रोबोटैक्सी को लेकर कंपनी की तरफ से जानकारी दी गई है कि यह शहरों की सड़क के अनुसार बनाई गई है लेकिन इसे हाइवे पर भी आसानी से चलाया जा सकता है। कंपनी की तरफ से पहले ही फुली ऑटोमैटिक टैक्सी लाने की घोषणा की गई थी।
पहाड़ों के बीच रास्ते घुमावदार होने के चलते, ऐसे ड्राइवर जिनके पास हिल एरिया में ड्राइविंग का एक्सपीरिएंस नहीं होता, उनसे एक्सीडेंट का खतरा बढ़ जाता है। बीते 4 सालों में जितने भी एक्सीडेंट हुए हैं, उनमें 65 प्रतिशत इसी तरह के हैं।
देश का सबसे लंबा एक्सप्रेस-वे बनकर तैयार हो गया है। इस पर सफर करने से आपकी गाड़ी की लाइफ अच्छी रहेगी और आपका खर्चा भी कम होगा। यह एक्सप्रेस-वे एडवांस टेक्नोलॉजी और सुविधाओं से लैस है।
इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बैटरी में जो कंपोनेंट्स ज्यादा यूज होते हैं, उनमें लिथियम प्रमुख है। अभी तक भारत दूसरे देशों से लिथियम आयात करता है। जिस वजह से यह महंगा है। अब देश में ही इसका भंडार मिला है तो ऑटो सेक्टर पर इसका असर देखने को मिल सकता है।
नासा की तरफ से इस प्लेन को तैयार किया गया है। इसकी टेस्टिंग पूरी हो गई है। इसके आने से न सिर्फ एविएशन सेक्टर बल्कि ऑटोमोबाइल सेक्टर में भी बड़ी क्रांति होगी। इससे पॉल्युशन भी कम होगा और सफर भी सस्ता होगा।
गाड़ी खरीदते समय अक्सर बात व्हील्स की आती हैं। कुछ कारों में अलॉय व्हील्स तो कुछ में स्टील व्हील लगे होते हैं। दोनों व्हील्स की अपनी-अपनी खूबियां हैं। क्या आप जानते हैं कि दोनों व्हील्स में से कौन बेहतर होता है?
वर्तमान में देश में जो पेट्रोल मिलता है, उसमें सिर्फ 10 फीसदी तक ही इथेनॉल होता है। अब देश के 11 शहरों में 20 फीसदी इथेनॉल वाला पेट्रोल मिलेगा। इथेनॉल को बायोमास से बनाया जाता है। इथेनॉल ज्यादातर कॉर्न और गन्ने की फसल से बनाया जाता है।
अगर आप देश के किसी राज्य में बिना रोक-टोक अपनी गाड़ी चलाना चाहते हैं तो भारत सीरीज का नंबर लेना होगा। इसके लिए सबसे पहले आपको ऑनलाइन अप्लाई करना होता है। इस सीरीज का रजिस्ट्रेशन नंबर लेना बेहद सिंपल है।
भारत में मारुति की कई गाड़ियां इस वक्त मार्केट में दौड़ रही हैं। इनमें ब्रेजा, स्विफ्ट, स्विफ्ट डिजायर, ग्रैंड विटारा, अर्टिगा, बलेनो और ऑल्टो 800 जैसे 17 मॉडल्स शामिल हैं। भारतीय लोगों को भी मारुति की गाड़ियां काफी पसंद हैं।
सरकार की तरफ से बताया गया है कि स्क्रैपिंग पॉलिसी के तहत निजी और सरकारी दोनों तरह के वाहन आएंगे। इसके लिए राज्यों की आर्थिक मदद भी की जाएगी। ताकि कार्बन एमिशन को कम करने में मदद मिल सके।