स्कूल का प्यून 23 साल से पढ़ा रहा संस्कृत, बच्चों ने दिया 100 फीसदी रिजल्ट

स्कूल का प्यून 23 साल से पढ़ा रहा संस्कृत, बच्चों ने दिया 100 फीसदी रिजल्ट

Published : Sep 27, 2019, 02:30 PM ISTUpdated : Sep 27, 2019, 06:05 PM IST

देपालपुर,मप्र। इंदौर जिला मुख्यालय से लगभग 80 किलोमीटर दूर, देपालपुर विकासखंड का गांव है गिरोता। यहां के सरकारी हाईस्कूल में 53 साल के वासुदेव पंचालकी खास पहचान है। वासुदेव प्रत्येक दिन पहले पानी लाते हैं, फिर पूरे स्कूल में झाड़ू लगाते हैं, कमरों और बरामदे के फर्श पर पोंछा मारते हैं और उसके बाद कक्षाओं में जाकर बच्चों को संस्कृत पढ़ाते हैं। गिरोता के सरकारी स्कूल में बीते 23 वर्षों से संस्कृत के शिक्षक की भर्ती नहीं हुई है। दरअसल, मुख्यालय से काफी दूर होने के कारण कोई भी शिक्षक यहां आना ही नहीं चाहता। यही कारण है कि लगभग पौने दो सौ छात्रों को पढ़ाने के लिए महज तीन ही शिक्षक हैं। वासुदेव बताते हैं कि संस्कृत का कोई शिक्षक न होने के कारण उन्हें ही संस्कृत पढ़ाने की अतिरिक्त जिम्मेदारी मिली हुई है। वासुदेव स्वयं गिरोता गांव के ही रहने वाले हैं और इसी स्कूल में पढ़े हैं। 


 मुख्यमंत्री उत्कृष्टता पुरस्कार के लिए हुआ चयन 
स्कूल के विद्यार्थियों का कहना है कि वासुदेव रुचिकर तरीके से संस्कृत पढ़ाते हैं। उनकी सभी जिज्ञासाओं को शांत करते हैं। छात्रों को संस्कृत शिक्षक की कमी महसूस नहीं होती। बीते साल इस स्कूल का 9वीं और 10वीं का परीक्षा परिणाम शत प्रतिशत रहा है। स्कूल के प्रभारी प्राचार्य महेश निंगवाल भी कहते हैं कि वासुदेव नियमित रूप से बच्चों को संस्कृत पढ़ाते हैं। शिक्षण कार्य को लेकर मुख्यमंत्री उत्कृष्टता पुरस्कार के लिए वासुदेव के नाम का प्रस्ताव शासन को भेजा गया था, पुरस्कार के लिए उनके नाम का चयन भी हो गया है। 

देपालपुर,मप्र। इंदौर जिला मुख्यालय से लगभग 80 किलोमीटर दूर, देपालपुर विकासखंड का गांव है गिरोता। यहां के सरकारी हाईस्कूल में 53 साल के वासुदेव पंचालकी खास पहचान है। वासुदेव प्रत्येक दिन पहले पानी लाते हैं, फिर पूरे स्कूल में झाड़ू लगाते हैं, कमरों और बरामदे के फर्श पर पोंछा मारते हैं और उसके बाद कक्षाओं में जाकर बच्चों को संस्कृत पढ़ाते हैं। गिरोता के सरकारी स्कूल में बीते 23 वर्षों से संस्कृत के शिक्षक की भर्ती नहीं हुई है। दरअसल, मुख्यालय से काफी दूर होने के कारण कोई भी शिक्षक यहां आना ही नहीं चाहता। यही कारण है कि लगभग पौने दो सौ छात्रों को पढ़ाने के लिए महज तीन ही शिक्षक हैं। वासुदेव बताते हैं कि संस्कृत का कोई शिक्षक न होने के कारण उन्हें ही संस्कृत पढ़ाने की अतिरिक्त जिम्मेदारी मिली हुई है। वासुदेव स्वयं गिरोता गांव के ही रहने वाले हैं और इसी स्कूल में पढ़े हैं। 


 मुख्यमंत्री उत्कृष्टता पुरस्कार के लिए हुआ चयन 
स्कूल के विद्यार्थियों का कहना है कि वासुदेव रुचिकर तरीके से संस्कृत पढ़ाते हैं। उनकी सभी जिज्ञासाओं को शांत करते हैं। छात्रों को संस्कृत शिक्षक की कमी महसूस नहीं होती। बीते साल इस स्कूल का 9वीं और 10वीं का परीक्षा परिणाम शत प्रतिशत रहा है। स्कूल के प्रभारी प्राचार्य महेश निंगवाल भी कहते हैं कि वासुदेव नियमित रूप से बच्चों को संस्कृत पढ़ाते हैं। शिक्षण कार्य को लेकर मुख्यमंत्री उत्कृष्टता पुरस्कार के लिए वासुदेव के नाम का प्रस्ताव शासन को भेजा गया था, पुरस्कार के लिए उनके नाम का चयन भी हो गया है। 

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