सार
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल समेत देशभर में कोरोना (Corona) से हालात बेकाबू हैं। एक तरफ जहां लोगों को अस्पतालों में ऑक्सीजन बेड और वेंटिलेटर नहीं मिल पा रहे हैं, तो दूसरी ओर लोग कालाबाजारी के चलते महंगे दामों में रेमडेसिविर (Remdesivir) इंजेक्शन खरीदने को मजबूर हैं। इससे भी ज्यादा तकलीफ उन्हें तब हो रही है, जब अपना सबकुछ बिक जाने के बाद भी वो अपने करीबी को नहीं बचा पा रहे हैं। भोपाल के रहने वाले मिश्रा परिवार ने बताया कि उन्होंने अपनी जिंदगी में इससे बड़ी तकलीफ नहीं देखी। पैसा होते हुए भी वो कोरोना से जूझ रही अपनी बहू के लिए एक अदद ऑक्सीजन बेड की तलाश में शहर भर के अस्पतालों में कई घंटों तक भटकते रहे।
भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल समेत देशभर में कोरोना (Corona) से हालात बेकाबू हैं। एक तरफ जहां लोगों को अस्पतालों में ऑक्सीजन बेड और वेंटिलेटर नहीं मिल पा रहे हैं, तो दूसरी ओर लोग कालाबाजारी के चलते महंगे दामों में रेमडेसिविर (Remdesivir) इंजेक्शन खरीदने को मजबूर हैं। इससे भी ज्यादा तकलीफ उन्हें तब हो रही है, जब अपना सबकुछ बिक जाने के बाद भी वो अपने करीबी को नहीं बचा पा रहे हैं। भोपाल के रहने वाले मिश्रा परिवार ने बताया कि उन्होंने अपनी जिंदगी में इससे बड़ी तकलीफ नहीं देखी। पैसा होते हुए भी वो कोरोना से जूझ रही अपनी बहू के लिए एक अदद ऑक्सीजन बेड की तलाश में शहर भर के अस्पतालों में कई घंटों तक भटकते रहे। एक तरफ जहां मरीज का ऑक्सीजन लेवल लगातार 90 से कम होता जा रहा था, वहीं दूसरी ओर हर एक अस्पताल से ना-ना सुनकर जैसे सभी की हिम्मत जवाब दे चुकी थी।
Asianetnews Hindi के गणेश कुमार मिश्रा ने भोपाल की मिश्रा फैमिली से बात की। परिवार की बहू रेनू मिश्रा ने बताया कि उनके परिवार में सास-ससुर के अलावा कुल 7 लोग हैं। उनके मुताबिक, भले ही घर में दो लोगों की रिपोर्ट ही कोरोना पॉजिटिव आई, लेकिन वायरस ने पूरे घर को अपनी चपेट में ले लिया था। इस जानलेवा वायरस से रेनू और उनके पूरे परिवार ने किस तरह संघर्ष किया, उनसे कहां चूक हुई, कैसे लड़कर ठीक हुए और क्या सबक लिया...ये पूरा वाकया हमारे साथ शेयर किया है। नौवीं कड़ी में जानते है पूरे परिवार की कहानी उन्हीं की जुबानी...
भाई की शादी थी, इसलिए बुखार में भी चली गई शॉपिंग करने :
रेनू के मुताबिक, 12 अप्रैल...सोमवार का दिन। उस दिन सोमवती अमावस्या थी। लेकिन रात से ही मुझे हल्का बुखार शुरू हो गया था। मैंने तय किया था कि सुबह तबीयत ठीक रही तो पूजा करके पीपल के फेरे लगाऊंगी। सुबह कुछ ठीक लगा तो देवरानी और कुछ पड़ोस की महिलाओं के साथ फेरे लगाने चली गई। इसके बाद वहां से लौटकर आई तो थोड़ी कमजोरी फील हो रही थी। चूंकि 14 मई को मेरे छोटे भाई की शादी थी, इसलिए साड़ियां और कुछ सामान भी खरीदना था। ऐसे में दोपहर को मैं अपनी ननद के साथ मार्केट चली गई। वहां से लौटने के बाद मुझे फिर बुखार आ गया। हालांकि, रात में पैरासिटामॉल खाई तो बुखार उतर गया। इस तरह दवा खाने के बाद बुखार उतर तो जाता, लेकिन अगले दिन फिर आ जाता था।
पति को हुई शंका तो, कोरोना टेस्ट के लिए बोले लेकिन...
