सार

दुनिया में कई तरह के लोग होते हैं। इनमें से कुछ होते हैं जो अपनी क्षमता का अनुमान नहीं लगा पाते और दूसरों पर ही पूरी तरह से निर्भर हो जाते हैं। ऐसे लोग हमेशा सोचते हैं कि अचानक हमारे लिए मौका आएगा और हम अमीर हो जाएंगे।

उज्जैन. कुछ लोग कर्म से ज्यादा किस्मत पर विश्वास करते हैं। ये सोच ही इन्हें मेहनत करने से भी रोक देती है। Asianetnews Hindi Life Management सीरीज चला रहा है। इस सीरीज के अंतर्गत आज हम आपको ऐसा प्रसंग बता रहे हैं जिसका सार यही है दूसरों पर निर्भर न रहकर हमें खुद की क्षमता को पहचानना चाहिए।

आलसी आदमी को साधु ने दिखाया सही रास्ता
एक गाँव में एक आलसी आदमी रहता था। वह कुछ काम-धाम नहीं करता था। बस दिन भर निठल्ला बैठकर सोचता रहता था कि किसी तरह कुछ खाने को मिल जाये। एक दिन वह यूं ही घूमते-घूमते आम के एक बाग में पहुँच गया। वहाँ रसीले आमों से लदे कई पेड़ थे। रसीले आम देख उसके मुँह में पानी आ गया और आम तोड़ने वह एक पेड़ पर चढ़ गया, लेकिन जैसे ही वह पेड़ पर चढ़ा, बाग का मालिक वहाँ आ पहुँचा।
बाग़ के मालिक को देख आलसी आदमी डर गया और जैसे-तैसे पेड़ से उतरकर वहाँ से भाग खड़ा हुआ। भागते-भागते वह गाँव में बाहर स्थित जंगल में जा पहुँचा। वह बुरी तरह से थक गया था, इसलिए एक पेड़ के नीचे बैठकर सुस्ताने लगा। तभी उसकी नज़र एक लोमड़ी पर पड़ी। उस लोमड़ी की एक टांग टूटी हुई थी और वह लंगड़ाकर चल रही थी। लोमड़ी को देख आलसी आदमी सोचने लगा कि ऐसी हालत में भी इस जंगली जानवरों से भरे जंगल में ये लोमड़ी बच कैसे गई? इसका अब तक शिकार कैसे नहीं हुआ?
जिज्ञासा में वह एक पेड़ पर चढ़ गया और वहाँ बैठकर देखने लगा कि अब इस लोमड़ी के साथ आगे क्या होगा? कुछ ही पल बीते थे कि पूरा जंगल शेर की भयंकर दहाड़ से गूंज उठा, जिसे सुनकर सारे जानवर डरकर भागने लगे. लेकिन लोमड़ी अपनी टूटी टांग के साथ भाग नहीं सकती थी. वह वहीं खड़ी रही।
शेर लोमड़ी के पास आने लगा। आलसी आदमी ने सोचा कि अब शेर लोमड़ी को मारकर खा जायेगा. लेकिन आगे जो हुआ, वह कुछ अजीब था। शेर लोमड़ी के पास पहुँचकर खड़ा हो गया और उसके मुँह में मांस का एक टुकड़ा था, जिसे उसने लोमड़ी के सामने गिरा दिया। लोमड़ी इत्मिनान से मांस के उस टुकड़े को खाने लगी। थोड़ी देर बाद शेर वहाँ से चला गया।
यह घटना देख आलसी आदमी सोचने लगा कि भगवान सच में सर्वेसर्वा है। उसने धरती के समस्त प्राणियों के लिए, चाहे वह जानवर हो या इंसान, खाने-पीने का प्रबंध कर रखा है। वह अपने घर लौट आया। घर आकर वह 2-3 दिन तक बिस्तर पर लेटकर प्रतीक्षा करने लगा कि जैसे भगवान ने शेर के द्वारा लोमड़ी के लिए भोजन भिजवाया था, वैसे ही उसके लिए भी कोई न कोई खाने-पीने का सामान ले आएगा।
लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। भूख से उसकी हालात ख़राब होने लगी। आख़िरकार उसे घर से बाहर निकलना ही पड़ा। घर के बाहर उसे एक पेड़ के नीचे बैठे हुए बाबा दिखाए पड़े। वह उनके पास गया और जंगल का सारा वृतांत सुनाते हुए वह बोला, “बाबा जी! भगवान मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं? उनके पास जानवरों के लिए भोजन का प्रबंध है. लेकिन इंसानों के लिए नहीं।”
बाबा जी ने उत्तर दिया, “बेटा! ऐसी बात नहीं है। भगवान के पास सारे प्रबंध है। दूसरों की तरह तुम्हारे लिए भी। लेकिन बात यह है कि वे तुम्हें लोमड़ी नहीं शेर बनाना चाहते हैं।”

सीख
हम सबके भीतर क्षमताओं का असीम भंडार है। बस अपनी अज्ञानतावश हम उन्हें पहचान नहीं पाते और स्वयं को कमतर समझकर दूसरों की सहायता की प्रतीक्षा करते रहते हैं। स्वयं की क्षमता पहचानिए। दूसरों की सहायता की प्रतीक्षा मत करिए। इतने सक्षम बनिए कि आप दूसरों की सहायता कर सकें।


 

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