सार
उत्तराखंड के पहाड़ों में गाड़ी चलाना हर किसी के बस की बात नहीं है। यहां जरा सी चूक का खामियाजा इंसान को अपनी जान गंवाकर चुकाना पड़ता है। इस साल शुरुआती चार माह में ही 500 से अधिक सड़क हादसे सामने आए हैं। इन हादसों में 300 से अधिक लोगों की मौत हुई है।
देहरादून: उत्तराखंड में हुए सड़क हादसों ने बीते कई सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। इस साल जनवरी से लेकर अप्रैल तक शुरुआती चार माह में ही 500 से अधिक दुर्घटनाएं सामने आई हैं। दुर्घटनाओं में हुआ ये इजाफा अपने आप में चिंता का विषय है। हालांकि बीते सालों की अपेक्षा यह इस वजह से भी ज्यादा है क्योंकि कोविड महामारी के कारण पहाड़ों पर न के बराबर पर्यटक आए थे। इसी के चलते उस समय सड़क हादसों की भी संख्या कम ही थी।
पहाड़ी जगहों पर गाड़ी चलाना होता है मुश्किल
उत्तराखंड के पहाड़ों में गाड़ी चलाना हर किसी के बस की बात नहीं है। एक्सपर्ट भी मानते हैं कि उत्तराखंड में गाड़ी चलाने के लिए ड्राइवर का ट्रेंड होना बहुत जरूरी है। राज्य के उप परिवहन आयुक्त सनत कुमार कहते हैं कि पिछले पांच सालों के आंकड़ों पर गौर करें तो हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर, देहरादून के शहरी इलाकों को छोड़कर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में जनवरी से अप्रैल तक 4 माह में 500 से भी ज्यादा सड़क हादसे हुए हैं। इसमें 300 से ज्यादा लोगों ने जान गंवाई है। इसी के साथ 450 से ज्यादा लोग उसमें घायल हुए हैं। इन हादसों के पीछे रैश ड्राइविंग, ओवर स्पीडिंग से लेकर गलत ड्राइविंग के 80 प्रतिशत से ज्यादा केस दर्ज हैं।
जान देकर चुकाना पड़ता है हादसों का खामियाजा
सड़क हादसों में हुए इन इजाफों के पीछे सड़क सुरक्षा समिति के सहायक निदेशक नरेश संघल मानते हैं कि ड्राइवर को पहाड़ों पर गाड़ी चलाने के लिए ट्रेनिंग देना जरूरी हो गया है। इसका एक और कारण यह भी है कि ज्यादातर लोग ट्रैफिक रूल्स को ही नहीं मानते हैं। इसी के चलते पहाड़ों पर होने वाले हादसों में इजाफा होता है। यहां जरा सी चूक का खामियाजा लोगों को हादसे के रूप में चुकाना पड़ता है।
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