सार
आज (13 नवंबर, शनिवार) आंवला नवमी (Amla navami 2021) है। इसे अक्षय नवमी भी कहते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करनी चाहिए। आंवला नवमी पर पानी में आंवले का रस मिलाकर स्नान करने का विशेष महत्व है। साथ ही, जो लोग इस नवमी पर आंवले की पूजा करते हैं, उन्हें देवी लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त मिलती है।
उज्जैन. ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार, आंवला नवमी के संबंध में मान्यता है कि प्राचीन समय में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर देवी लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष के नीचे शिवजी और विष्णुजी की पूजा की थी। तभी से इस तिथि पर आंवले के पूजन की परंपरा चली आ रही है। रविवार और सप्तमी तिथि पर आंवले के सेवन से बचना चाहिए। साथ ही, शुक्रवार और माह की प्रतिपदा तिथि, षष्ठी, नवमी, अमावस्या तिथि और सूर्य के राशि परिवर्तन वाले दिन आंवले का सेवन न करें।
आंवले में है त्रिदेवों का वास
पद्मपुराण के अनुसार, आंवला साक्षात विष्णु का ही स्वरूप है। यह विष्णु प्रिय है। इस पेड़ को याद कर के मन ही मन प्रणाम करने भर से ही गोदान के बराबर फल मिलता है। इसे छूने से दोगुना और प्रसाद स्वरूप इसका फल खाने से तीन गुना फल मिलता है। ग्रंथों में ये भी कहा गया है कि इसके मूल में भगवान विष्णु, ऊपर ब्रह्मा, स्कंद में रुद्र, शाखाओं में मुनिगण, टहनियों में देवता, पत्तों में वसु, फूलों में मरुद्गण और फलों में प्रजापति का वास होता है। इसलिए ग्रंथों में आंवले को सर्वदेवयी कहा गया है ।
आयुर्वेद में आंवला का महत्व
- आयुर्वेद में आंवले का महत्व काफी अधिक है। कई बीमारियों में आंवले का उपयोग अलग-अलग रूप में किया जाता है। आंवले का रस, चूर्ण और आंवले का मुरब्बा ये सभी हमारे स्वास्थ्य को लाभ पहुंचाते हैं।
- आंवले का रस पानी में मिलाकर स्नान से त्वचा संबंधी कई रोगों में लाभ मिलता है। आंवले के रस के सेवन से त्वचा की चमक भी बढ़ती है। आंवले का रस नियमित रूप से पीने से विटामिन सी की कमी पूरी होती है।
- कार्तिक महीने के दौरान शरद ऋतु रहती है। इस वक्त शरीर में पित्त बढ़ता है। एसिडिटी और इनडाइजेशन से बचने के लिए ऋषियों ने इस पर्व पर आंवला खाने की परंपरा बनाई है। आंवला शरीर में बढ़े पित्त को नियंत्रित करता है। लंबे समय तक आंवला खाने से कई तरह की बीमारियां खत्म होने लगती है।
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