सार

प्रोफेशन अनुभवी पत्रकारों और सेक्युरिटी स्पेशलिस्ट के ग्रुप नार्डिक रिसर्च एंड मानिटरिंग नेटवर्क(Nordic Monitor) ने तुर्की की मदद से पाकिस्तान द्वारा भारत और अमेरिका के खिलाफ साइबर आर्मी बनाने की साजिश का भंडाफोड़ किया है।

वर्ल्ड न्यूज डेस्क. प्रोफेशन अनुभवी पत्रकारों और सेक्युरिटी स्पेशलिस्ट के ग्रुप नार्डिक रिसर्च एंड मानिटरिंग नेटवर्क(Nordic Monitor) ने तुर्की की मदद से पाकिस्तान द्वारा भारत और अमेरिका के खिलाफ साइबर आर्मी बनाने की साजिश का भंडाफोड़ किया है। नॉर्डिक मॉनिटर ने अपनी वेबसाइट पर कुछ तस्वीरें भी शेयर की हैं, जिनसे खुलासा होता है कि कैसे पाकिस्तान और तुर्की मिलकर षड्यंत्र को पूरा करने में जुटे रहे। पढ़िए एक चौंकाने वाला खुलासा...

AKP ने सोशल मीडिया के जरिये अपने आलोचकों पर साइबर हमलों के लिए टीमों की स्थापना की थी।

अमेरिका और भारत के खिलाफ हमले की तैयारी
नार्डिक मॉनिटर ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया है कि तुर्की ने पाकिस्तान के साथ सीक्रेट ढंग से द्विपक्षीय समझौता(bilateral agreement) किया, जिसके तहत एक साइबर सेना(cyber army) तैयार की गई। यानी ऐसे साइबर एक्सपर्ट, जो भारत और अमेरिका पर साइबर अटैक करने में माहिर साबित हों। इस साइबर आर्मी का इस्तेमाल लोकल पॉलिटिकल टॉर्गेट के लिए भी किया गया था। इसके बाद अमेरिका और भारत पर साइबर अटैक करने में भी हुआ। यही नहीं, इस साइबर आर्मी ने पाकिस्तानी सरकार के खिलाफ सोशल मीडिया पर हो रहे विद्रोह या आलोचना पर नकेल कसने में भी किया गया।

तुर्की के आंतरिक मंत्री सुलेमान सोयलू (R) ने 17 दिसंबर, 2018 को इस्लामाबाद में तत्कालीन आंतरिक राज्य मंत्री शहरयार खान अफरीदी से मुलाकात की थी।

इमरान खान की सरकार ने रची थी साजिश
नार्डिक मॉनिटर ने अपनी वेबसाइट पर समझौते के दौरान की कुछ तस्वीरें भी शेयर की हैं। इसमें लिखा गया कि तुर्की ने गुप्त रूप से पाकिस्तान के प्रति सकारात्मक राय बनाने, दक्षिण पूर्व एशिया में मुसलमानों के विचारों को प्रभावित करने, अमेरिका और भारत पर हमला करने और पाकिस्तानी शासकों के खिलाफ की गई आलोचना को कम करने में मदद की है।

17 दिसंबर, 2018 को तुर्की के इंटरनल मिनिस्टर सुलेमान सोयलू( Suleyman Soylu) ने अपने अपने समकक्ष शहरयार खान अफरीदी (तत्कालीन आंतरिक राज्य मंत्री) के बीच एक निजी बातचीत के दौरान ऐसी यूनिट तैयार करने की दिशा में पहली बार मेज पर कोई प्रपोजल रखा गया था। इस मामले पर गहन चर्चा हुई  थी। सीनियर लेवल पर और इस्लामाबाद के इंटीरियर मिनिस्ट्री के अधिकांश कर्मचारियों से इसे गोपनीय रखा था। उसी दिन सोयलू के साथ बैठक के दौरान तत्कालीन प्रधान मंत्री इमरान खान ने भी इस योजना को हरी झंडी दिखाई थी।

तुर्की के आंतरिक मंत्री सुलेमान सोयलू और उनके प्रतिनिधिमंडल ने 17 दिसंबर, 2018 को इस्लामाबाद में तत्कालीन आंतरिक राज्य मंत्री शहरयार खान अफरीदी और उनके प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की थी।

सोयलू ने खुद किया खुलासा
इस सीक्रेट ऑपरेशन की पहली सार्वजनिक स्वीकृति सोयलू ने 13 अक्टूबर, 2022 को तुर्की के कहारमनमारस(Kahramanmaraş) शहर में एक लोकल टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में दौरान की थी। हालांकि उन्होंने पाकिस्तान का नाम नहीं लिया, लेकिन उनकी बातचीत से साफ हो चुका था कि वे इसी देश के बारे में बात कर रहे थे। दरअसल, उन्होंने बातचीत में एक ऐसे देश का उल्लेख किया था, जो तुर्की से पांच या छह घंटे की सीधी उड़ान पर है।

नॉर्डिक मॉनिटर ने खुलासा किया कि अपने पूर्ववर्तियों के विपरीत सोयलू ने तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन(Recep Tayyip Erdoğan) की ओर से साइबर स्पेस में ट्रोल और बॉट सेना चलाने में कुख्याति प्राप्त की है और सितंबर 2016 में गृह मंत्री बनने से पहले भी उन्होंने इस तरह के गुप्त अभियानों पर काम किया था। बता दें कि बॉटनेट या बॉट आर्मी(Botnets or 'bot armies) दुर्भावनापूर्ण साफ्टवेयर(malicious software) के बड़े ग्रुप्स हैं, जो काफी दूर बैठकर भी साइबर अटैक को लॉन्च कर सकते हैं।

यह भी जानिए
सोयलू जब 2014 में एक रिसर्च एंड डेवलपमेंट पोर्टफोलियो के साथ एर्दोआन की सत्तारूढ़ जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी (इसे अंग्रेजी में संक्षेप में AKP कहते हैं,  तुर्की में इसका रोमन रूप Adalet ve Kalkınma Partisi है) के उपाध्यक्ष थे, तब उन्होंने गुप्त रूप से एक बड़ी ट्विटर टीम का गठन किया था, जो प्रमुख सामाजिक और राजनीतिक डेटा को तोड़-मरोड़कर विरोधियों को अपमानजनक भाषा के साथ टॉर्गेट करती थी। ये वो लोग रहे, जो AKP को को पसंद नहीं करते थे। संसदीय रिकॉर्ड के अनुसार, सोयलू ने उस समय 6,000 स्ट्रांग ट्रोल आर्मी को कंट्रोल किया था।

सोयलू ने अपनी साइबर आर्मी का विस्तार तब किया, जब वह इंटीरियर मिनिस्टर बने। उन्होंने निजी क्षेत्र में पहले से कार्यरत कई गुर्गों को पुलिस विभाग की साइबर अपराध इकाई में स्थानांतरित कर दिया, भले ही उनके पास कोई कानून प्रवर्तन पृष्ठभूमि(law enforcement background) नहीं थी और न ही साइबर से संबंधित अपराधों की जांच में कोई ट्रेनिंग थी। 

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