अक्सर देखने में आता है कि लोग बहुत ही कम उम्र के बच्चों को स्मार्टफोन दे देते हैं। अक्सर वर्किंग मदर्स डेढ़ से दो साल के बच्चों को भी स्मार्टफोन चला कर दे देती हैं। इससे बच्चे को जो गंभीर नुकसान हो सकता है, उसका उन्हें अंदाज नहीं होता।
लाइफस्टाइल डेस्क। अक्सर देखने में आता है कि लोग बहुत ही कम उम्र के बच्चों को स्मार्टफोन दे देते हैं। अक्सर वर्किंग मदर्स डेढ़ से दो साल के बच्चों को भी स्मार्टफोन चला कर दे देती हैं। इससे बच्चे को जो गंभीर नुकसान हो सकता है, उसका उन्हें अंदाज नहीं होता। यह अलग बात है कि बच्चा स्मार्टफोन पर चलने वाले वीडियो और गेम्स में उलझा रहता है और पेरेन्ट्स को तंग नहीं करता, लेकिन बाद में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। वैसे तो समार्टफोन का ज्यादा इस्तेमाल किसी भी उम्र के बच्चे या जवान आदमी को भी नहीं करना चाहिए, लेकिन जो पेरेन्ट्स 2 साल तक के बच्चों को स्मार्टफोन दे रहे हैं, वे बच्चे के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। जानें, इससे क्या हो सकते हैं गंभीर नुकसान।
1. बच्चे की आंखें हो सकती हैं खराब
स्मार्टफोन के ज्यादा इस्तेमाल से जब बड़े लोगों की आंखों पर बुरा असर पड़ सकता है, तो समझा जा सकता है कि इससे 2-3 साल के बच्चों की आंखों पर कितना बुरा असर पड़ेगा। ऐसे बच्चे जो 2 साल की उम्र में ही स्मार्टफोन या दूसरे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के संपर्क में आ रहे हैं, 5 साल की उम्र तक उन्हें चश्मा लग सकता है। इसके अलावा भी उनकी आंखों को इस हद तक नुकसान हो सकता है, जिसे पूरी तरह ठीक कर पाना मुमकिन नहीं होगा।
2. मानसिक रूप से हो सकता है कमजोर
बहुत कम उम्र में स्मार्टफोन और गैजेट्स के संपर्क में आने वाले बच्चे मानसिक रूप से कमजोर हो सकते हैं। स्मार्टफोन का दिमाग के कुछ क्रिया-कलापों पर सही असर नहीं पड़ता है। इससे बच्चा आगे चल कर दिमागी तौर पर कमजोर हो सकता है।
3. गैजेट का हो सकता है एडिक्शन
कम उम्र में स्मार्टफोन पर वीडियो देखने और गेम खेलने से बच्चे में गैजेट का एडिक्शन पैदा हो सकता है। यह एडिक्शन बच्चे के मानसिक और शारीरिक विकास में बाधक बनता है। बच्चा अपना ज्यादा से ज्यादा समय स्मार्टफोन देखते हुए बिताना चाहता है। इससे दूसरी जरूरी गतिविधियों से वह दूर होता चला जाता है।
4. पढ़ाई में जाता है पिछड़
जो बच्चे अपना ज्यादा समय स्मार्टफोन या दूसरे गैजेट्स को देखने में बिताते हैं, वे अक्सर पढ़ाई में पिछड़ जाते हैं। दरअसल, उन्हें किताबें पढ़ने का समय नहीं मिल पाता है। उनकी दुनिया गूगल तक सिमट कर रह जाती है। वे सोचते हैं कि जब उनके पास स्मार्टफोन में गूगल है तो अब किताबें पढ़ने की क्या जरूरत है। ऐसे बच्चे पढ़ाई में कभी बेहतर नहीं कर पाते।
5. वर्चुअल वर्ल्ड को ही समझते हैं सच
जो बच्चे ज्यादातर समय स्मार्टफोन या दूसरे गैजेट्स पर गुजारते हैं, वे वास्तविकता से कट जाते हैं। उन्हें वर्चुअल वर्ल्ड ही रियल लगने लगता है। इसके अलावा, वे सेल्फ सेंटर्ड हो जाते हैं। उन्हें दूसरे लोगों की ज्यादा परवाह नहीं रह जाती। जब वास्तविक जीवन में समस्याएं और चुनौतियां उनके सामने आती हैं, तो वे उनका सामना नहीं कर पाते हैं। ऐसे बच्चे आगे चल कर समाज से तो कट ही जाते हैं, कई तरह की मनोविकृतियों के भी शिकार हो सकते हैं।