सार
विश्व बैंक ने चेतावनी दी है कि उच्च ऊर्जा, खाद्य कीमतों और कमजोर रुपये के कारण वित्त वर्ष 2023 में पाकिस्तान की मुद्रास्फीति बढ़कर 29.5 प्रतिशत तक पहुंच सकती है।
इस्लामाबाद: पाकिस्तान के मौजूदा हालात बद से बदतर हो रहे हैं। देश में महंगाई चरम पर है और विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खत्म होने के कगार पर है। ऐसे में सरकार के पास कर्मचारियों को तनख्वाह देने के लिए पैसे नहीं हैं, लोग खाने-पीने की चीजों के लिए तरस रहे हैं और पाकिस्तान के हुक्मरान बाहरी मुल्कों से भीख मांग रहे हैं। इस बीच विश्व बैंक ने चेतावनी दी है कि उच्च ऊर्जा, खाद्य कीमतों और कमजोर रुपये के कारण वित्त वर्ष 2023 में पाकिस्तान की मुद्रास्फीति बढ़कर 29.5 प्रतिशत तक पहुंच सकती है। इतना ही नहीं देश को फिलहाल कोई राहत मिलती नजर नहीं आ रही है।
वर्ल्ड बैंक ने महंगाई बढ़ने के साथ-साथ 0.4 प्रतिशत तक जीडीपी भी गिरने का भी अनुमान लगाया है। फिलहाल देश के लोग खाने-पीने की कमी और दवाओं की किल्लत से जूझ रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल की विनाशकारी बाढ़ के कारण कृषि उत्पादन में गिरावट देखने को मिल सकती है।
भारत से बेहतर थी हालत
आज पाकिस्तान की आर्थिरक स्थिति खराब हो रही है, लेकिन एक वक्त था जब पाकिस्तान की इकॉनोमी भारत से भी अच्छी स्थिति में थी। उस समय पाकिस्तान की Per Capita Income भारत से ज्यादा थी । इतना ही नहीं पाकिस्तान का एग्रिकल्चर सेक्टर भारत से कहीं अच्छा हुआ करता था। लेकिन ऐसा क्या हुआ कि पाकिस्तान धीरे धीरे कर्ज के बोझ के नीचे दबता गया और इसकी इकोनॉमी आज डूबने के कगार पर पहुंच गई है।
पाकिस्तान पर नहीं था कोई कर्ज
1947 में जब भारत का बंटवारा हुआ और पाकिस्तान बना, तो उस वक्त उसे भारत के राजस्व का 17 फीसदी और सेना का 35 फीसदी हिस्सा विरासत में मिला। यह रकम इतनी बड़ी थी कि बंटवारे के बाद पाकिस्तान के सिर पर किसी तरह का कोई कर्ज नहीं था। जानकारी के मुताबिक उस वक्त एक डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी रुपये की कीमत 3.31 रुपये थी। इसके अलावा पाकिस्तान के पास भारत के मुकाबले अच्छी उपजाऊ जमीन थी और कई प्रमुख नहरें भी पाकिस्तान के हिस्से आई थीं.
कश्मीर के लिए जंग
पाकिस्तान का शुरूआती दौर खुद को स्टेबल करने और कश्मीर को हासिल करने की जंग में ही गुजर गया। अगस्त 2022 में पाकिस्तान के वित्त मंत्रालय की ओर से जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक 1950 में पाकिस्तान की जीडीपी 3 बिलियन डॉलर थी और विकास दर 1.8% दर्ज की गई थी।
अयूब खान के समय हुआ विकास
अयूब खान के समय में पाकिस्तान ने नए सिरे से ग्रोथ करनी शुरू की। 1958 से 69 के बीच पाकिस्तान की इकोनॉमी का ग्रोथ रेट 5.82% रहा। पाकिस्तान में कई सुधार देखने को मिले और दक्षिण एशिया के किसी भी देश के मुकाबले पाकिस्तान 3 गुना ज्यादा तेजी से विकास कर रहा था।
1965 के बाद गिरा जीडीपी ग्रोथ रेट
हालांकि, अयूब खान के वक्त पाकिस्तान और तेज़ी से आगे बढ़ सकता था, लेकिन 1965 की जंग ने उसकी ग्रोथ को पीछे धकेल दिया। जंग के बाद उसकी ग्रोथ में अगले 5 साल में 20% की गिरावट दर्ज की गई। फिर आया 1971 का साल. पाकिस्तान के हुक्मरानों की गलत नीतियों ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए और बांग्लादेश पाकिस्तान से अलग हो गया.
