Khatu Shyam News: खाटू श्याम मंदिर हादसे में 3 की मौत, यहां रोज आते हैं लाखों भक्त, लेकिन आज इतनी भीड़ क्यों?

राजस्थान के सीकर में प्रसिद्ध खाटू श्याम मंदिर (Khatu Shyam Mandir News)  में सोमवार को सुबह भगदड़ मचने से तीन लोगों की मौत हो गई। कई घायलों का इलाज स्थानीय अस्पताल में चल रहा है।

Manish Meharele | Published : Aug 8, 2022 3:57 AM IST / Updated: Aug 08 2022, 10:00 AM IST

उज्जैन. 8 अगस्त, सोमवार को पुत्रदा एकादशी (Putrda Ekadashi 2022) होने से यहां हजारों की संख्या में भक्त रात से ही दर्शन के लिए लाइन में खड़े थे। सुबह जैसे ही मंदिर के पट खुले, अंदर जाने के लिए श्रृद्धालुओ में होड़ मच गई, इसी दौरान कई भक्त नीचे गिर पड़े। घटना सुबह 4 से 5 बजे के बीच की बताई जा रही है। बताया जा रहा है नियमानुसार रविवार की रात 11 बजे मंदिर के पट बंद कर दिए गए थे, इसके बाद भी भक्तों की हजारों से संख्या में पट खुलने के इंतजार में रात से ही खड़े रहे और सुबह होते ही ये हादसा हो गया।

एकादशी पर ही क्यों होती है खाटू मंदिर में भीड़?
एकादशी तिथि का हिंदू धर्म में बहुत पवित्र तिथि माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की पूजा विशेष रूप से की जाती है। माना जाता है कि इस तिथि पर भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की पूजा से सभी संकट दूर हो जाते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार, द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने भीम के पौत्र बर्बरीक (खाटू श्याम) को ये वरदान दिया था कि कलयुग में तुम्हें मेरे नाम से पूजा जाएगा। इसलिए इन्हें श्याम नाम से पूजा जाता है। चूंकि एकादशी तिथि श्रीकृष्ण को प्रिय है, इसलिए इसी तिथि पर उनके नाम से पूजे जाने वाले भगवान श्याम के भक्त इस दिन व्रत-पूजा आदि करते हैं और मंदिर में दर्शन के लिए भी जाते हैं। यही कारण है पुत्रदा एकादशी तिथि होने से खाटू श्याम मंदिर में भक्तों की काफी भीड़ थी और ये हादसा हो गया।

भगवान श्रीकृष्ण ने क्यों दिया बर्बरीक को अपना नाम?
पुराणों के अनुसार, भीम के बेटे घटोत्कच का विवाह दैत्य राजकुमारी मोरवी से हुआ था। इनसे बर्बरीक नाम का परम भक्तिशाली पुत्र पैदा हुआ। बर्बरीक ने अपनी तपस्या से कई दिव्य अस्त्र-शस्त्र प्राप्त किए। जब महाभारत युद्ध होने वाला था तब बर्बरीक ने प्रण किया वे कमजोर पक्ष की ओर से युद्ध करेंगे। श्रीकृष्ण जानते थे यदि बर्बरीक ने कौरवों की ओर ये युद्ध किया तो पांडवों की हार तय है। ऐसी स्थिति में श्रीकृष्ण ने चतुराई पूर्वक बर्बरीक से दान में उसका सिर मांग लिया। बर्बरीक ने ऐसा ही किया। इसलिए इन्हें शीशदानी के नाम से भी जाना जाता है। बर्बरीक के बलिदान से प्रभावित होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि वे कलयुग में उनके 'श्याम' नाम से पूजे जाएंगे।


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