सार

Mahabharat Fact: महाभारत में कईं रहस्यमयी पात्र हैं, जिनके बारे में कम ही लोगों को जानकारी है। ऐसे ही एक पात्र हैं महर्षि वेदव्यास। खास बात ये है कि महाभारत के रचनाकार भी महर्षि वेदव्यास ही हैं। मान्यता है कि ये आज भी जीवित हैं।

 

महाभारत ग्रंथ की रचना किसने की, ये बात बहुत कम लोगों को पता है। इसकी जानकारी महाभारत में ही मिलती है, उसके अनुसार, महर्षि वेदव्यास नाम के एक ऋषि थे, जिन्होंने वेदों को अलग-अलग किया और साथ ही महाभारत जैसे अनेक ग्रंथ लिखे। महर्षि वेदव्यास को भगवान विष्णु का अवतार भी माना जाता है और ये भी मान्यता है कि ये अमर हैं और आज भी धरती पर कहीं तपस्या कर रहे हैं। आगे जानिए कौन हैं महर्षि वेदव्यास और इनसे जुड़ी खास बातें…

कौन हैं महर्षि वेदव्यास?
महाभारत के अनुसार, महर्षि वेदव्यास भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक हैं। इनके पिता महर्षि पाराशार और माता देवी सत्यवती हैं। कहते हैं कि जन्म लेते ही महर्षि वेदव्यास युवा हो गए और तपस्या करने द्वैपायन द्वीप चले गए। काले होने और द्वैपायन द्वीप पर तपस्या करने के कारण इनका एक नाम कृष्ण द्वैपायन हुआ। वेदों का विभाग करने के कारण इनका नाम वेदव्यास प्रसिद्ध हुआ। इनकी माता सत्यवती का विवाह हस्तिनापुर के राजा शांतनु से हुआ, शांतनु के पुत्र भीष्म थे। इस तरह महर्षि वेदव्यास और भीष्म भाई हुए।

क्या जीवित हैं महर्षि वेदव्यास?
धर्म ग्रंथों में एक श्लोक बताया गया है, जिसमें 8 अमर लोगों का वर्णन मिलता है। वो श्लोक इस प्रकार है-
अश्वत्थामा बलिव्यासो हनूमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।

अर्थ- अश्वथामा, दैत्यराज बलि, महर्षि वेद व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि ये सभी अमर हैं। इनका नाम लेने से हर परेशानी दूर हो सकती है। इससे ये सिद्ध होता है कि महर्षि वेदव्यास आज भी जीवित हैं।

गांधारी को दिया था 100 पुत्रों का वरदान
महाभारत के अनुसार, एक बार महर्षि वेदव्यास हस्तिनापुर आए और कुछ दिन वहीं रुके। यहां गांधारी ने महर्षि वेदव्यास की खूब सेवा की, जिससे प्रसन्न होकर महर्षि ने गांधारी को 100 पुत्र होने का वरदान दिया। इसी वरदान के चलते गांधारी को दुर्योधन आदि 100 पुत्रों की प्राप्ति हुई।

संजय की दी थी दिव्य दृष्टि
महाभारत युद्ध शुरू होने से पहले महर्षि वेदव्यास हस्तिनापुर आए और धृतराष्ट्र को समझाने की कोशिश की। लेकिन जब उन्हें लगा कि इस युद्ध को किसी भी तरह से रोका नहीं जा सकता तो वे जाने लगे। उस समय धृतराष्ट्र ने उनसे इस युद्ध को देखने की इच्छा प्रकट की। तब महर्षि वेदव्यास ने धृतराष्ट्र के सारथी संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की।

एक रात के लिए जिंदा कर दिया मृत योद्धाओं को
महाभारत युद्ध के कुछ सालों बाद पांडव आदि सभी लोग जब महर्षि वेदव्यास से मिलने गए तो उन्होंने अपने तपोबल से एक रात के लिए युद्ध में मारे गए सभी योद्धा जैसे भीष्म, दुर्योधन, कर्ण, शकुनि, अभिमन्यु, शिखंडी आदि को एक रात के लिए जीवित कर दिया। अगली सुबह वे सभी अपने-अपने लोक में लौट गए।


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