दो-तीन दिन से लगातार बुखार के चलते मेरे पति ने कहा कि कोरोना टेस्ट करा लो, लेकिन मैंने कहा हर बुखार कोरोना नहीं होता। ये तो वायरल फीवर है अपने आप चला जाएगा। इस तरह तीन दिन बीत गए और मुझे बेहद कमजोरी महसूस होने लगी। यहां तक कि सिंगल फ्लोर चढ़ने में ही मेरी सांस फूलने लगी और पैर तक नहीं उठता था। मेरी बिगड़ती हालत को देख पति ने फिर कहा कि यहीं पास में ही कोरोना की जांच (RTPCR) होती है, तो करा लो। इसी बीच, एक दिन मेरे पति को भी बुखार आया। हालांकि उन्होंने दवा ली तो उनका बुखार ठीक हो गया।
अगले दिन मेरे पति की स्मैल और टेस्ट चला गया :
अगले दिन मेरे पति को जब खाने में कोई स्वाद नहीं आया और उनकी सूंघने की शक्ति भी खत्म हो गई तो उन्हें शक हुआ। इस पर उन्होंने फौरन पास के ही अस्पताल में जाकर अपनी जांच करवाई। उन्होंने मुझसे फिर कहा कि चलो जांच करवा लेते हैं, लेकिन मैंने बेहद कमजोरी और थकान की बात कहते हुए टाल दिया। हालांकि, मुझे बुखार और कमजोरी भले ही थी लेकिन खाने में स्वाद और गंध आ रही थी। इसलिए मन ही मन ये भी लग रहा था कि ये कोरोना नहीं हो सकता, क्योंकि उसमें तो टेस्ट और स्मैल चली जाती है। चूंकि मेरे पति को टेस्ट और स्मैल आना बंद हो गई, इसलिए उन्होंने फौरन खुद को आइसोलेट कर लिया। इस तरह एक और दिन बीत गया।
आखिर कहां हुई चूक... और वायरस को मिल गया हावी होने का मौका
अगले दिन मेरी सांस और ज्यादा फूलने लगी और इतनी थकान थी कि बिस्तर से उठा भी नहीं जा रहा था। ऐसे में मेरे पति ने फौरन प्राइवेट लैब से कोरोना जांच करने वाले को बुलवाया और घर पर ही मैंने जांच के सैम्पल दिए। चूंकि, उसी वक्त मेरे मायके में मम्मी और घर के दूसरे लोगों को टाइफाइड की शिकायत हुई थी और उनके लक्षण काफी कुछ मेरी तरह ही थे। इसलिए मुझे लगा कि मुझे भी यही हुआ है। इस पर मैंने रात को टाइफाइड की जांच भी कराई। अगले दिन सुबह रिपोर्ट मिली, जिसमें टाइफाइड निकला। अब मुझे पक्का यकीन हो गया कि मुझे कोरोना नहीं है। लेकिन दिन-ब-दिन कमजोरी और सांस फूलने से मेरी हालत बिगड़ती जा रही थी।
5 दिन यूं ही बिता दिए और आ गई हास्पिटल में भर्ती करने की नौबत...
