बकरी की इस नस्ल से 6 साल में बनती है शाही शॉल, लाखों में बेची जाती

Kashmiri Pashmina Shawls So Expensive: कश्मीर की पहचान पश्मीना शॉल अपनी नरम, हल्की और गर्म विशेषताओं के लिए दुनियाभर में मशहूर है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह शाही शॉल कैसे बनती है और इतनी महंगी क्यों होती है?

फैशन डेस्क : दिवाली आने वाली है और इसी के साथ सर्द शामों ने दस्तक देनी शुरू कर दी है। सर्दियों का फैशनेबल कलेक्शन भी मार्केट में आना शुरू हो गया है ऐसे में आज हम आपको इस एक खास शॉल के बारे में बताने वाले हैं जिसके चाहने वाले देश-विदेश तक हैं। इस शॉल का नाम पश्मीना शॉल है जिसे खरीदना हर दूसरी औरत की चाहत होती है। कश्मीर की पहचान पश्मीना शॉल एक सुपर हाई क्वालिटी वाली शॉल होती है, जो पश्मीना ऊन से बनाई जाती है। यह ऊन खासतौर पर कश्मीर और लद्दाख क्षेत्र में पाए जाने वाले चांगथांगी बकरियों (Changthangi Goats) से मिलती है। यह शॉल अपनी नरम, हल्की और गर्म विशेषताओं के लिए दुनियाभर में फेमस है और इसे सदियों से एक लग्जरी फैब्रिक के रूप में पहचाना जाता है।

पश्मीना शॉल क्या है?

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पश्मीना शब्द फारसी भाषा से लिया गया है, जिसका मतलब है ऊन। लेकिन यह कोई साधारण ऊन नहीं है, बल्कि चांगथांगी बकरियों से मिलने वाला अत्यधिक मुलायम और हल्का ऊन होता है। पश्मीना शॉल को खासतौर पर सिर्फ और सिर्फ हाथ से बुना जाता है और इसे कश्मीरी कारीगर बड़ी सावधानी और धैर्य से बनाते हैं। यह शॉल शुद्ध ऊन से बनाई जाती है, जो प्राकृतिक रूप से गर्म होती है और ठंडे मौसम में शरीर को गरमाहट देती है।

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पश्मीना शॉल कैसे बनती है?

ऊन को चांगथांगी बकरियों से तब प्राप्त किया जाता है, जब वे अपने गर्म ऊन को गर्मियों के दौरान प्राकृतिक रूप से छोड़ती हैं। यह ऊन बहुत ही मुलायम होता है और ऊन को इकट्ठा करने के बाद इसे सफाई और रिफाइन किया जाता है। इसके बाद ऊन को धुलकर उसकी गंदगी और अन्य अशुद्धियों को हटा दिया जाता है। फिर इसे पारंपरिक तरीकों से हाथ से काता (स्पिन) जाता है, ताकि पतले और मजबूत धागे बनाए जा सकें।

पश्मीना शॉल की खासियक ही यही है कि इसे हाथ से बुना जाता है। यह एक धीमी प्रक्रिया है जिसमें बहुत लंबा समय और कौशल की आवश्यकता होती है।बुनाई के दौरान इसे बहुत ध्यानपूर्वक और धैर्यपूर्वक किया जाता है, ताकि शॉल की मुलायमता और गुणवत्ता बनाए रखी जा सके। 2015 में राष्ट्रीय गौरव अवार्ड से भी सम्मानित हो चुके जम्मू कश्मीर के शिल्पकार निसार अहमद खान को पश्मीना कानी शॉल को बनाने के लिए जाना जाता है। वो बताते हैं कि एक असली पश्मीना शॉल बनाने में छह साल का समय लग जाता है। इन शॉल की कीमत भी 2-7 लाख रुपये रहती है।

पश्मीना शॉल की कढ़ाई और डिजाइन

कई बार शॉल पर कश्मीरी कढ़ाई (कश्मीरी एंब्रायडरी) की जाती है, जिससे इसे और भी सुंदर और कीमती बनाया जाता है। कढ़ाई के डिजाइन में पारंपरिक कश्मीरी मोटिफ, फूल, बेल और जटिल पैटर्न शामिल होते हैं।

पश्मीना शॉल इतनी महंगी क्यों होती है?

कच्चे माल की दुर्लभता: चांगथांगी बकरियां सिर्फ हिमालय के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाई जाती हैं, और उनकी संख्या सीमित होती है। यह बकरियों की नस्ल साल में केवल एक बार ऊन देती है, और वह भी बहुत कम मात्रा में, जो इसे दुर्लभ बनाता है।

शुद्धता और गुणवत्ता: पश्मीना ऊन बहुत ही मुलायम और हाई क्वालिटी का होता है, जो सामान्य ऊन की तुलना में कहीं अधिक नरम और हल्का होता है। इसकी शुद्धता और विशिष्टता इसे महंगा बनाती है।

हाथ से बुनाई और कारीगरी: हाथ से बुनाई का काम बहुत ही धीमा और लंबी मजदूरी वाला होता है। एक शॉल को तैयार करने में कई हफ्ते या महीनों और सालों का समय लग सकता है। इसके साथ की गई कारीगरी इसे और भी कीमती बनाती है।

कला और डिजाइन: कई बार शॉल पर की गई कश्मीरी कढ़ाई इसे और भी महंगा बना देती है। यह कढ़ाई विशेष कारीगरों द्वारा की जाती है, जो पीढ़ियों से इस कला में पारंगत होते हैं। यह शॉल बेहद हल्की होती है लेकिन उतनी ही गर्म होती है, जिससे यह ठंडे मौसम में पहनने के लिए एक आदर्श विकल्प बन जाती है।

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