सार

धर्म ग्रंथों के अनुसार मृतक का श्राद्ध (Shradh Paksha 2021) पुत्र द्वारा ही किया जाता है। पुत्र के द्वारा पिंडदान करने से मृतक की आत्मा को शांति मिलती है। किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद किए जाने वाले संस्कार उसका पुत्र ही करता है।

उज्जैन. शास्त्रों के अनुसार, पुत्र ही पिता को पुं नामक नरक से मुक्ति दिलाता है। इसलिए उसे पुत्र कहते हैं- पुं नाम नरक त्रायेताति इति पुत्रः। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार, पुत्र द्वारा पिंडदान, तर्पण आदि करने पर ही पिता की आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है। लेकिन पुत्र न हो तो उसके स्थान पर श्राद्ध (Shraddha Paksha 2021), पिंडदान आदि कौन कर सकता है, इस संबंध में भी धर्म ग्रंथों में संपूर्ण जानकारी दी गई है, जो इस प्रकार है...

1. पिता का श्राद्ध (Shraddha Paksha 2021) पुत्र को ही करना चाहिए। पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है। पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में संपिंडों (एक ही परिवार के) को श्राद्ध करना चाहिए।
2. एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राद्ध करता है। पुत्री का पति एवं पुत्री का पुत्र भी श्राद्ध के अधिकारी हैं। पुत्र के न होने पर पौत्र (पोता) या प्रपौत्र (पड़पोता) भी श्राद्ध कर सकते हैं।
3. पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र के न होने पर विधवा स्त्री श्राद्ध कर सकती है। पत्नी का श्राद्ध पति तभी कर सकता है, जब कोई पुत्र न हो। पुत्र, पौत्र या पुत्री का पुत्र न होने पर भतीजा भी श्राद्ध कर सकता है।
4. गोद लिया पुत्र भी श्राद्ध का अधिकारी है। कोई न होने पर राजा को उसके धन से श्राद्ध करने का विधान है।

अपनी जमीन या तीर्थ स्थान पर ही क्यों करना चाहिए पिंडदान (Shraddha Paksha 2021)?
श्राद्ध पितरों को प्रसन्न करने का एक माध्यम होता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार, श्राद्ध स्वयं की भूमि या घर पर ही करना श्रेष्ठ होता है, किसी दूसरे के घर में या भूमि पर श्राद्ध कभी नहीं करना चाहिए। जिस भूमि पर किसी का स्वामित्व न हो सार्वजनिक हो, ऐसी भूमि पर श्राद्ध किया जा सकता है। शास्त्रीय निर्देश हैं कि-

परकीय प्रदेशेषु पितृणां निवषयेत्तुय: तद्भूमि स्वामि पितृभि: श्राद्ध कर्म विहन्यते।
अर्थ-
दूसरे के घर में जो श्राद्ध किया जाता है, उसमें श्राद्ध करने वाले के पितरों को कुछ नहीं मिलता। गृह स्वामी के पितृ बलपूर्वक सब छीन लेते हैं।

तीर्थदृष्टगुणं पुण्यं स्वगृहे ददत: शुभे।
अर्थ-
तीर्थ में किए गए श्राद्ध से भी आठ गुना पुण्य श्राद्ध अपने घर में करने से होता है।

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