वायरल फीवर के भ्रम और कोरोना से जांच के डर से मैंने 5 दिन लापरवाही में घर पर ही बिता दिए। शनिवार दोपहर से जब मेरी तबीयत और ज्यादा बिगड़ने लगी तो पति ने ऑक्सीमीटर से ऑक्सीजन लेवल चेक किया। हालांकि तब तक मेरा ऑक्सीजन सैचुरेशन 94 था, जो कि खतरे की घंटी का संकेत था। इसके बाद मेरे पति ने फैसला किया कि हॉस्पिटल में भर्ती कराना पड़ेगा। हम घर के करीब ही एक अस्पताल में दिखाने पहुंचे। डॉक्टर को रिपोर्ट दिखाई तो उसने टाइफाइड को देखते हुए 3 दिन के लिए भर्ती करने को कहा। इसके बाद कोरोना का एंटीजन टेस्ट किया, जो नेगेटिव था। फाइनली मुझे 18 अप्रैल को एडमिट कर लिया गया। कई एंटी बायोटिक और बॉटल चढ़ीं और ऐसा लगा कि हालत कुछ ठीक हो रही है।
फिर आई कभी न भूलने वाली वो तारीख...19 अप्रैल :
19 अप्रैल को भी मेरी सांस फूलना बंद नहीं हुई। थोड़ी-थोड़ी देर में गला सूख रहा था और बार-बार प्यास लगती थी। मेरे पति ने नर्स को बोल रखा था कि हर घंटे ऑक्सीजन लेवल चेक करते रहना। इसके साथ ही उनके पास अपना भी ऑक्सीमीटर था। दोपहर 2 बजे के बाद अचानक मेरा ऑक्सीजन सेचुरेशन 91-92 हो गया और सांस लेने में और ज्यादा तकलीफ बढ़ गई। इस पर मेरे पति ने अस्पताल प्रबंधन से बात की और पूछा कि आपके यहां ऑक्सीजन बेड उपलब्ध हैं क्या? अस्पताल प्रबंधन ने हाथ खड़े कर दिए और कहा कि हमारे यहां 8 बेड हैं और सब फुल हैं।
जब डॉक्टर की बात सुन खिसक गई पैरों तले जमीन...
अस्पताल ने जैसे ही ऑक्सीजन बेड के लिए मना किया...ये सुनते ही मेरे पैरों तले से जमीन खिसक गई। मैंने सोचा अब क्या करूं, कहां जाऊं...ऊपर से सांस भी उखड़ती जा रही थी। मेरी हालत लगातार खराब होती जा रही थी। ये देख अस्पताल वालों ने कह दिया कि इनका HRCT करवा लो। इस पर मेरे पति ने पूछा कि आपके यहां हो जाएगा, तो अस्पताल ने कहा- नहीं, बाहर जाकर करवाना पड़ेगा। इसके बाद मुझे फौरन HRCT के लिए लेकर भागे। उस दिन इस जांच के लिए डायग्नोस्टिक सेंटरों में वेटिंग थी। एक...दो...तीन...चार। इस तरह कई सेंटरों में जाकर देखा लेकिन कहीं भी जांच नहीं हो पा रही थी। 3 घंटे भटकने के बाद शाम करीब 6 बजे एक सेंटर ने कहा-1 घंटा लगेगा लेकिन रिपोर्ट कल तक मिलेगी। इसके साथ ही उसने कहा कि मैं फिल्म देखकर इन्फेक्शन लेवल का अंदाज बता दूंगा।
ऑक्सीजन लेवल देख मैं डर गई, पर असल मुसीबत तो अभी आनी बाकी थी :
