महात्मा विदुर हस्तिनापुर राज्य के महामंत्री थे। उन्होंने समय-समय पर पांडवों पर हो रहे अन्याय का प्रतिकार किया और अंत तक युद्ध रोकने का प्रयास किया। महात्मा विदुर हमेशा धृतराष्ट्र को अनेक उदाहरणों से सही राह दिखाने का प्रयास करते थे। एक श्लोक के द्वारा विदुर ने कुछ लोगों की स्थितियों का जिक्र करते हुए धृतराष्ट्र को समझाया हैं कि मनुष्य का व्यवहार कब कैसा होना चाहिए।
उज्जैन. महात्मा विदुर हस्तिनापुर राज्य के महामंत्री थे। उन्होंने समय-समय पर पांडवों पर हो रहे अन्याय का प्रतिकार किया और अंत तक युद्ध रोकने का प्रयास किया। महात्मा विदुर हमेशा धृतराष्ट्र को अनेक उदाहरणों से सही राह दिखाने का प्रयास करते थे। एक श्लोक के द्वारा विदुर ने कुछ लोगों की स्थितियों का जिक्र करते हुए धृतराष्ट्र को समझाया हैं कि मनुष्य का व्यवहार कब कैसा होना चाहिए।आगे जानिए इससे संबंधित खास बातें…
षडेते ह्यमन्यते नित्यं पूर्वोपकारिणाम।।
आचार्य शिक्षिताः शिष्याः कृतदारश्र्च मातरम् ।।
नावं निस्तीर्णकान्तारा आतुराश्र्च चिकित्सकम्।।
गुरु का अपमान
जब तक शिष्य को अपने गुरु से शिक्षा से मिलती है, तब तक वह उनका सम्मान करता है। जब उसे लगता है कि अब गुरु के पास देने को कुछ नहीं है तो वह उसी गुरु का अपमान करते हैं जिससे उन्होंने सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया है।
ईश्वर से बड़ा मां का दर्जा
भगवान हर समय बच्चों के साथ नहीं रहता। इसी कमी को पूरा करने के लिए मां को बनाया है। मां अपने बच्चे की हर जिद पूरा करती है व उसके लिए बड़े से बड़े खतरे को स्वयं ही सह लेती है। विवाह हो जाने के बाद वही बेटा पत्नी की ओर अधिक आकर्षित हो जाता है और मां के प्रति अपनी जिम्मेदारियां भूल जाता है।
मतलबी लोगों की पहचान
अगर किसी व्यक्ति का कोई कार्य फंसा है और कोई उसकी सहायता कर रहा है तो वह काम पूरा हो जाने तक उसके आगे पीछे लगा रहेगा। काम पूरा हो जाने के बाद वह उस इंसान को भूल जाता है। कहीं मुलाकात हुई भी तो ऐसे व्यवहार करेगा जैसे उसे जानता ही नहीं है। ऐसे लोग मतलबी होते हैं। वह सिर्फ अपने काम के लिए लोगों को याद करते हैं।
नाविक का साथ नदी तक ही
नदी में बहती लहरों को पार करने के बाद भी व्यक्ति नाव का साथ छोड़ देता है। नदी पार करने के बाद वह उसे घाट पर ही छोड़कर चला जाता है। नाव नदी पार करने में उसका साथ देती है। फिर भी उसका साथ नदी तक ही सीमित है। इसीलिए नाव और नाविक यात्री से संबंध नहीं जोड़ते हैं।
चिकित्सक से भी बीमारी तक रिश्ता
रोगी पुरुष बीमारी तक ही डॉक्टर की सलाह को मानते हैं। रोग सही हो जाने के बाद वह डॉक्टर को धन्यवाद भी नहीं कहते हैं। बीमारी तक वह समय पर ही डॉक्टर के पास पहुंचेंगे और उसकी हर बातों का सम्मान करेंगे। सही हो जाने पर डॉक्टर की सही बातें भी उसे खराब लगने लगती हैं।
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