परंपरा: मंदिर की परिक्रमा करते समय कौन-सा मंत्र बोलें और किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

जब भी किसी मंदिर जाते हैं या घर में पूजा-पाठ करते हैं तो भगवान का ध्यान करते हुई परिक्रमा जरूर करनी चाहिए।

Asianet News Hindi | Published : Nov 12, 2019 4:06 AM IST

उज्जैन. परिक्रमा करना किसी भी देवी-देवता की पूजा का महत्वपूर्ण अंग है। मान्यता है कि परिक्रमा से पापों का नाश होता है। यहां जानिए परिक्रमा से जुड़ी खास बातें...

परिक्रमा करते समय ध्यान रखें ये बातें
1.
भगवान की मूर्ति और मंदिर की परिक्रमा हमेशा दाहिने हाथ से शुरू करना चाहिए। जिस दिशा में घड़ी के कांटे घूमते हैं, उसी प्रकार मंदिर में परिक्रमा करनी चाहिए।
2. मंदिर में स्थापित मूर्तियों सकारात्मक ऊर्जा होती है, जो कि उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवाहित होती है। बाएं हाथ की ओर से परिक्रमा करने पर इस सकारात्मक ऊर्जा से हमारे शरीर का टकराव होता है, जो कि अशुभ है। जाने-अनजाने की गई उल्टी परिक्रमा हमारे व्यक्तित्व को नुकसान पहुंचा सकती है। दाहिने का अर्थ दक्षिण भी होता है, इसी वजह से परिक्रमा को प्रदक्षिणा भी कहा जाता है।

परिक्रमा करते समय मंत्र बोलें
यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च। तानि सवार्णि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे-पदे।।
इस मंत्र का अर्थ यह है कि हमारे द्वारा जाने-अनजाने में किए गए और पूर्वजन्मों के भी सारे पाप प्रदक्षिणा के साथ-साथ नष्ट हो जाए। परमपिता परमेश्वर मुझे सद्बुद्धि प्रदान करें।

किस देवता की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए?
सूर्यदेव की सात, श्रीगणेश की चार, श्रीविष्णु की पांच, दुर्गा की एक, शिव की आधी प्रदक्षिणा करें। शिवजी की मात्र आधी ही प्रदक्षिणा की जाती है, जिसके पीछे मान्यता है कि जलधारी का उल्लंघन नहीं किया जाता है। जलधारी तक पंहुचकर परिक्रमा को पूर्ण मान लिया जाता है।
 

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