सार
Mahabharat Fact: महाभारत में एक अहम पात्र संजय भी है। ये राजा धृतराष्ट्र के सारथि, सेवक और सलाहकार भी थे। इन्होंने ही धृतराष्ट्र को महाभारत युद्ध का आंखों देखा हाल सुनाया था। ये अंत समय तक धृतराष्ट्र के साथ रहे।
Mahabharat Facts Related To Sanjay: जब महाभारत युद्ध हो रहा था, उस समय हस्तिनापुर के राज धृतराष्ट्र अपने महल में बैठकर युद्ध का आंखों देखा हाल सुन रहे थे। सुनने में ये बात थोड़ी अजीब जरूर लगे, लेकिन ये सच है। धृतराष्ट्र को महाभारत युद्ध का आंखों देखा हाल सुनाने वाले थे संजय। ये राजा धृतराष्ट्र के सारथि भी थे, सेवक और सलाहकार भी। संजय के बारे में और भी कईं रोचक बाते हैं, जिनके बारे में लोगों को नहीं पता। आगे जानिए संजय से जुड़ी रोचक बातें…
कौन थे संजय?
महाभारत के अनुसार, संजय के पिता का नाम गावलगण था। ये भी हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र के सेवक थे। गावलगण ने ही संजय को राजा धृतराष्ट्र की सेवा में समर्पित किया था। संजय रथ चलाने में कुशल थे, इसलिए वे राजा धृतराष्ट्र के मुख्य सारथी बने। संजय विद्वान भी थे, इसलिए वे समय-समय पर धृतराष्ट्र को सलाह भी थे। विदुर के बाद संजय ही थे जो धृतराष्ट्र को सही सलाह देते थे।
संजय को किसने दी थी दिव्य दृष्टि?
जब पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध होना तय हो गया तब महर्षि वेदव्यास राजा धृतराष्ट्र को युद्ध रोकने के लिए समझाने गए। लेकिन राजा धृतराष्ट्र ने कहा कि वे इस युद्ध को रोकने में सक्षम नहीं है। तब महर्षि वेदव्यास वहां से जाने लगे। उस समय धृतराष्ट्र ने महर्षि वेदव्यास से इस युद्ध को देखने को इच्छा प्रकट की। महर्षि वेदव्यास धृतराष्ट्र को दिव्य दृष्टि देना चाहते थे लेकिन उन्होंने कहा कि ‘आप ये दिव्य दृष्टि मेरे सेवक संजय को दे दीजिए ताकि मैं युद्ध का आंखों देखा हाल सुन सकूं।’ महर्षि वेदव्यास ने ऐसा ही किया और दिव्य दृष्टि संजय को दे दी।
संजय ने भी सुना था गीता का उपदेश
युद्ध शुरू होने से पहले जब अर्जुन के मन में निराशा के भाव आने लगे तब श्रीकृष्ण ने उन्हें गीता का उपदेश दिया था। इस उपदेश को कुछ ही लोगों ने सुना था। संजय ने अपनी दिव्य दृष्टि से भगवान श्रीकृष्ण का पूरा उपदेश न सिर्फ सुना बल्कि इसे राजा धृतराष्ट्र को भी सुनाया था। संजय ने भगवान श्रीकृष्ण के विराट रूप के दर्शन भी किए थे।
युद्ध के बाद क्या हुआ संजय का?
महाभारत युद्ध के बाद जब युधिष्ठिर हस्तिनापुर के राजा बने तब उन्होंने सभी लोगों को अलग-अलग जिम्मेदारियां दी। राजा युधिष्ठिर ने युयुत्सु, महात्मा विदुर और संजय को राजा धृतराष्ट्र के सेवा का काम दिया। युधिष्ठिर के राजा बनने के बाद धृतराष्ट्र लगभग 18 सालों तक हस्तिनापुर में रहे और इसके बाद वे वानप्रस्थ आश्रम में चले गए यानी वन में जाकर रहने लगे। उनके साथ गांधारी, कुंती, विदुर और संजय भी थे। वहीं उनकी मृत्यु भी हो गई।
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