
सीएसडीएस का पोस्ट पोल सर्वे बताता है कि इस चुनाव में मुसलमानों ने लगभग एकतरफा सपा के पक्ष में मतदान किया। सपा को 5 साल पहले 46 फीसदी मुसलमानों ने वोट दिया था तो इस बार उसे अल्पसंख्यक समुदाय के 79 फीसदी वोट मिले। बसपा को 2017 में जहां 19 फीसदी मुस्लिम वोट मिले थे तो इस बार महज 6 फीसदी मुस्लिम हाथी के साथ रहे। भाजपा को भी 2 फीसदी अधिक मुस्लिम वोट मिले। भगवा दल को 5 साल पहले 6 फीसदी मुस्लिम वोट मिले तो इस बार 8 फीसदी अल्पसंख्यकों ने भाजपा में अपना भरोसा जताया।