किसी तरह घंटेभर बाद सीटी स्कैन हुआ और डॉक्टर ने कहा कि इन्हें तत्काल ऑक्सीजन बेड पर शिफ्ट करना पड़ेगा। उस वक्त मेरा ऑक्सीजन लेवल 89 तक पहुंच चुका था। ऑक्सीजन लेवल देखकर मैं बहुत ज्यादा घबरा गई थी। लेकिन असली परीक्षा और मुसीबत तो अभी आना बाकी थी। इसके बाद शुरू हुई अस्पतालों में ऑक्सीजन बेड की तलाश। मेरे पति ने अपने संपर्कों से एक के बाद एक शहर भर के करीब 40 से 50 अस्पतालों में फोन लगाया, लेकिन सभी से एक ही जवाब मिलता- बेड नहीं है। अब तक रात के करीब 8 बज चुके थे। मेरे पति के अलावा मेरे ससुर, देवर और बाकी सगे-संबंधी भी अपने-अपने कॉन्टैक्ट के जरिए किसी भी तरह एक बेड के लिए जद्दोजहद कर रहे थे।
किस मरीज को हटाकर आपके मरीज को ऑक्सीजन बेड दे दें :
सभी ने मिलकर कई मंत्रियों, पत्रकारों और रसूखवाले लोगों से बात की, लेकिन हर एक का यही जवाब होता था कि आप ही बताएं किस मरीज को हटाकर आपके मरीज को ऑक्सीजन बेड दे दें। कुछेक ने कहा कि किसी तरह ऑक्सीजन सिलेंडर जुगाड़ कर लो और आज रात घर पर ही रखो, फिर कल सुबह देखते हैं। तमाम बड़े लोगों से ना-ना सुनकर अब मेरी भी हिम्मत जवाब देने लगी थी...ऊपर से ऑक्सीजन लेवल भी अब 88 तक पहुंच गया था। फिर भी हम एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भटकते रहे और सभी जगह से सिर्फ निराशा ही हाथ लगी। शहरभर के 25 से ज्यादा अस्पतालों के चक्कर लगाते-लगाते अब रात के 12 बज चुके थे, लेकिन अब भी हमारी तलाश खत्म नहीं हुई थी।
फिर मेरे लिए देवदूत बनकर आई मेरी पर्सनल डॉक्टर :
सभी लोग अपनी-अपनी पहुंच के हिसाब से ऑक्सीजन बेड के लिए फोन पर फोन लगाए जा रहे थे। इसी बीच, मेरा दिमाग की घंटी बजी और मैंने भी सोचा कि क्यों न अपनी डॉक्टर मैडम (जिन्हें मैं पहले से दिखाती थी) से बात कर उन्हें अपनी तबीयत के बारे में बता दूं। इसके बाद मैंने रात 12 बजे उन्हें फोन लगाया तो उन्होंने सिर्फ 1 घंटी में मेरा फोन उठा लिया। मैंने उनसे बात कर अपनी समस्या बताई, लेकिन मेरे मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी। इस पर मैडम ने कहा कि अपने पति से बात कराओ। फिर मेरे पति ने मेरी हालत और ऑक्सीजन बेड न मिलने की बात बताई। इस पर उन्होंने कहा कि आप पेशेंट की पूरी डिटेल मुझे वॉट्सएप कीजिए, मैं देखती हूं।
रात के 1 बज चुके थे और मेरी सांसे उखड़ती जा रही थीं :
चूंकि मैडम खुद डॉक्टर हैं और उनके शहर के कई बड़े डॉक्टरों से संपर्क हैं, इसलिए उन्होंने भी शहरभर के अस्पतालों में बेड के लिए बात की। लेकिन चिरायु से लेकर बसंल और जेके हॉस्पिटल तक कहीं भी ऑक्सीजन बेड खाली नहीं था। इस पर मैडम ने अपने पापा (शहर के बड़े डॉक्टर) से बात की और कहा कि मेरी एक पेशेंट है, उसे इमरजेंसी में 1 ऑक्सीजन बेड चाहिए। फिर उन्होंने भी कई जगह बात की लेकिन रात 1 बजे तक कहीं भी जगह नहीं मिल पाई।
तभी अचानक आया उम्मीदभरा कॉल और लगा जैसे नई जिंदगी मिल गई हो :
