व्यक्तिगत जीवन से लेकर राजनीति तक की कहानी, ऐसा था मनोज तिवारी का सफर

वीडियो डेस्क। भोजपुरी सिनेमा में अपना एक अलग मुकाम बनाने वाले अभिनेता आज राजनीति का एक जाना माना चेहरा हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं दिल्ली बीजेपी के प्रेदश अध्यक्ष मनोज तिवारी की। 1971 में जन्में मनोज तिवारी कभी टीचर बनना चाहते थे। गाना गाना उनका शॉक नहीं उनकी मजबूरी है। इस बात का जिक्र खुदे मनोज तिवारी ने एक इंटरव्यू में किया था। पहले गायकी और फिर राजनीतिक में उतरना ये दौर भी बेहद दिलचस्प रहा है। पहले समाजवादी पार्टी से थे लेकिन 2014 के चुनाव से कुछ महीने पहले बीजेपी में शामिल हो गए। 

/ Updated: Feb 11 2020, 12:24 PM IST

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वीडियो डेस्क। भोजपुरी सिनेमा में अपना एक अलग मुकाम बनाने वाले अभिनेता आज राजनीति का एक जाना माना चेहरा हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं दिल्ली बीजेपी के प्रेदश अध्यक्ष मनोज तिवारी की। 1971 में जन्में मनोज तिवारी कभी टीचर बनना चाहते थे। गाना गाना उनका शॉक नहीं उनकी मजबूरी है। इस बात का जिक्र खुदे मनोज तिवारी ने एक इंटरव्यू में किया था। पहले गायकी और फिर राजनीतिक में उतरना ये दौर भी बेहद दिलचस्प रहा है। पहले समाजवादी पार्टी से थे लेकिन 2014 के चुनाव से कुछ महीने पहले बीजेपी में शामिल हो गए। 
मनोज तिवारी ने श्री कमलाकर चौबे आदर्श सेवा विद्यालय इंटरमीडिएट कॉलेज, वाराणसी से अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त की है। उन्होंने बीएचयू वाराणसी से स्नातक स्तर की पढ़ाई जारी रखी। उन्होंने M.P.Ed (शारीरिक शिक्षा के मास्टर) में डिग्री हासिल की। कॉलेज के बाद नौकरी के लिए परेशान मनोज तिवारी ने गाना गाना शुरू किया। जहां से वे एक गायक के तौर पर उभरे। मनोज तिवारी बिग बॉस सीजन 4 में भी दिखाई दिखाई दिए। बिग बॉस में रहने के दौरान उनका नाम श्वेता तिवारी से जुड़ा और उनकी शादी टूट गई। मनोज तिवारी की एक बेटी भी है जो उनके बेहद करीब है। मनोज तिवारी अपने मां के आदर्श हैं और हमेशा उनका आशीर्वाद लेने के बाद ही कोई काम शुभ काम करते हैं। 
मनोज तिवारी ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत उत्तर प्रदेश से की और लोकसभा चुनाव 2009 में सपा के टिकट पर योगी आदित्यनाथ के खिलाफ गोरखपुर से चुनाव लड़ा. यहां मनोज तिवारी को योगी आदित्यनाथ के सामने हार का मुंह देखना पड़ा. इसके बाद मनोज तिवारी BJP में आ गए। नवंबर 2016 में तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने दिल्ली प्रदेश बीजेपी की बागडोर मनोज तिवारी को सौंपी और राज्य में पार्टी को मजबूत करने का जिम्मा दिया गया. माना जाता है कि पिछले कुछ सालों में जिस तरह पूर्वांचल के लोगों की आबादी दिल्ली में बढ़ी है उसको ध्यान में रखते हुए ही यह फैसला लिया गया था. बीजेपी का यह फैसला काफी हद तक कारगर भी साबित हुआ। और मनोज तिवारी एक मजबूत राजनेता के रूप में उभरे