श्रीरामचरित मानस: अहंकार से विद्वान, नशे से शर्म और मंत्रियों की गलत सलाह से राजा नष्ट हो जाता है

रामायण में कई ऐसी नीतियां बताई गई हैं, जिन्हें जीवन में उतार लेने से हमारी कई समस्याएं खत्म हो सकती हैं। श्रीरामचरित मानस के अरण्य कांड में शूर्पणखा और रावण का एक प्रसंग है। इस प्रसंग में शूर्पणखा ने रावण को बताया था किन बुराइयों की वजह से हमारे गुण खत्म हो सकते हैं ।

Asianet News Hindi | Published : May 5, 2021 3:55 AM IST

उज्जैन. रामायण में कई ऐसी नीतियां बताई गई हैं, जिन्हें जीवन में उतार लेने से हमारी कई समस्याएं खत्म हो सकती हैं। श्रीरामचरित मानस के अरण्य कांड में शूर्पणखा और रावण का एक प्रसंग है। इस प्रसंग में शूर्पणखा ने रावण को बताया था किन बुराइयों की वजह से हमारे गुण खत्म हो सकते हैं ।

ये है शूर्पणखा और रावण का प्रसंग
अरण्य कांड में जब लक्ष्मण ने शूर्पणखा के नाक-कान काट दिए, तब वह रावण के पास गई और राम-लक्ष्मण से बदला लेने को कहा। उस समय शूर्पणखा ने रावण बताया कि किन बुराइयों की वजह से संन्यासी, राजा और गुणवान व्यक्ति नष्ट हो जाते हैं।

चौपाई
संग तें जती कुमंत्र ते राजा। मान ते ग्यान पान तें लाजा।।
प्रीति प्रनय बिनु मद ते गुनी। नासहिं बेगि नीति अस सुनी।।

अर्थ- शूर्पणखा कहती है कि वासना और लालच से संन्यासी, मंत्रियों की गलत सलाह से राजा नष्ट हो सकता है। अहंकार से ज्ञान और विद्वान व्यक्ति बर्बाद हो सकता है। नशे से शर्म खत्म हो जाती है। विनम्रता के बिना प्रेम खत्म हो जाता है। ये नीति मैंने सुनी है।

लाइफ मैनेजेमेंट सूत्र…
1.
जो संन्यासी लालच और वासना के बारे में विचार करता रहता है, उसे न तो मोक्ष मिल पाता है और न माया। वो मोक्ष के द्वार के पास जाकर भी खाली हाथ लौट आता है और अपनी इन बुराइयों की वजह से अंतत: नष्ट हो जाता है।
2. जो राजा बिना सोचे-समझे मंत्रियों की गलत सलाह भी मान लेता है, वह निश्चित ही एक दिन नष्ट हो जाता है। इसलिए राजा को चाहिए कि किसी एक मंत्री की सलाह न मानकर मंत्रिमंडल से परामर्श लेकर ही उचित कार्य करे।
3. जिस व्यक्ति में अहंकार की भावना होती है, वो विद्वान और ज्ञानी होने के बाद भी किसी काम का नहीं, क्योंकि उसकी ये एक बुराई सभी अच्छाइयों को खत्म कर देती है।
4. जो व्यक्ति नशा करता है वह बेशर्म हो जाता है यानी गलत काम करते हुए भी उसे किसी प्रकार की लज्जा नहीं आती। ऐसा व्यक्ति जल्दी ही नष्ट हो जाता है।
5. जिस प्रेम में विनम्रता न हो, ऐसा प्रेम किसी काम का नहीं। प्रेम देने का नाम है न कि लेने का। जिस व्यक्ति में विनम्रता न हो, उसमें देने की भावना भी नही होती।

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