सार
पूरे वर्ष में कुल मिलाकर 24 एकादशी (Ekadashi 2021) के व्रत पड़ते हैं। इनमें श्रावण (Sawan) मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी का बहुत महत्व होता है। इसे पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi 2021) कहा जाता है। इस बार ये एकादशी 18 अगस्त, बुधवार को है। सच्चे मन से यह व्रत करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi 2021) व्रत करने से वाजपेयी यज्ञ के बराबर पुण्यफल की प्राप्ति होती है।
उज्जैन. इस बार 18 अगस्त, बुधवार को पुत्रदा एकादशी का व्रत किया जाएगा। संतान प्राप्ति के लिए ये व्रत किया जाता है। जो लोग पूरी श्रद्धा के साथ पुत्रदा एकादशी (Putrda Ekadashi 2021) व्रत के महत्व और कथा को पढ़ता या श्रवण करता है। उसे कई गायों के दान के बराबर फल की प्राप्ति होती है। समस्त पापों का नाश हो जाता है। किसी प्रकार का कष्ट है तो भी यह व्रत रखने से सारे कष्ट दूर होते हैं। व्रत और पूजा विधि इस प्रकार है...
पुत्रदा एकादशी मुहूर्त (Putrda Ekadashi 2021 Muhurat)
एकादशी तिथि प्रारम्भ- 18 अगस्त की रात 3:20 बजे
एकादशी तिथि समाप्त – 19 अगस्त की रात 01:05 बजे
पुत्रदा एकादशी (Putrda Ekadashi 2021) व्रत और पूजा विधि
1. पुत्रदा एकादशी की सुबह स्नान आदि करने के बाद किसी साफ स्थान पर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद शंख में जल लेकर प्रतिमा का अभिषेक करें।
2. भगवान विष्णु को चंदन का तिलक लगाएं। चावल, फूल, अबीर, गुलाल, इत्र आदि से पूजा करें। इसके बाद दीपक जलाएं।
3. पीले वस्त्र अर्पित करें। मौसमी फलों के साथ आंवला, लौंग, नींबू, सुपारी भी चढ़ाएं। इसके बाद गाय के दूध से बनी खीर का भोग लगाएं।
4. दिन भर कुछ खाएं नहीं। संभव न हो तो एक समय भोजन कर सकते हैं। रात को मूर्ति के पास ही जागरण करें। भगवान के भजन गाएं।
5. अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन कराएं। इसके बाद ही उपवास खोलें। इस तरह व्रत और पूजा करने से योग्य संतान की प्राप्ति होती है।
पवित्रा व्रत की कथा इस प्रकार है
भद्रावती राज्य में सुकेतुमान नाम के राजा थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। एक दिन राजा का मन इस बात को लेकर बहुत विचलित हो गया तो वे जंगल चले गए। जंगल में राजा को एक ऋषि मिले। राजा ने उन्हें अपनी समस्या बताई। राजा की चिंता सुनकर मुनि ने उनसे सपरिवार सावन मास के शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने को कहा। राजा ने पूरी श्रृद्धा से ये व्रत किया। इसके व्रत के फलस्वरूप रानी ने कुछ दिनों बाद गर्भ धारण किया और नौ माह बाद राजा को पुत्र की प्राप्ति हुई।
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