यमराज ने अपनी बहन को दिया था वरदान, इसलिए मनाया जाता है भाई दूज का पर्व

इस बार 29 अक्टूबर, मंगलवार को भाई दूज का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन बहनें अपने भाइयों को भोजन करने घर पर बुलाती हैं और तिलक करने के बाद उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं।

Asianet News Hindi | Published : Oct 29, 2019 4:11 AM IST / Updated: Oct 29 2019, 10:00 AM IST

उज्जैन. भाई दूज का पर्व भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है।  इस पर्व से जुड़ी एक कथा भी है, जो इस प्रकार है...

ये है भाई दूज से जुड़ी कथा...
- सूर्य की पत्नी संज्ञा की दो संतानें थीं। संज्ञा के पुत्र का नाम यमराज और पुत्री का नाम यमुना था। संज्ञा अपने पति सूर्य की तेज किरणों को सहन नहीं कर सकने के कारण उत्तरी ध्रुव में छाया बनकर रहने लगी।
- इसी से ताप्ती नदी तथा शनिश्चर का जन्म हुआ। इसी छाया से सदा युवा रहने वाले अश्विनी कुमारों का भी जन्म हुआ, जो देवताओं के वैद्य माने जाते हैं। उत्तरी ध्रुव में बसने के बाद संज्ञा (छाया) का यम तथा यमुना के साथ व्यवहार में अंतर आ गया।
- इससे व्यथित होकर यम ने अपनी नगरी यमपुरी बसाई। यमुना अपने भाई यम को यमपुरी में पापियों को दंड देते देख दु:खी होती, इसलिए वह गोलोक चली गई। समय व्यतीत होता रहा। तब काफी सालों के बाद अचानक एक दिन यम को अपनी बहन यमुना की याद आई।
- यम ने अपने दूतों को यमुना का पता लगाने के लिए भेजा, लेकिन वह कहीं नहीं मिली। फिर यम स्वयं गोलोक गए, जहां यमुनाजी की उनसे भेंट हुई। इतने दिनों बाद यमुना अपने भाई से मिलकर बहुत प्रसन्न हुई। यमुना ने भाई का स्वागत किया और स्वादिष्ट भोजन करवाया।
- इससे भाई यम ने प्रसन्न होकर बहन से वरदान मांगने के लिए कहा। तब यमुना ने वर मांगा - 'हे भैया, मैं चाहती हूं कि जो भी मेरे जल में स्नान करे, वह यमपुरी नहीं जाए।' यह सुनकर यम चिंतित हो उठे और मन-ही-मन विचार करने लगे कि ऐसे वरदान से तो यमपुरी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।
- भाई को चिंतित देख, बहन बोली- भैया आप चिंता न करें, मुझे यह वरदान दें कि जो लोग आज के दिन बहन के यहां भोजन करें तथा मथुरा नगरी स्थित विश्रामघाट पर स्नान करें, वे यमपुरी नहीं जाएं। यमराज ने इसे स्वीकार कर वरदान दे दिया। बहन-भाई के मिलन के इस पर्व को अब भाई-दूज के रूप में मनाया जाता है।
 

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