सार
आपने हमेशा फिल्मों में देखा होगा कि अपराधियों को सुबह के समय फांसी पर चढ़ाया जाता है। असल जिंदगी में भी जेल मैनुअल्स के मुताबिक भी फांसी का समय सुबह ही रखा गया है। लेकिन क्या आप इसका कारण जानते हैं?
भोपाल: किसी भी अपराधी को उसके जुर्म के हिसाब से कोर्ट सजा सुनाती है। अगर अपराधी ने अक्षम्य अपराध किया हो तभी उसे फांसी की सजा दी जाती है। इन्हें फांसी सुबह के समय दी जाती है, वो भी सूरज के निकलने से पहले। इसके पीछे एक ख़ास कारण है।
दरअसल, किसी की जान लेना इंसान को अशांत कर देता है। ऐसे में जल्लाद की दिन की शुरुआत किसी को मौत देकर ना हो, इसलिए फांसी का समय सूरज उगने से पहले का रखा जाता है। इसके अलावा इस समय इंसान का दिमाग सबसे ज्यादा शांत रहता है। और फांसी के वक्त अपराधी के शरीर में ज्यादा तड़पन और अकड़न नहीं होती। इसके अलावा अगर जेल मैनुअल्स की बात करें तो वहां सूर्योदय के बाद सारे काम शुरू होते हैं। ऐसे में फांसी के कारण कोई काम प्रभावित ना हो, इसलिए इसके लिए सूर्योदय से पहले का समय रखा जाता है।
अपराधी को फांसी देने से पहले नहलाया जाता है। इसके बाद वो पूजा-पाठ करता है। फांसी से पहले उसकी आखिरी ख्वाहिश पूछी जाती है, जिसे पूरा किया जाता है। फांसी देने के बाद जल्लाद इसके लिए भगवान से माफ़ी मांगता है। फांसी देने के 10 मिनट तक उसे लटका रहने दिया जाता है। इसके बाद डॉक्टर्स चेक करते हैं कि उसकी मौत हुई है या नहीं? पुष्टि होने पर उसे नीचे उतारा जाता है और इसके बाद कई पेपर वर्क के बाद शव को परिजनों को सौंप दी जाती है।