सार
कोरोना की दूसरी लहर की बात करें तो इसने लोगों के मन में ऐसा खौफ भर दिया है कि लोग अब तीसरी लहर के बारे में सोचकर ही सहमे हुए हैं। हालांकि, दूसरी लहर में भी कई लोग ऐसे हैं, जिन्होंने अपनी इच्छाशक्ति के बलबूते कोरोना जैसे वायरस को मात दी और सुरक्षित घर लौटे।
भोपाल। कोरोना (Corona) की दूसरी लहर अब काफी हद तक थम चुकी है, लेकिन दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में अब भी मरीजों की संख्या में खास कमी नहीं दिख रही है। हालांकि मध्य और उत्तर भारत के ज्यादातर शहरों में अब अनलॉक हो चुका है और लोगों को कोविड गाइडलाइन के मुताबिक बाहर आने-जाने की अनुमति है। वहीं, दूसरी लहर की बात करें तो इसने लोगों के मन में ऐसा खौफ भर दिया कि लोग अब तीसरी लहर के बारे में सोचकर ही सहमे हुए हैं। हालांकि, दूसरी लहर में भी कई लोग ऐसे हैं, जिन्होंने अपनी इच्छाशक्ति के बलबूते कोरोना जैसे वायरस को मात दी और सुरक्षित घर लौटे।
Asianet News Hindi के गणेश कुमार मिश्रा ने भोपाल की रहने वाली 60 वर्षीय साधना दीक्षित के बेटे सुमित से बात की। सुमित ने बताया कि उनकी मम्मी कोरोना की दूसरी लहर के पीक में पॉजिटिव हो गई थीं। हालांकि, डाइबिटीज जैसी बीमारी होने के बावजूद उन्होंने इतनी उम्र में भी कोरोना को कैसे मात दी, आइए जानते हैं।
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आखिर कहां और कैसे हो गई चूक :
साधना दीक्षित के बेटे सुमित के मुताबिक, हमारे घर में मम्मी-पापा दोनों को सिंगल डोज वैक्सीन लगी हुई थी। चूंकि वैक्सीन लगी थी तो थोड़ी लापरवाही हुई और मम्मी कॉलोनी के ही एक मंदिर आने-जाने लगीं। इसी दौरान वो किसी संक्रमित महिला के संपर्क में आ गईं। 13 अप्रैल, 2021 को मम्मी को हल्की खांसी शुरू हुई। इसके बाद हमने उन्हें क्वारेंटीन कर दिया।
4 दिन बाद अचानक सांस लेने में हुई तकलीफ :
4 दिन तक होम आइसोलेशन में रहने के बाद 17 अप्रैल को अचानक मम्मी को सांस लेने में तकलीफ हुई। इसके साथ ही वो बेहद कमजोर हो गई थीं। इस पर मैंने उनका ऑक्सीजन लेवल चेक किया तो वो 77 तक पहुंच गया था। ये देख हमारे तो हाथ-पैर फूल गए। हमने फैसला किया कि उन्हें फौरन हास्पिटलाइज करना पड़ेगा। लेकिन सबसे बड़ी समस्या तो सामने थी, क्योंकि कोरोना पीक के चलते अस्पतालों में कही बेड खाली नहीं थे।
हॉस्पिटल पहुंचे तो कहा- अपना ऑक्सीजन सिलेंडर लेके आओ :
इसके बाद मैं मम्मी को लेकर हॉस्पिटल के चक्कर लगाने लगा। शहर के हर कोने के अस्पताल छान मारे लेकिन जहां जाओ, वहीं बेड फुल। एक अस्पताल में पूछा तो उसने कहा कि अपना ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर आओ, हमारे पास नहीं है।
ऑक्सीजन लेवल देख डॉक्टर ने किया ICU में एडमिट :
फिर जीजा जी एक एक परिचित की वाइफ शहर के एक अस्पताल में भर्ती थीं। उनसे हमने बात की तो वो बोले कि उन्हें आज ही डिस्चार्ज किया जा रहा है तो आप अपने पेशेंट को ले आओ। इसके बाद मैं फौरन मम्मी को लेकर उस अस्पताल पहुंचा और शाम को किसी तरह उन्हें भर्ती कराया। शुरुआती इलाज के बाद डॉक्टरों ने मम्मी का ऑक्सीजन लेवल देखते हुए फौरन ICU में एडमिट कर लिया।
असली मुसीबत तो अब शुरू होनी थी :
