सार

Geeta Jayanti 2022: वैसे तो हिंदू धर्म में अनेक ग्रंथ हैं, लेकिन इन सभी में गीता का विशेष महत्व है। वैसे तो गीता महाभारत की एक हिस्सा है, लेकिन इसे श्रीमद्भागवत गीता के रूप में अलग ग्रंथ माना जाता है। सिर्फ इसी ग्रंथ की जयंती भी मनाई जाती है।
 

उज्जैन. धर्म ग्रंथों के अनुसार, अगहन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को निमित्त बनाकर सारे संसार को गीता का उपदेश दिया था। गीता से मोक्ष की प्राप्ति संभव है इसलिए इस दिन मोक्षदा एकादशी (Mokshada Ekadashi 2022) का व्रत भी किया जाता है। इस बार गीता जयंती (Geeta Jayanti 2022) का पर्व 4 दिसंबर, रविवार को मनाया जाएगा। इस तिथि पर कृष्ण मंदिरों में विशेष आयोजन किए जाते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार, श्रीकृष्ण और अर्जुन के अलावा भी गीता को कई बार बोला व सुना गया। गीता जयंती के मौके परर हम आपको यही बता रहे हैं कि गीता का उपदेश, कब, किसने, किसको दिया…


सबसे पहले सूर्यदेव को मिला गीता का उपदेश
सभी लोग ये मानते हैं की गीता का उपदेश सबसे पहले श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था, लेकिन ऐसा नहीं है। जब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दे रहे हैं थे, तभी उन्होंने कहा था कि ये उपदेश वे पहले सूर्यदेव को दे चुके हैं। तब अर्जुन ने कहा था कि सूर्यदेव को प्राचीन देवता है, आप उन्हें उपदेश कैसे दे सकते हैं। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि इसके पहले भी तुम्हारे और मेरे जन्म हो चुके हैं। तभी मैंने ये उपदेश सूर्य देव को सुनाया था।


महर्षि वेदव्यास ने भगवान श्रीगणेश को
जब महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की तो श्रीगणेश ने उसे लिपिबद्ध किया। महर्षि वेदव्यास महाभारत के श्लोक बोलते जाते और श्रीगणेश उसे लिखते जाते थे। इसी दौरान महर्षि वेदव्यास ने गीता के श्लोक भी बोले जिसे श्रीगणेश ने महाभारत में लिखा। इस दौरान महर्षि वेदव्यास ने गीता का उपदेश श्रीगणेश को दिया।


संजय ने सुनाई धृतराष्ट्र को
धृतराष्ट्र महाभारत युद्ध का हाल जानना चाहते थे, इसके लिए महर्षि वेदव्यास ने उनके सारथी संजय को दिव्य दृष्टि का वरदान दिया। इधर भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे है, ठीक उसी समय संजय अपनी दिव्य दृष्टि से उस घटना का वर्णन राजा धृतराष्ट्र को सुना रहे थे।
 

वैशम्पायन ने राजा जनमेजय को
पांडवों के वंश में राजा परीक्षित के बाद जनमेजय राजा बने। एक दिन महर्षि वेदव्यास जनमेजय की सभा में आएं, वहां राजा जनमेजय ने अपने पूर्वजों (पांडव व कौरवों) के बारे में महर्षि वेदव्यास से पूछा। तब महर्षि वेदव्यास के कहने पर उनके शिष्य वैशम्पायन ने राजा जनमेजय की सभा में संपूर्ण महाभारत सुनाई थी। इसी दौरान उन्होंने गीता का उपदेश भी वहां उपस्थित लोगों को दिया था।


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