मरने के 16 साल बाद कैसे जिंदा हुए दुर्योधन और कर्ण, क्या थी वो चमत्कारी रात?

Interesting facts about Mahabharata: महाभारत की कथा जितनी रहस्यमयी है, उतनी ही रोचक भी है। बहुत कम लोग जानते हैं मरने के 16 साल बाद एक रात के लिए दुर्योधन, कर्ण, अभिमन्यु सहित सभी योद्धा एक रात के लिए जीवित हुए थे। जानें कैसे हुई ये घटना?

 

Unheard stories of Mahabharata: महाभारत युद्ध में अनेक योद्धा मारे गए थे, जिनमें दुर्योधन, कर्ण, अभिमन्यु और भीष्म आदि प्रमुख थे, ये बात तो सभी जानते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि युद्ध के 16 साल बाद ये सभी योद्धा एक रात के लिए पुनर्जीवित हुए थे। इस घटना का वर्णन महाभारत के आश्रमवासिक पर्व में मिलता है। आगे जानिए कब और कैसे जिंदा हुए थे महाभारत युद्ध में मारे गए योद्धा…

15 साल तक हस्तिनापुर में रहे धृतराष्ट्र
महाभारत युद्ध के बाद युधिष्ठिर हस्तिनापुर के राजा बने। उन्होंने अपने सभी भाइयों को अलग-अलग काम सौंपे। धृतराष्ट्र की सेवा का काम उन्होंने विदुर, संजय और युयुत्सु को दिया। युद्ध के बाद लगभग 15 साल तक धृतराष्ट्र हस्तिनापुर में ही रहे। फिर एक दिन धृतराष्ट्र ने वन में जाकर तपस्या करने का विचार किया। धृतराष्ट्र के साथ गांधारी, विदुर, संजय और कुंती भी वन में चली गईं।

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वन में अपनी माता से मिलने आए पांडव
धृतराष्ट्र के साथ गांधारी, विदुर, संजय और कुंती ने वन में आकर महर्षि वेदव्यास से वनवास की दीक्षा ली और वहीं रहकर तपस्या करने लगे। लगभग 1 वर्ष बीतने के बाद एक दिन युधिष्ठिर अपने भाइयों और द्रौपदी के साथ धृतराष्ट्र, गांधारी और अपनी माता कुंती से मिलने वन में गए। यहां सभी पांडव अपने परिजनों से मिलकर बहुत खुश हुए और एक रात वन में ही रूके।

जब महर्षि वेदव्यास ने दिया विशेष वरदान
अगले दिन धृतराष्ट्र के आश्रम में महर्षि वेदव्यास आए। यहां पांडवों को देखकर वे भी बहुत खुश हुए। धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती की तपस्या से प्रसन्न होकर महर्षि वेदव्यास ने उनसे वरदान मांगने को कहा। तब गांधारी ने युद्ध में मारे गए अपने सभी पुत्रों तथा कुंती ने कर्ण को देखने की इच्छा प्रकट की। द्रौपदी ने भी अपने मृत पुत्रों से मिलने के लिए महर्षि वेदव्यास से प्रार्थना की। महर्षि वेदव्यास ने उन्हें ये वरदान दे दिया।

महर्षि वेदव्यास ने दिखाया चमत्कार
उसी रात महर्षि वेदव्यास सभी को लेकर गंगा तट पर आए और गंगा नदी में प्रवेश किया। इसके बाद उन्होंने पांडव व कौरव पक्ष के सभी मृत योद्धाओं का आवाहन किया। थोड़ी ही देर में भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण, दुर्योधन, दु:शासन, अभिमन्यु, धृतराष्ट्र के सभी पुत्र, घटोत्कच, द्रौपदी के पांचों पुत्र आदि योद्धा गंगा जल से बाहर निकल आए। महर्षि वेदव्यास ने धृतराष्ट्र व गांधारी को दिव्य नेत्र प्रदान किए ताकि वे अपने पुत्रों को देख सके।

सुबह अपने-अपने लोक लौट गए सभी योद्धा
अपने मृत परिजनों को देखकर पांडव, द्रौपदी, कुंती, धृतराष्ट्र और गांधारी को बहुत खुशी हई। रात भर वे एक दूसरे के साथ रहे। सुबह होने पर महर्षि वेदव्यास ने कहा कि ‘जो भी स्त्री अपने मृत पति के साथ उसके लोक जाना चाहती है, वह भी गंगा नदी में प्रवेश कर जाएं।’ अनेक महिलाएं अपने पति के साथ ही उनके लोक चली गई। इस तरह महाभारत युद्ध में मारे गए सभी योद्धा भी अपने-अपने लोक में चले गए।


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इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।

 

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