सार
धर्म ग्रंथों के अनुसार, पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रुक्मिणी अष्टमी (Rukmini Ashtami 2021) का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये तिथि 27 दिसंबर, शनिवार को है। मान्यता है कि द्वापर युग में इसी तिथि पर देवी रुक्मिणी जी का जन्म हुआ था।
उज्जैन. पुराणों में रुक्मिणीजी (goddess rukmini) को मां लक्ष्मी का ही अवतार माना गया है। वे श्रीकृष्ण की प्रमुख पटरानियों में से एक और विदर्भ नरेश भीष्मक की पुत्री थीं। श्रीकृष्ण, देवी रुक्मिणी और राधा जी का जन्म भी अष्टमी पर हुआ था। यही कारण है कि अष्टमी को धार्मिक मान्यताओं में शुभ माना जाता है। आगे जानिए रुक्मिणी अष्टमी का महत्व और पूजा विधि...
श्रीकृष्ण-रुक्मिणी विवाह
रुक्मिणी जी के पिता भीष्मक उनका विवाह शिशुपाल से करना चाहते थे, लेकिन देवी रुक्मिणी, श्रीकृष्ण को अपना पति मान चुकी थीं। शिशुपाल से विवाह वाले दिन रुक्मिणी पूजा के लिए मंदिर गईं थीं वहीं से रथ पर सवार श्री कृष्ण उन्हें अपने रथ में बैठा कर द्वारिका ले गए और देवी के साथ विवाह किया। श्रीकृष्ण-रुक्मिणी के पुत्र प्रद्युम्न कामदेव हुए अत: अष्टमी के दिन इनकी पूजा जरूर करें।
ये है रुक्मिणी अष्टमी का महत्व
रुक्मिणी अष्टमी के दिन देवी की पूजा से धन-धान्य की वृद्धि होती है और दांपत्य जीवन में सुख-शांति बढ़ती है। संतान की प्राप्ति भी होती है। रुक्मिणी अष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण के साथ देवी का पूजन करने से जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति होती है।
इस विधि से करें देवी रुक्मिणी की पूजा
1. रुक्मिणी अष्टमी के दिन प्रात: जल्दी उठकर स्नान कर व्रत और पूजन का संकल्प लें।
2. चौकी पर देवी रुक्मिणी और भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
3. पूजा में दक्षिणावर्ती शंख में जल भर कर अभिषेक करें। श्रीकृष्ण को पीला और देवी को लाल वस्त्र अर्पित करें।
4. भगवान को कुमकुम और देवी को सिंदूर अर्पित करें और इसके बाद सभी को हल्दी, इत्र और फूल चढ़ाएं।
5. पूजा में तुलसी व खीर का भोग लगा कर घी का दीपक जलाएं और कर्पूर की आरती करें। शाम के समय पुन: पूजन-आरती करके फलाहार लें।
6. इस दिन रात्रि जागरण करें। अगले दिन नवमी को व्रत को पूर्ण करें, तत्पश्चात इस व्रत का पारण करें।
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