पाकिस्तानी इकोनॉमी का डाउनफॉल
जुल्फिकार अली भुट्टो का झुकाव socialist economy की तरफ था. इसके चलते भुट्टो ने कई ऐसे फैसले लिए जो उस वक्त पाकिस्तान के लिए सही नहीं थे। उनके फैसलो ने उद्योगों को नुकसान पहुंचाया और विदेशी निवेशकों ने भी पाकिस्तान में निवेश करना बंद कर दिया। जब 1977 में जुल्फिकार अली भुट्टो को सत्ता से बेदखल किए गए, तो उस वक्त पाकिस्तान का जीडीपी 15.13 बिलियन डॉलर थी।
IMF से लगातार लेता रहा कर्ज
जिया-उल-हक का दौर पाकिस्तान की इकोनॉमी का सबसे सुनहरा दौर माना जाता है. हालांकि इस दौर में पाकिस्तान ने तरक्की तो की लेकिन अपने दम पर नहीं बल्कि बाहरी मुल्कों की मेहरबानी के बल पर। इस दौर में पाकिस्तान की ज्यादातर नीतियों को IMF ही सपोर्ट कर रहा था। असल में पाकिस्तान ने 1950 में ही IMF से जुड़ गया था। 1958 में उसने पहली बार IMF से 2.5 करोड़ डॉलर का कर्ज लिया था। फिर 1965, 1968, 1972, 1973, 1974, 1977 और 1980 तक पाकिस्तान IMF से करोड़ों डॉलर का कर्ज़ ले चुका था।
80 के दशक में अमेरिका से मिली बड़ी राशि
अफगान-सोवियत युद्ध के दौरान अफगानिस्तान में रूस को पीछे धकेलने के लिए अमेरिका को पाकिस्तान की मदद चाहिए थी। ऐसे में जिया-उल-हक ने इस मदद के बदले अमेरिका से अरबों डॉलर ऐंठ लिए। साथ ही साल 1983 में पाकिस्तान को अमेरिका से 3.2 बिलियन डॉलर की मदद मिली। इसके चलते पाकिस्तान ने उस वक्त IMF से कर्ज लेना बंद कर दिया।
सेना पर खर्चा
वक्त के साथ पाकिस्तान अपनी सेना पर काफी पैसा खर्च करता रहा और सरकारी खर्चे भी बढ़ गए.1988 में पाकिस्तान सरकार का कुल कर्ज 290 मिलियन डॉलर पहुंच गया। 1996 आते-आते पाकिस्तान का कर्ज 900 बिलियन डॉलर को पार कर चुका था। हालांकि उस वक्त पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति कुछ मामलों में भारत से बेहतर थी. 1990 के दशक के शुरूआती दौर में पाकिस्तान की per capita income भारत से 25% ज्यादा थी.
2003 से ग्रोथ रेट में तेजी से गिरावट
अमेरिका को आतंकवाद के खिलाफ फिर से पाकिस्तान की जरूरत पड़ी और पाकिस्तान की किस्मत फिर से चमक उठी। पाकिस्तन में फिर से पैसा फ्लो होने लगा था. 2001 से 2007 के बीच पाकिस्तान में विदेशी निवेश 17% तक बढ़कर GDP का 23% हो गया. और पाकिस्तान का घरेलू कर्ज भी GDP का 17.8% से कम होकर 16.1% रह गया था, लेकिन कोई दीर्घकालिक नीति नहीं होने के चलते पाकिस्तान का ये अच्छा दौर भी खत्म हो गया। 2007-08 में पाकिस्तान का ग्रोथ रेट पिछले साल के मुकाबले 37% तक नीचे आ गया। जिसके चलते यूसुफ़ रज़ा गिलानी की सरकार ने IMF से 7.6 बिलियन डॉलर का कर्ज लिया।
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2010 में बाढ़ से चरमराई अर्थव्यवस्था
फिर साल 2010 में आई भीषण बाढ़ ने पाकिस्तान के बुनियादी ढांचे और कृषि सेक्टर को काफी नुकसान पहुंचाया। 2013 में पहली बार डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी रुपया 100 के पार चला गया।
2018 से हालात और बिगड़ने लगे
2018 में इमरान खान के सत्ता संभालते ही पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था फिर डगमगाने लगी। इसके चलते पहले सऊदी अरब, फिर अमेरिका और उसके बाद चीन से पाकिस्तान ने कर्ज़ लिया। पाकिस्तान सरकार यहीं नहीं रूकी। हालत खराब होते देख 2019 में IMF से 1 बिलियन डॉलर का कर्ज ले लिया। फिर कोरोना महामारी ने पाकिस्तान की बची-खुची उम्मीद को भी खत्म कर दिया और आज़ादी के बाद पहली बार पाकिस्तान का GDP (-1.33%) माइनस में चला गया।