मम्मी को भर्ती कराने के बाद डॉक्टर ने मुझे बुलाया और एक पर्ची थमाते हुए कहा कि फौरन 2 रेमडेसिविर के इंतजाम करो। उस वक्त इंजेक्शन की भारी मारामारी चल रही थी। मैंने अपने परिचितों को फोन लगाया लेकिन कहीं से भी इंजेक्शन नहीं मिला। इसके बाद इंदौर में रहने वाले एक शख्स से मेरी बात हुई तो उसने कहा कि आप यहां आ जाओ।
रिस्क उठाकर मैं रातोंरात इंदौर से लाया इंजेक्शन :
इधर, अस्पताल में भी मम्मी की देखरेख करने वाला कोई नहीं था। लेकिन फिर भी मैंने रिस्क उठाया और कार से रातोंरात इंदौर पहुंचा। यहां से मैंने दो इंजेक्शन लिए और सुबह होते-होते भोपाल पहुंच गया। बाद में डॉक्टरों ने इंजेक्शन लगाए और उसके बाद मम्मी की तबीयत और ऑक्सीजन लेवल में कुछ हद तक सुधार होने लगा। उनका ऑक्सीजन लेवल अब 80 के उपर आ गया था।
इसी बीच पापा भी हो गए संक्रमित :
मम्मी इधर आईसीयू में एडमिट थीं और मैं उनकी देखभाल में लगा हुआ था। उधर, घर में पापा की रिपोर्ट भी पॉजिटिव आ गई। इसके बाद मैं पापा को भी इसी अस्पताल में ले आया और डॉक्टर को दिखाया। हालांकि, पापा को न तो सांस लेने में तकलीफ थी और ना ही उनका ऑक्सीजन लेवल डाउन हुआ था। उनका HRCT स्कोर भी ठीक था। बाद में पापा को घर पर ही आइसोलेट किया और वो रिकवर होने लगे।
10 दिन तक भर्ती रहने के बाद हुआ तबीयत में सुधार :
करीब 10 दिन तक मम्मी को अस्पताल में रहना पड़ा और इस दौरान डॉक्टर्स ने 6 रेमडेसिविर के इंजेक्शन लगाए। 8वें दिन से मम्मी का ऑक्सीजन लेवल बिना मास्क लगाए 90 से उपर आ गया था। डॉक्टरों ने कहा कि एक-दो दिन में सुधार होता है तो डिस्चार्ज कर देंगे। इसके बाद 10वें दिन तक उनका ऑक्सीजन सैचुरेशन 95 से ज्यादा हो गया। ऐसे में डॉक्टर ने डिस्चार्ज करने का फैसला किया।
मम्मी का शुगर लेवल 650 से 700 पहुंच गया :
मम्मी पहले से डाइबिटिक थीं और हॉस्पिटल में स्टेराइड और दवाइयों के चलते उनका शुगर लेवल 650 से 700 तक पहुंच गया। खाने से पहले डॉक्टर इंसुलिन के इंजेक्शन लगाते थे। डिस्चार्ज होने के बाद भी घर में 3 दिन तक मम्मी को इंसुलिन देना पड़ा। हालांकि, इसके बाद उनकी डाइबिटीज वाली रेग्युलर दवाइयां शुरू कर दीं, जिनसे काफी हद तक शुगर कंट्रोल हो गई।
देसी इलाज और योगा से जल्दी हुई रिकवरी :
घर आने के बाद मम्मी ने आयुर्वेदिक इलाज जैसे गिलोय, काढा और ऐलावेरा लेना शुरू कर दिए। इसके साथ ही वो रोज सुबह 1 घंटे नियमित रूप से वॉक और योगा करने लगीं। धीरे-धीरे उनकी तबीयत में सुधार होने लगा और रिकवरी भी तेज हो गई। अब मम्मी का शुगर लेवल भी 200 तक आ गया है। इसके साथ ही वो कोरोना से लड़कर अब पूरी तरह ठीक हो चुकी हैं।
कोरोना से आप सतर्क हैं तो देश सतर्क रहेगा :
कोरोना को हल्के में बिल्कुल न लें। घर से बाहर जब भी निकलें तो डबल मास्क लगाएं। बाहर से आने के बाद हाथ अच्छी तरह धोएं और सैनेटाइज करें। क्योंकि अगर आप सतर्क हैं तो देश सतर्क है। हमें कोरोना से लड़ने के साथ ही उसे समझना होगा।
Asianet News का विनम्र अनुरोधः आईए साथ मिलकर कोरोना को हराएं, जिंदगी को जिताएं...। जब भी घर से बाहर निकलें माॅस्क जरूर पहनें, हाथों को सैनिटाइज करते रहें, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। वैक्सीन लगवाएं। हमसब मिलकर कोरोना के खिलाफ जंग जीतेंगे और कोविड चेन को तोडेंगे। #ANCares #IndiaFightsCorona