अब तक हम निराश होकर नर्मदा अस्पताल के बाहर उम्मीद की निगाहों से देख रहे थे कि तभी डॉक्टर मैडम का फोन आया। उन्होंने मेरे पति से पूछा- आप लोग अभी कहां हैं? इस पर हमने बताया कि हम हबीबगंज स्टेशन के पास एक अस्पताल के बाहर खड़े हैं। इस पर उन्होंने कहा- आप फौरन पिपलानी चले जाइए, वहां के एक अस्पताल में हमारी बात हो गई है और ऑक्सीजन बेड खाली है। लेकिन जल्दी कीजिए, क्योंकि अस्पतालों में पेशेंट की लाइन लगी हुई है और वो कभी भी भर सकता है। इसके बाद हम तेजी से वहां से निकले और अस्पताल पहुंचे। अब तक रात के करीब 2 बज चुके थे। करीब 8 घंटे की मशक्कत के बाद आखिरकार मुझे ऑक्सीजन वाला बेड मिला, लेकिन तब तक मेरा सेचुरेशन 86 पहुंच गया था।
लेकिन मुसीबत यहीं खत्म होने वाली कहां थी :
किसी तरह मुझे 1 घंटे तक नॉर्मल ऑक्सीजन बेड पर रखने के बाद डॉक्टर्स ने फैसला किया कि इन्हें ICU में शिफ्ट किया जाएगा। इस तरह रात करीब साढ़े 3 बजे मुझे आईसीयू में ले जाया गया और इलाज शुरू हुआ। अगले दिन डॉक्टर ने मेरे पति को बुलाया और एक पर्ची थमाते हुए कहा- 6 रेमेडेसिविर इंजेक्शन का इंतजाम करना पड़ेगा। इसके बाद एक बार फिर इस इंजेक्शन के लिए मारामारी शुरू हुई। कई जगह फोन लगाए लेकिन कहीं भी नहीं मिल रहा था। कुछ लोगों से पता चला कि ये इंजेक्शन तो सरकार अब खुद अस्पतालों में भर्ती मरीजों के हिसाब से दे रही है। फिर हमने अस्पताल प्रबंधन को पूरी बात बताई। आखिरकार रात करीब 8 बजे किसी तरह सिर्फ 2 इंजेक्शनों का इंतजाम हुआ वो भी कीमत से 4 गुना पैसे चुकाने के बाद।
इधर मैं अस्पताल में थी, उधर घर में बाकी सब लोग बीमार थे :
इधर, मैं अस्पताल में थी और मेरी सेवा में मेरे पति और देवर लगे थे। लेकिन दूसरी तरफ मेरे घर में सास-ससुर से लेकर देवर-देवरानी तक सभी की तबीयत खराब थी। कोरोना सभी को अपनी चपेट में ले चुका था। सभी में कोरोना का कोई न कोई लक्षण था। किसी को बुखार था तो किसी को सर्दी-खांसी और वीकनेस। वहीं मेरे पति तो पहले से ही कोरोना के लक्षणों से जूझ रहे थे, लेकिन चाहकर भी वो आराम नहीं कर सकते थे। इसलिए अब मुझे अपने साथ-साथ बाकी लोगों की भी चिंता सताने लगी। इसी बीच अगले दिन मेरी RTPCR रिपोर्ट भी आ गई, जो कि पॉजिटिव थी। अब मैं अपनी लापरवाही पर पछता रही थी और खुद को मन ही मन कोस रही थी।
पति ने बढ़ाया हौसला...तो लगा कि अब मैं रिकवर हो जाऊंगी :
आईसीयू में 2 दिन बीत चुके थे और इस दौरान मेरे पति बीच-बीच में आकर मेरा ऑक्सीजन लेवल देखकर मुझे हौसला दे रहे थे। उनके हौसले से मेरे अंदर भी एक नई ताकत आ जाती थी और लगता था कि अब जल्द यहां से ठीक होकर घर लौट जाऊंगी। लेकिन इसी बीच, मेरे बगल वाले बेड पर आए एक मरीज, जो अच्छे भले थे और मुझसे बातें करते थे...अचानक उनकी तबीयत बिगड़ गई। ये देख मैं बहुत घबरा गई। उनका ऑक्सीजन लेवल 80 से अचानक 55-60 तक पहुंच गया। यहां तक कि उन्हें वेंटिलेटर में शिफ्ट करना पड़ा। लेकिन करीब एक घंटे बाद उनकी मौत हो गई। अपने बगल में इस डरावने वाकये को देख मैं बहुत ज्यादा डर गई।
