देश में हर दिन कोरोना के लाखों केस आ रहे रहे हैं। हजारों लोग मर भी रहे हैं, जबकि ठीक होने वालों की तादाद लाखों में है। फिर भी, इंसान मरने वालों का आंकड़ा देखकर डर और खौफ में जी रहा है। सबको लग रहा है हर कोई इस वायरस की चपेट में आ जाएगा, जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है। सावधानी, बचाव और पॉजिटिव सोच रखने वाले शख्स से यह बीमारी कोसों दूर भागती है।
लखनऊ (उत्तर प्रदेश) । 16 से 26 अप्रैल का वो समय आज भी मुझे याद है। यह वो दौर था जब देश में कोरोना के बढ़ते संक्रमण के कारण ऑक्सीजन और बेड के लिए हाहाकार मचा हुआ था। इसी दौरान 16 अप्रैल को 90 साल की मां, पत्नी, भाभी और भाई साहब संक्रमित हो गए। घर में रखी बेसिक दवाइयां देना स्टार्ट कर दिया। डॉक्टर से भी जनरल मेडिसिन पूछकर लिया लेकिन, तीसरे दिन उनकी हालत देखकर लगा अब सबको अस्पताल ले जाना ही पड़ेगा। मन में बुरे और डरावने ख्याल जरूर आ रहे थे लेकिन, हमने हार नहीं मानने की प्रतिज्ञा कर ली थी। कोरोना को हराने वाले लोगों से प्रेरणा मिली, हम हरा देंगे का उत्साह और कैसे इसको हराएं..इसका ये तरीका लेकर मैं, अपने बेटे और भतीजी के साथ सभी को होम आइसोलेशन में रखकर उनका इलाज डॉक्टर की मदद से किया। यकीन मानिए 16 दिन में सभी ने कोरोना पर जीत हासिल कर ली।
Asianetnews Hindi के अंकुर शुक्ला ने वीर बहादुर सिंह विश्वविद्यालय जौनपुर में अनुप्रयुक्त सामाजिक विज्ञान संकाय के डीन से बातचीत की। उनका कॉन्फिडेंस, उनकी स्ट्रेटजी हर किसी के लिए एक मिसाल साबित हो सकती है। इस कड़ी में पढ़िए परिवार के चार लोगों को इन्होंने कोरोना से कैसे बचाया, शब्दशः..
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16 अप्रैल की वो सुबह आज भी है मुझे याद
'मेरा नाम डॉ. मनोज मिश्रा है। मैं वीर बहादुर सिंह विश्वविद्यालय जौनपुर में अनुप्रयुक्त सामाजिक विज्ञान संकाय का डीन हूं। 16 अप्रैल की वो सुबह मुझे आज भी याद है। उस दिन सोकर उठा तो पत्नी ने मुझसे कहा- रात में तेज ठंड लगी और बदन में दर्द हो रहा है। 10 मिनट बाद मां हिरावती (90) से मिला। उनका भी गला बैठा हुआ था। वहीं, भाभी की नाक से पानी गिर रहा था, यह सब देखकर मुझे बड़ा अजीब लगा। सोच में पड़ गया कि एक साथ ये सभी लोग इस अवस्था में कैसे पहुंच गए। मेरा माइंड कोरोना संक्रमण पर जाकर रुक गया। करीब एक घंटे बाद मैं फ्रेश होकर सीधे मेडिकल स्टोर पर गया और दवा लेकर आया। सभी को खिलाया। साथ ही, घर में काढ़ा और गिलोय सब पीते थे, उसकी मात्रा बढ़ाकर लेने को कहा। मैं तब और डर गया जब शाम होते-होते सबको बुखार होने लगा। पत्नी को छोड़कर सभी का बुखार 99 डिग्री के ऊपर था।''
चौथे दिन 2 कदम चलने पर मां की फूलने लगी थी सांस
''तीसरे दिन मतलब 18 अप्रैल को पत्नी का बुखार चरम पर पहुंच गया। इस दिन भाई भी बुखार से तड़पने लगा। समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है। तीन दिन दवाई दी, लेकिन अभी तक किसी पर इसका असर नहीं दिख रहा था। मैंने बिना देर किए सबका कोविड टेस्ट कराया। रिपोर्ट तीन-चार दिन बाद आई। तीन लोगों की रिपोर्ट पॉजिटिव आई, जबकि भाई साहब की रिपोर्ट नेगेटिव आई। दूसरी तरफ, माता जी का बुखार तो नहीं बढ़ा, लेकिन तीसरे दिन से दिक्कत बढ़ गई। चौथे दिन वो दो कदम चलती तो उनका सांस फूलने लगता था। मैंने डॉ. वीएस उपाध्याय से बात की। उन्होंने पत्नी के लिए दो और माता जी के लिए तीन दवा और बढ़ाकर देने को कहा। उनके द्वारा बताई गई दवा देना शुरू कर दिया। लेकिन मन नहीं माना तो एक अन्य डॉ. से भी बात कर डाली। वह होम्योपैथ से एमडी है। उन्होंने भी पत्नी और माता जी के लिए दवा भेजवाई।''
दवा खाने के बाद भी कम नहीं हो रहा था पत्नी का बुखार
''पत्नी का बुखार 102 पहुंच गया। पेरासिटामोल 650 एमजी खाने के बाद भी उनका बुखार 101 के नीचे नहीं आता था। हर 6 घंटे पर दवा देनी पड़ रही थी। 5वें दिन पत्नी और माता जी का ऑक्सीजन लेवल गिरने लगा। इसपर उन्हें पेट के बल लेटकर अजवाइन, कपूर और लौंग की पोटली बांधकर सूंघने को दिया। साथ ही पिपर और काली मिर्च, सोंठ को शहद के साथ मिलाकर दिया। ये दवा 8 दिन दिया। हालांकि 8 वें दिन उनको बुखार नहीं आया, लेकिन खांसी बनी रही। इसके लिए इनहेलर 8-8 घंटे पर देता था। माता जी की 14-15 दिन में समस्या खत्म हो गई। लेकिन उम्र ज्यादा होने के कारण दिक्कत आई। वो अल्जाइमर (भूलने की) की पेशेंट हैं।''
