सार
आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima 2021) कहते हैं। इस बार ये तिथि 20 अक्टूबर, बुधवार को है। कुछ धर्म ग्रंथों में इसे कोजागर या कोजागरी पूर्णिमा भी कहा गया है।
उज्जैन. मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात भगवती महालक्ष्मी यह देखने के लिए घूमती हैं कि कौन जाग रहा है और जो जाग रहा है महालक्ष्मी उसका कल्याण करती हैं तथा जो सो रहा होता है वहां महालक्ष्मी नहीं ठहरती। लक्ष्मीजी के को जागर्ति (कौन जाग रहा है?) कहने के कारण ही इस व्रत का नाम कोजागर व्रत पड़ा है।
शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima 2021) के शुभ मुहूर्त
पूर्णिमा तिथि शुरू 19 अक्टूबर शाम 7:03 से
पूर्णिमा तिथि समाप्त 20 अक्टूबर 8:26 सायं
चंद्रोदय 17:14 (20 अक्टूबर)
निशिता काल पूजा का समय- 20 अक्टूबर रात 12:37 से
इस विधि से करें पूजा
- शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima 2021) की रात माता लक्ष्मी के सामने शुद्ध घी का दीया जलाकर गंध, फूल आदि से उनकी पूजा करें। इसके बाद 11, 21 या 51 अपनी इच्छा के अनुसार दीपक जलाकर मंदिरों, बाग-बगीचों, तुलसी के नीचे या भवनों में रखना चाहिए।
- सुबह होने पर स्नान आदि करने के बाद देवराज इंद्र का पूजन कर ब्राह्मणों को घी-शक्कर मिश्रित खीर का भोजन कराकर वस्त्र आदि की दक्षिणा और सोने के दीपक देने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
- इस दिन श्रीसूक्त, लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ ब्राह्मण द्वारा कराकर कमलगट्टा, बेल या पंचमेवा अथवा खीर द्वारा दशांश हवन करवाना चाहिए। इस व्रत से धन-धान्य, मान-प्रतिष्ठा आदि सभी सुखों की प्राप्ति होती है।
कोजागर (Sharad Purnima 2021) व्रत की कथा
- किसी समय मगध में वलित नामक एक गरीब ब्राह्मण रहता था। ब्राह्मण जितना सज्जन था उसकी पत्नी उतनी ही दुष्ट थी। वह ब्राह्मण की दरिद्रता को लेकर रोज उसे ताने देती थी। यहां तक की पूरे गांव में भी वह अपने पति की निंदा ही किया करती थी। पति के विपरीत आचरण करना ही उसने अपने धर्म बना लिया था।
- धन की चाह में वह रोज अपने पति को चोरी के लिए उकसाया करती थी। एक बार श्राद्ध के समय ब्राह्मण की पत्नी ने पूजन में रखे सभी पिण्डों को उठाकर कुएं में फेंक दिया। पत्नी की इस हरकत से दु:खी होकर ब्राह्मण जंगल में चला गया, जहां उसे नाग कन्याएं मिलीं। उस दिन आश्विन मास की पूर्णिमा थी।
- नागकन्याओं ने ब्राह्मण को रात्रि जागरण कर लक्ष्मी को प्रसन्न करने वाला कोजागर व्रत करने को कहा। ब्राह्मण ने ऐसा ही किया। इस व्रत के प्रभाव से ब्राह्मण के पास अतुल धन-सम्पत्ति हो गई। भगवती लक्ष्मी की कृपा से उसकी पत्नी की बुद्धि भी निर्मल हो गई और वे दंपती सुखपूर्वक रहने लगे।
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