एक के बाद एक होने लगीं मौतें तो मेरे हाथ-पैर कांपने लगे :
किसी तरह मेरे डर को दूर करने के लिए पति ने मुझे समझाया और हौसला बढ़ाया। इसके साथ ही मैंने अपनी मां और घरवालों से बात की तो थोड़ी मजबूती मिली। लेकिन अगले दिन मेरे बेड के दूसरे साइड एक 55-60 साल की महिला को लाया गया। जब वो आईं तो अच्छी-भली लग रही थीं, लेकिन अगले ही दिन अचानक से उनकी तबीयत बिगड़ने लगी और ऑक्सीजन लेवल एकदम नीचे 47 तक पहुंच गया। आईसीयू में डॉक्टरों और नर्सों की हड़बड़ाहट देखकर मुझे ऐसा लगता था, जैसे मेरे साथ भी ऐसा ही होनेवाला है। ये देख मैं जोर-जोर से रोने और चिल्लाने लगी। इस पर वहां मौजूद डॉक्टर और नर्सों ने कहा- तुम क्यों रो रही हो, तुम्हारा तो ऑक्सीजन लेवल अच्छा है, रिकवरी भी ठीक है। इस पर मैंने कहा- जब सबकुछ ठीक है तो मुझे डिस्चार्ज क्यों नहीं करते?
मैंने पति को फोन लगाया और कहा- मुझे यहां से हटाओ, वरना नहीं बचूंगी :
मैं अपने आसपास अच्छे-भले लोगों की अचानक हो रही मौतें देखकर बेहद डर गई थी। खौफ में मुझे न तो रात को नींद आती थी और न दिन में सोती थी। ऊपर से स्टेरॉइड, दवाओं और चिंता में मेरा शुगर लेवल भी बढ़ गया था। लेकिन मैंने सबकुछ दरकिनार करते हुए पति से कहा कि मुझे हर हाल में यहां से घर ले चलो, वरना मैं यहां से कूद जाऊंगी। मेरे हाथ-पैर कांप रहे हैं। यहां कोई जिंदा नहीं बच रहा है। मेरे सामने कई लोग मर चुके हैं। मैं अगर अब एक भी दिन यहां रही तो जिंदा नहीं बचूंगी। मेरे अंदर मौत का खौफ समा गया था। हालांकि उस वक्त तक मेरा ऑक्सीजन लेवल 96-97 हो गया था और रिकवरी भी ठीक थी।
डॉक्टर से बात की तो बोले- आप ले जाओ, लेकिन अपनी रिस्क पर :
मेरे पति ने जब डॉक्टर से बात की तो उनका कहना था कि पेशेंट को ठीक होने में कम से कम 14 दिन का वक्त लगता है। लेकिन अगर आपको डिस्चार्ज करवाना है तो ले जाइए लेकिन अपने रिस्क पर। अगर पेशेंट को दोबारा दिक्कत हुई तो हम जवाबदार नहीं होंगे। इस पर मेरे पति ने कहा कि किसी तरह तो ऑक्सीजन बेड मिला है और अब अगर दोबारा कोई प्रॉब्लम आई तो फिर कहां भटकेंगे? मैंने कहा- मैं बिल्कुल ठीक हूं और घर में बहुत जल्दी रिकवर हो जाऊंगी, लेकिन यहां रही तो जरूर नहीं बचूंगी। फिर मेरे पति ने घरवालों और करीबियों से बात की तो उनका भी यही कहना था कि जरूरी इंजेक्शन लग चुके हैं, ऑक्सीजन लेवल भी ठीक है और 8 दिन का वक्त हो चुका है। अगर पेशेंट डर रहा है तो ज्यादा दिक्कत हो सकती है, डिस्चार्ज करवा लो। इसके बाद मुझे अस्पताल से छुट्टी मिली और 8 दिन बाद मैं घर लौटी। घर आने के बाद किसी तरह मेरी जान में जान आई। सभी मुझे यही कहते हैं कि तुम्हारा दूसरा जन्म हुआ है।