मॉनिटरिंग और इच्छा शक्ति के कारण हम कोरोना से लड़े
जिस वक्त परिवार के लोग बीमार हो रहे थे, उस समय देश में ऑक्सीजन, बेड को लेकर हाहाकार मचा था। इस दौरान मुझे कई बार ऐसा लगा, अस्पताल जाना पड़ेगा। लेकिन मॉनिटरिंग और इच्छा शक्ति के कारण कोरोना से घर पर ही लड़ रहे थे। इसमें मैं, मेरा बेटा और मुंबई से आई मेरी भतीजी ने बहुत अच्छा काम किया। हम सब सबका ऑक्सीजन लेवल, बुखार चेक करते थे और सभी को समय-समय पर दवा और काढ़ा देते थे। खुद को भी बचाने के लिए डबल मॉस्क लगाते थे। क्योंकि भाप लेते समय खड़े रहते थे। ऐसे में संक्रमण के फैलने का डर लगता था।
एक-दूसरे के करीब रहने के लिए मोबाइल को बनाया सहारा
'एक-दूसरे से बात करने लिए हमने व्हाट्सएप पर फैमिली ग्रुप बना डाला। दूरी बनाकर हम आपस में बातचीत करते थे। बस, माता जी पर विशेष नजर रखते थे। उन्हें भूलने की बीमारी के साथ हाई बीपी भी है। लेकिन, उनका ऑक्सीजन लेवल 94 के नीचे नहीं आया, जबकि पत्नी का ऑक्सीजन लेवल 90 तक आया। हम लोग यह किसी को नहीं बताते थे कि उनका ऑक्सीजन लेवल गिर रहा है। ''
डॉक्टर की इन बातों से मिला बल
''मुझे डॉ. प्रतीक मिश्रा से बातचीत में बल मिला, जो कहते थे कि माता जी को लेकर चिंता मत करिए। उनकी उम्र ज्यादा है, जो हालत है वो क्रिटिकल है। उन्हें अलजाइमर भी है। उन्हें तो पता ही नहीं है कि कोरोना क्या है। वह दवा खा रही हैं, लेकिन उन्हें कोरोना को लेकर कोई भय नहीं है। इसलिए सबसे जल्दी वही ठीक होंगी। सच में हुआ भी ऐसा। भाभी के बाद माता जी ही ठीक हुईं। फिर पत्नी और 16वें दिन भाई साहब ठीक हो गए। अब सबका रिपोर्ट निगेटिव है। बस कमजोरी है, जिसे दूर करने के लिए सभी लोग डॉक्टर द्वारा दी गई दवा खा रहे हैं। ''
तीमारदार को होना चाहिए ये ज्ञान
''मेरा मानना है कि मरीज के तीमारदार को भी प्राथमिक चिकित्सा की सामान्य जानकारी जरूरी है। इसके लिए दवा और टेस्टिंग के साथ-साथ सरकार को काम करना चाहिए। हर किसी को यह पता होना चाहिए कि अस्पताल जाने से पहले क्या करें। हो सकता है कि हमारा मरीज घर पर ही ठीक हो जाए, क्योंकि एक आदमी की देखभाल एक आदमी अच्छे से कर सकता है। लेकिन, अस्पताल में एक डॉक्टर 50 मरीज देखता हैं। हां, मरीज की स्थिति को अगर थोड़ी सी भी गड़बड़ लगे तो उसे तत्काल डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए। ''
जांच-रिपोर्ट के चक्कर में न पड़े, पहले इलाज कराएं
''मैं डॉ. केके अग्रवाल, जो कि पद्मश्री से सम्मानित थे, उनकी लाइव वीडियो एक साल से देखता आ रहा हूं। उनके कार्यक्रमों में ऑनलाइन कई बार हिस्सा भी ले चुका हूं। हालांकि, अब वो इस दुनिया में नहीं है। उनकी एक बात मुझे आज भी याद आती है। वो बता रहे थे कि जब भारत में प्लेग आया, तब जांच कराने में देर हो गई। लेकिन, जो कुशल डॉक्टर थे वो जांच के चक्कर में ना पड़कर सीधे दवा देने में जुट गए। ऐसा ही इस समय करना चाहिए। जांच और उसकी रिपोर्ट के चक्कर में ना पड़कर सीधे इलाज कराना चाहिए। कोरोना की किट में ऐसी कोई भी दवा नहीं है, जिसका कोई नुकसान हो। मैं आपको बताना चाहूंगा कि मेरी बहन दिल्ली में रहती है, जो खुद कोरोना से संक्रमित हो गई थी। उसका ऑक्सीजन लेवल 80 तक आ गया था। जीजा, बहन की बेटी, बेटा यूं कहिए पूरा परिवार। इतना ही नहीं, मुंबई जैसे स्थान पर मेरे रिश्तेदार होम आइसोलेशन में रहते इन सब बातों का ध्यान देकर ठीक हो गए।
Asianet News का विनम्र अनुरोधः आइए साथ मिलकर कोरोना को हराएं, जिंदगी को जिताएं...जब भी घर से बाहर निकलें माॅस्क जरूर पहनें, हाथों को सैनिटाइज करते रहें, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। वैक्सीन लगवाएं। हमसब मिलकर कोरोना के खिलाफ जंग जीतेंगे और कोविड चेन को तोडेंगे।
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