सार
चारधाम यात्रा में अव्यवस्थाओं और लगातार हो रही घोड़ों की मौत पर नैनीताल हाईकोर्ट सख्त हुआ है। कोर्ट ने केंद्र और राज्य समेत चारधाम यात्रा के जिलों के डीएम को नोटिस जारी किए हैं और 22 जून तक जवाब मांगा है। इतना ही नहीं कोर्ट ने राज्य में डॉक्टरों की कमी पर भी टिप्पणी की है।
नैनीताल: उत्तराखंड में दो साल के लंबे अंतराल के बाद चारधाम यात्रा शुरू हुई। लेकिन इस बार यात्रा में फैल रही अव्यवस्थाओं को लेकर हाईकोर्ट ने सख्त कदम उठाया है क्योंकि यात्रा में लगातार इंसानों के साथ-साथ घोड़ों की भी मौत हो रही है। नैनीताल हाई कोर्ट ने 600 से अधिक घोड़ों की मौत पर केंद्र और राज्य समेत चारधाम यात्रा के चारों जिलों के डीएम को नोटिस जारी कर दिया हैं। इतना ही नहीं कोर्ट ने 22 जून तक सरकार से जवाब भी मांगा है।
डॉक्टरों की कमी पर की टिप्पणी
इस मामले में कार्यवाहक चीफ जस्टिस ने सरकार से पूछा है कि चारधाम यात्रा के लिए क्या व्यवस्थाएं की गई हैं और क्यों न इस यात्रा के लिए एक कमेटी का गठन कर दिया जाए। नैनीताल हाईकोर्ट ने राज्य में डॉक्टरों की कमी को लेकर भी टिप्पणी की है और कहा है कि राष्ट्रीय मानक के अनुसार ना तो जानवरों के डॉक्टर है ना ही इंसानों के। बता दें कि हाईकोर्ट में समाजसेवी गौरी मौलेखी ने जनहित याचिका दाखिल की। जिसमें उन्होंने कहा कि चारधाम यात्रा में अब तक 600 घोड़ों की मौत हो गई, जिससे उस इलाके में बीमारी फैलने का खतरा बन गया है।
व्यवस्था के अनुसार मिले अनुमति
इतना ही नहीं याचिका में यह भी कहा गया है कि जानवरों और इंसानों की सुरक्षा के साथ उनको चिकित्सा सुविधा दी जाए। इसके अलावा याचिका में कहा है कि चारधाम यात्रा में भीड़ लगातार बढ़ती जा रही है, जिससे जानवरों और इंसानों को खाने और रहने की दिक्कतें आ रही हैं। ऐसे में कोर्ट से मांग की गई है कि यात्रा में कैरिंग कैपेसिटी के हिसाब से भेजा जाए। यहां उतने ही लोगों को अनुमति दी जाए, जितने लोगों को खाने-पीने और रहने की सुविधा मिल सके।
प्रदूषण फैलाने का खतरा रहा बढ़
याचिकाकर्ता समाजसेवी गौरी मौलेखी ने कहा कि चारधाम यात्रा के दौरान इस अव्यवस्था पर केंद्र और राज्य सरकार को पत्र लिखे, लेकिन राज्य सरकार ने कोई निर्णय नहीं लिया। वह कहती हैं कि लोगों को आने-जाने में दिक्कतें हो रही है। इतना ही नहीं खाने-पीने की भी प्रॉब्लम श्रद्धालुओं को होने से लोग परेशान हैं। गौरी मौलेखी ने कहा कि कई सालों से घोड़ों-खच्चरों का प्रयोग यात्रा में हो रहा है, लेकिन कोई नीति नहीं बनी है। सरकार से मांग है कि एक नीति तैयार करें। साथ ही कहा कि बीमार घोड़ों को भी यात्रा में जबरन कई चक्कर लगवाए जा रहे हैं। अगर इनकी मौत हो रही है तो उनको पवित्र नदियों के डाला जा रहा है, जिससे प्रदूषण फैलने का खतरा भी है।
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