घर तो आ गई लेकिन अब एक नई समस्या सामने थी :
किसी तरह मुझे अस्पताल के उस डरावने आईसीयू से छुटकारा तो मिल गया, लेकिन अब एक नई मुसीबत सामने थी। मेरा ब्लड शुगर 350 तक पहुंच गया था। डॉक्टर ने 5 दिन की दवाइयां और इंसुलिन के इंजेक्शन दिए थे। चूंकि कोरोना आम लोगों के साथ ही डॉक्टरों के दिल में भी इतनी दहशत भर चुका था कि कोई भी इंजेक्शन लगाने के लिए घर आने को तैयार नहीं था। बड़ी मुश्किल से एक जान-पहचान वाले क्लिनिक से डॉक्टर आया, लेकिन इस शर्त पर कि सिर्फ एक बार इंजेक्शन लगाऊंगा, बार-बार नहीं आ सकता। इसके बाद हम खुद ही मशीन से ब्लड शुगर चेक करने और इंजेक्शन लगाने लगे।
योग-प्राणायाम के साथ ही प्रकृति को निहारने से मिलने लगा सुकून :
घर आने के बाद भी मुझे चलने-फिरने में काफी थकान लगती थी। लेकिन फिर भी मैं सुबह थोड़ी देर योगा और प्राणायाम करने लगी। इसके साथ ही कुछ देर के लिए घर की गैलरी में टहलने और पेड़-पौधों को पानी देकर अच्छा लगता था। घर की गैलरी में ताजी और ठंडी हवा के साथ पेड़-पौधों को निहारना एक अलग ही सुकून देता था। गैलरी में लगे मनी प्लांट की पत्तियों पर स्प्रे से पानी डालना और घर के बाहर चिड़ियों और घर लौटते परिंदों के चहचहाने की आवाज जैसे शरीर में एक नई ताजगी भर देती थी। घर आने के बाद अब मेरा ऑक्सीजन लेवल 96-97 रहने लगा।
कुछ दिनों के लिए टीवी, फेसबुक छोड़ प्रकृति से नाता जोड़ लें :
कोरोना जैसी जानलेवा बीमारी को बिल्कुल भी हल्के में ना लें। जैसे ही इसका कोई भी लक्षण सामने आए, फौरन अपनी जांच कराएं, डॉक्टर से बात करें और जरूरी एहितयात बरतें। इसके साथ ही इस बीमारी से तभी लड़ा जा सकता है, जब आप पूरी तरह पॉजिटिव रहें। कुछ दिनों के लिए टीवी, फेसबुक और इंटरनेट को छोड़कर प्रकृति को करीब से महसूस करें। ये सारी चीजें आपके अंदर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करेंगी और आप खुद-ब-खुद बेहतर अनुभव करेंगे। बीमारी से ज्यादा कहीं बड़ा उसका डर है और हमें इस पर चोट करने की जरूरत है...कोरोना अपने आप खत्म हो जाएगा।
Asianet News का विनम्र अनुरोधः आइए साथ मिलकर कोरोना को हराएं, जिंदगी को जिताएं...जब भी घर से बाहर निकलें माॅस्क जरूर पहनें, हाथों को सैनिटाइज करते रहें, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। वैक्सीन लगवाएं। हमसब मिलकर कोरोना के खिलाफ जंग जीतेंगे और कोविड चेन को तोडेंगे।#ANCares #IndiaFightsCorona