सार

अफ्रीका में पाए जाने वाले भृंगों के लार्वा प्लास्टिक खाकर पचा सकते हैं! यह खोज प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने में मददगार साबित हो सकती है। क्या यह प्रदूषण के अंत की शुरुआत है?

पृथ्वी के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक मानव निर्मित प्लास्टिक कचरा है। शोधकर्ता बताते हैं कि वायु प्रदूषण से भी ज़्यादा ख़तरनाक है प्लास्टिक से होने वाला नुकसान। इसकी वजह है कि प्लास्टिक जल-जीवों के आवास और पृथ्वी दोनों को प्रदूषित कर सकता है। दुनिया भर के शोधकर्ता प्लास्टिक कचरे से निपटने के तरीकों की तलाश में हैं। लेकिन, प्लास्टिक के प्रभावी निपटान के तरीके न मिलने पर, अब शोधकर्ता और पर्यावरण कार्यकर्ता प्लास्टिक के पुन: उपयोग पर ज़ोर दे रहे हैं। इसी बीच, एक कीड़े की अप्रत्याशित खोज ने इस क्षेत्र में बड़ी उम्मीद जगाई है। 

अफ्रीका में पाए जाने वाले, लेकिन अब दुनिया भर में फैल चुके, एल्फिटोबियस जीनस (Alphitobius Genus) के भृंगों के लार्वा प्लास्टिक को अलग कर सकते हैं, खा सकते हैं और पचा सकते हैं, यह केन्या के शोधकर्ताओं ने पाया है। इस नई खोज से अफ्रीका में प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने में मदद मिलने की उम्मीद है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया के केवल 5% प्लास्टिक का ही उत्पादन अफ्रीका में होता है, फिर भी यह दुनिया का दूसरा सबसे प्रदूषित महाद्वीप है। 

शोधकर्ताओं ने पाया कि ये मीलवर्म (mealworms) पॉलीस्टाइनिन नाम के एक प्रकार के प्लास्टिक को पचा सकते हैं, जो आमतौर पर स्टायरोफोम खाने (Styrofoam food) के बर्तनों और पैकेजिंग में पाया जाता है। यह पहली बार है जब इस प्रकार के कीड़ों की पहचान की गई है। शोधकर्ताओं का मानना है कि ये एक नई उप-प्रजाति हो सकती है। केन्या के इंटरनेशनल सेंटर ऑफ इंसेक्ट फिजियोलॉजी एंड इकोलॉजी (आईसीआईपीई) की वैज्ञानिक फातिया खामिस ने कहा कि यह पहली बार है जब अफ्रीका के कीड़ों में ऐसी क्षमता पाई गई है। इस बारे में एक शोध पत्र पिछले सितंबर में साइंटिफिक रिपोर्ट्स जर्नल में प्रकाशित हुआ था। 

शोध के दौरान, शोधकर्ताओं ने देखा कि लार्वा दिए गए पॉलीस्टाइनिन का 50% तक खा सकते हैं। साथ ही, उन्होंने यह भी पाया कि अगर प्लास्टिक को चोकर जैसे अनाज के पाउडर या खाने की चीज़ों के साथ मिलाया जाए, तो वे ज़्यादा प्लास्टिक खा सकते हैं। इन मीलवर्म की आंतों में मौजूद बैक्टीरिया प्लास्टिक में बंद पॉलिमर को तोड़ सकते हैं। इसके अलावा, क्लुवेरा (Kluyvera), लैक्टोकोकस (Lactococcus), और क्लेबसिएला (Klebsiella) जैसे सूक्ष्मजीव पॉलीस्टाइनिन के अवशोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि ये सूक्ष्मजीव प्लास्टिक को पचाने वाले एंजाइम (Enzymes) का उत्पादन करते हैं। शोधकर्ताओं ने दावा किया कि इस तरह से जैविक रूप से प्लास्टिक पचाने से लार्वा को कोई नुकसान नहीं होता है। 

शोधकर्ताओं का निष्कर्ष है कि यह नई खोज भविष्य में प्लास्टिक कचरा प्रबंधन के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। प्लास्टिक को तोड़ने और उसे खाने योग्य बनाने वाले एंजाइम (Enzymes) और बैक्टीरियल स्ट्रेन (Bacterial strains) की खोज से प्लास्टिक के पुन: उपयोग को बढ़ावा मिलेगा। साथ ही, शोधकर्ताओं का कहना है कि भविष्य में प्लास्टिक को जानवरों के चारे के लिए उच्च मूल्य वाले कीट प्रोटीन में बदलना संभव हो सकता है। इस बीच, शोधकर्ता इवालीन एंडोटोनो ने कहा कि वे इस बात का अध्ययन करेंगे कि क्या इन लार्वा में पहले से ही प्लास्टिक पचाने वाले एंजाइम मौजूद थे या प्लास्टिक खाने के बाद उन्हें यह विशेष क्षमता मिली।