कोरोना वायरस के मरीजों में दिख रहे हैं 5 तरह के रैशेज, स्पेन के डॉक्टरों ने शुरू की स्टडी

Published : May 04, 2020, 06:14 PM IST
कोरोना वायरस के मरीजों में दिख रहे हैं 5 तरह के  रैशेज, स्पेन के डॉक्टरों ने शुरू की स्टडी

सार

कोरोना वायरस के मरीजों में लक्षणों में लगातार बदलाव दिखाई पड़ रहा है। हाल ही में कुछ मरीजों की उंगलियों और शरीर के दूसरे हिस्सों में चकत्ते दिखाई पड़े। यह देख कर डॉक्टर भी हैरान रह गए। बाद में स्पेन के डॉक्टरों ने इससे संबंधित स्टडी शुरू की।

हेल्थ डेस्क। कोरोना वायरस के मरीजों में लक्षणों में लगातार बदलाव दिखाई पड़ रहा है। हाल ही में कुछ मरीजों की उंगलियों और शरीर के दूसरे हिस्सों में चकत्ते दिखाई पड़े। यह देख कर डॉक्टर भी हैरान रह गए। बाद में स्पेन के डॉक्टरों ने इससे संबंधित स्टडी शुरू की। इन डॉक्टरों ने अध्ययन में पाया कि कोरोना के मरीजों में 5 तरह के चकत्ते दिखाई दे रहे हैं, जिनमें कोविड-टो यानी पंजों या पैरों की उंगलियों पर आया रैशेज भी शामिल है। ये रैशेज जवान लोगों और बच्चों में निकलते देखे गए।

रैशेज निकलना कोई बड़ी बात नहीं
कुछ डॉक्टरों का कहना है कि वायरस का इन्फेक्शन होने पर रैशेज निकलना कोई बड़ी बात नहीं है। चिकेन पॉक्स जैसी वायरल बीमारी में फुंसियां निकलती हैं। लेकिन शोधकर्ता कोरोना के मरीजो में कई तरह के रैशेज दिखाई पड़ने से अचरज में हैं। कोविड-टो यानी कोरोना के मरीजों के पैरों की उंगलियों में रैशेज निकलने से संबंधित कई रिपोर्टें आ चुकी हैं। स्पेनिश डॉक्टरों की रिसर्च टीम के हेड डॉक्टर इग्नेशियो गार्सिया डोवाल का कहना है कि सबसे सामान्य रैशेड मैकुलोपैपुल्स था, जो लाल चकत्ते होते हैं। 

डॉक्टर हैं हैरान
डॉक्टर डोवाल ने कहा कि अलग-अलग तरह के रैशेज का निकलना अजीब ही बात है। इनमें से कुछ खास तरह के ही रेशेज हैं। उन्होंने कहा कि ये रैशेज सांस की तकलीफ होने के बाद दिखते हैं। इससे यह पता चल पाना मुश्किल है कि ये इन्फेक्शन के लक्षण हैं। जिन मरीजों पर रिसर्च किया गया, वे सब अस्पताल में भर्ती थे और उन्हें सांस की तकलीफ थी। यह रिसर्च इसी हफ्ते ब्रिटिश जर्नल ऑफ डर्मेटोलॉजी में प्रकाशित हुआ है। 

5 तरह के हैं रैशेज
कोरोना के मरीजों में निकलने वाले ये रैशेज 5 तरह के हैं। कुछ मरीजों में ये रैशेज करीब 12 दिन तक रहे। करीब 19 फीसदी मरीजों में ऐसे रैशेज दिखे। मरीजों की पीठ और हाथों पर छाले निकले, जिनमें खुजली होती थी। ये छाले युवा और अधेड़ उम्र के मरीजों में भी दिखे। छाले करीब 10 दिन तक रहे और दूसरे लक्षणों से पहले नजर आए। कुछ इस तरह के रैशेज दिखे, जिन्हें मैकुलोपैपुल्स कहते हैं। ये छोटे, चपटे और लाल होते हैं। ये करीब 7 दिन तक रहते हैं और दूसरे लक्षणों के साथ ही दिखाई देते हैं। ये उन मरीजों में दिखाई देते हैं, जिनमें इन्फेक्शन ज्यादा गंभीर होता है। करीब 47 फीसदी मरीजों में ये रैशेज दिखे। कुछ रैशेज को लिवेडो या नेक्रोसिस के रूप में पहचाना गया। इसमें त्वचा पर लाल या नीली फुंसियां हो जाती हैं। ये रैशेज बुजुर्ग मरीजों में दिखे जो गंभीर रूप से बीमार थे। 

कई कारणों से निकलते हैं रैशेज
शोधकर्ताओं का कहना है कि वायरल बीमारियों में कई कारणों से रैशेज निकलते हैं। आम आदमी के लिए इन्हें समझ पाना मुश्किल है। ब्रिटिश एसोसिएशन ऑफ डर्मेटोलॉजिस्ट्स के अध्यक्ष डॉक्टर रूथ मर्फी का कहना है कि इस अध्ययन का मतलब यह नहीं है कि लोगों को खुद अपने संक्रमित होने का पता लगाने में मदद मिले, बल्कि यह समझने में मदद करना है कि यह संक्रमण लोगों पर किस तरह से असर डालता है। साउथैम्पटन यूनिवर्सिटी के प्रमुख डॉक्टर माइकल हेड का कहना है कि निमोनिया सहित कई वायरल संक्रमणों में रैशेज निकलते हैं। अमेरिकन एकेडमी ऑफ डर्मेटोलॉजी में भी कोरोना मरीजों की स्किन पर दिखने वाले  रैशेज के बारे में स्टडी की जा रही है।

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