सार
धर्म ग्रंथों के अनुसार, देवताओं के गुरु बृहस्पति हैं। इसलिए इन्हें देवगुरु भी कहा जाता है। इनसे संबंधित अनेक कथाएं पुराणों में पढ़ने को मिलती हैं। बृहस्पति ब्रह्माजी के मानस पुत्र महर्षि अंगिरा के सबसे पहले पुत्र बताए गए हैं। इनके दो अन्य भाइयों के नाम उतथ्य और संवर्त है।
उज्जैन. बृहस्पति अपने एक रूप से देव पुरोहित के रूप में इंद्रसभा-ब्रह्मसभा में रहते हैं और दूसरे रूप से ग्रह के रूप में नक्षत्रमंडल में निवास करते हैं। वैसे तो और भी देवताओं का वर्णन शास्त्रों में मिलता है, लेकिन बृहस्पति ही कैसे देवताओं के गुरु बने। इसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। आज हम आपको इससे जुड़ी कथा के बारे में बता रहे हैं, जो इस प्रकार है…
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बृहस्पति कैसे बने देवगुरु?
स्कंदपुराण के अनुसार, देवगुरु बृहस्पति ने एक समय काशी में शिवलिंग की स्थापना कर घोर तपस्या की। तपस्या करते हुए दस हजार वर्ष बीत गए, तब महादेव प्रसन्न होकर उस शिवलिंग से प्रकट हुए।
शिवजी ने बृहस्पति से कहा “मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं, अपना वर मांगो। तब बृहस्पति ने भगवान शिव की स्तुति करते हुए कहा कि ”हे जगन्नाथ! आप भक्तों का उद्धार करने वाले हैं। आपके दर्शनों से ही मैं कृतकृत्य हो गया हूं। मेरी समस्त कामनाएं पूरी हो गई हैं। अत: अब मुझे और कुछ भी नहीं चाहिए।
बृहस्पति की ऐसी स्तुति सुनकर महादेव ने और भी अधिक प्रसन्न होकर अनेक वर दिए और कहा “हे आंगिरस। तुमने बहुत बड़ा तप किया है इसलिए तुम इंद्रादि देवताओं के गुरु के रूप में पूजे जाओगे।
महादेव ने आगे कहा कि “हे देवताओं के गुरु। तुम बड़े वक्ता और विद्वान हो, इसलिए तुम्हारा नाम वाचस्पति भी होगा। जो प्राणी तुम्हारे द्वारा स्थापित इस बृहस्पतिश्वर लिंग की आराधना करेगा और तुम्हारे द्वारा की गई स्तुति का पाठ करेगा उसकी हर इच्छा पूरी होगी और उसे ग्रहों से संबंधित भी कोई दोष नहीं होगा। इतना कहकर महादेव ने सभी देवताओं को बुलाकर बृहस्पति को देवाचार्य तथा देवगुरु के पद पर प्रतिष्ठित कर दिया।
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ज्योतिष में गुरु ग्रह
ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति को धनु और मीन राशि का स्वामी माना गया है। कर्क इस ग्रह की उच्च राशि है, जबकि मकर नीच राशि है। ज्योतिष की दुनिया में गुरु ज्ञान, शिक्षक, शिक्षा, बड़े भाई, संतान, धार्मिक कार्य, पवित्र स्थल, दान, पुण्य, धन और वृद्धि आदि का कारक माना गया है।
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