सार
हमारे देश में कई प्रसिद्ध धार्मिक आयोजन किए जाते हैं, जो देश-विदेश में भी प्रसिद्ध है। उड़ीसा के पुरी में निकाली जाने वाली जगन्नाथ रथयात्रा भी इनमें से एक है। हर साल आषाढ़ मास में यह रथयात्रा निकाली जाती है।
उज्जैन. जगन्नाथ रथयात्रा (Jagannath Rath Yatra 2022) में शामिल होने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी भक्त यहां आते हैं। इस बार जगन्नाथ रथयात्रा की शुरूआत 1 जुलाई, शुक्रवार से हो रही है। रथयात्रा शुरू होने से 15 दिन पहले यानी ज्येष्ठ पूर्णिमा पर मंदिर के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं, कोई भी भगवान के दर्शन नहीं कर पाता। ऐसा कहा जाता है कि इन 15 दिनों में भगवान जगन्नाथ बीमार रहते हैं, इसलिए वे आराम करते हैं और किसी को दर्शन नहीं देते। इस मान्यता से जुड़ी एक कथा भी है, जो इस प्रकार है…
- प्राचीन कथा के अनुसार, प्राचीन समय में भगवान जगन्नाथ के एक परमभक्त थे, उनका नाम माधवदास था। जब माधवदास छोटे थे, तभी उनके माता-पिता का स्वर्गवास हो गया। उनका बचपन काफी परेशानियों में बीता, लेकिन उनकी भक्ति में कोई कमी नहीं आई।
- युवक होने पर उनका विवाह हुआ, लेकिन कुछ ही दिनों बाद उनकी पत्नी का देहांत हो गया। लेकिन इसके बाद भी वे निरंतर भगवान जगन्नाथ की सेवा करते रहे। भगवान जगन्नाथ की सेवा-पूजा में वे किसी तरह की कोई कमी नहीं रखते थे और पूरी श्रद्धा से ये कार्य करते थे।
- एक बार माधवदास काफी बीमार हो गए। मंदिर के अन्य सेवकों ने उनकी मदद करनी चाही लेकिन उन्होंने मना कर दिया और स्वयं भी भगवान जगन्नाथ की पूजा करते रहे। बीमारी के चलते वे बहुत कमजोर हो गए और एक दिन पूजा करते-करते ही बेहोश हो गए।
- भगवान जगन्नाथ से अपने भक्त की ऐसी दशा देखी नहीं गई और वे स्वयं सेवक के रूप में प्रकट होकर माधवदास की सेवा करने लगे। भगवान द्वारा सेवा करने से माधवदास जल्दी ही स्वस्थ हो गए और उन्हें इस बात का अहसास हो गया कि ये सेवक नहीं बल्कि स्वयं भगवान जगन्नाथ हैं।
- आग्रह करने से प्रभु जगन्नाथ प्रकट हुए। माधवदास भगरवान के चरणों में गिर पड़े और प्रभु से माफी मांगी। माधवदास ने कहा कि “भक्त प्रभु की सेवा करते हैं, प्रभु नहीं।” जिसे सुनने के बाद प्रभु जगन्नाथ ने माधवदास को गले लगा लिया।” माधवदास ने भगवान जगन्नाथ से पूछा कि “आप तो सर्वशक्तिमान हैं, आप तो मुझे ऐसे ही ठीक कर देते तो फिर आपने मेरी सेवा क्यों की।”
- भगवान जगन्नाथ ने कहा कि “हर इंसान को अपने कर्मों का फल भुगतना पड़ता है, अगर तुम अभी ये परेशानी नहीं उठाते तो तुम्हें अगले जन्म में ये दर्द सहना पड़ता इसलिए मैंने तुम्हारी सेवा की है लेकिन अब जो तुम्हारे कष्ट के 15 दिन शेष हैं, वो मैं ले लेता हूं।” ऐसा कहकर भगवान वहां से चले गए।
- यही कारण है कि रथयात्रा के पहले दिन पहले भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ जाते हैं और किसी को दर्शन नहीं देते। माना जाता है कि ये बात आषाढ़ माह की है और इसलिए रथयात्रा के ठीक पहले 'जगन्नाथ' 15 दिनों के लिए बीमार पड़ जाते हैं और उन्हें एकांतवास में रखा जाता है।
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