सार

रेपो रेट (Repo Rate) और रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate) की मदद से RBI महंगाई को काबू में रखती है। इससे बाजार में नगदी के फ्लो को नियंत्रित किया जाता है।

नई दिल्ली। RBI (Reserve Bank of India) की MPC (Monetary Policy Committee) ने रेपो रेट 6.5% पर बनाए रखा है। जब भी रेपो रेट में बदलाव होने या न होने की खबर आती है कई लोगों के मन में सवाल उठता है कि आखिर ये है क्या? इसके साथ ही रिवर्स रेपो रेट क्या है? यह प्रश्न भी उठता है। आइए इसने जवाब आसान शब्दों में समझते हैं।

RBI का काम महंगाई को कंट्रोल में रखना है। इसके लिए यह कई टूल्स का इस्तेमाल करता है। इनमें दो मुख्य टूल रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट हैं। इससे तय होता है कि बाजार में कितनी नगदी का फ्लो होगा। इससे महंगाई कम करने में मदद मिलती है।

क्या है रेपो रेट?

रेपो रेट रिपर्चेज रेट का शॉर्ट फॉर्म है। यह वह ब्याज दर है जिस पर बैंक कम समय के लिए (आमतौर पर एक रात) आरबीआई से पैसा उधार लेते हैं। जब बैंकों को नकदी की कमी का सामना करना पड़ता है तो वे सरकारी प्रतिभूतियों को गिरवी रखकर आरबीआई से उधार लेते हैं।

कैसे काम करता है रेपो रेट?

बैंक RBI को सरकारी प्रतिभूतियां बेचते हैं, जिसके बदले उन्हें पैसे मिलते हैं। RBI प्रतिभूतियां अपने पास रखती है। बाद में बैंक फिर से इन्हें खरीद लेते हैं। इसके लिए उन्हें उधार लिया गया पैसा और रेपो रेट के अनुसार ब्याज चुकाना होता है। इस समय रेपो रेट 6.5% है। इसका मतलब है कि कोई बैंक RBI से पैसे लेती है तो उसे 6.5% सालाना ब्याज देना होगा।

रेपो रेट का बाजार पर क्या होता है असर?

रेपो रेट से यह तय होता है कि बैंक अपने ग्राहकों को किस दर पर कर्ज देगी। अगर बैंक को खुद RBI से 6.5% की दर पर कर्ज लेना होता है तो वह ग्राहकों को इससे अधिक पर ही पैसे देगी। रेपो रेट जितना अधिक होगा, बैंक उतने अधिक ब्याज दर पर कर्ज बांटेगी। अधिक ब्याज दर होने से बाजार से कर्ज की मांग घट जाती है। इससे नगदी का फ्लो घटता है और महंगाई पर लगाम लगती है। इसका खराब असर अर्थव्यवस्था की वृद्धि पर पड़ता है। दूसरी ओर अगर रेपो रेट कम होता है तो बैंक के लिए उधार लेने की लागत घटती है। बैंक अधिक कर्ज देने के लिए प्रोत्साहित होते हैं। इससे बाजार में नगदी का फ्लो बढ़ता है और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है।

रिवर्स रेपो रेट क्या है?

रिवर्स रेपो रेट वह ब्याज दर है जिस पर बैंक RBI को कम समय के लिए पैसा उधार देते हैं। अगर बैंकिंग सिस्टम में नगदी अधिक हो गई हो तो RBI इसे कम करने के लिए बैंकों से उधार लेती है। पैसे लौटाने के समय बैंकों को रिवर्स रेपो रेट के अनुसार ब्याज दिया जाता है।

कैसे काम करता है रिवर्स रेपो रेट?

बैंक आरबीआई को सरकारी प्रतिभूतियां खरीदकर पैसे उधार देते हैं। RBI पैसे अपने पास रखती है। बाद में बैंकों को रिवर्स रेपो दर के अनुसार ब्याज सहित पैसे लौटाए जाते हैं। उनसे सरकारी प्रतिभूतियां वापस खरीद ली जाती है।

क्या होता है रिवर्स रेपो रेट का असर?

रिवर्स रेपो रेट अधिक होने पर बैंक अपने अतिरिक्त पैसे आरबीआई के पास जमा करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं। वे बाजार में कर्ज कम बांटते हैं। इससे मुद्रास्फीति पर अंकुश लगता है। दूसरी ओर अगर रिवर्स रेपो रेट कम हो तो बैंक आरबीआई को उधार देने की जगह बाजार में कर्ज बांटना पसंद करते हैं। इससे विकास को प्रोत्साहन मिलता है।

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रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में क्या है अंदर

रेपो रेट वह ब्याज दर है जिसपर बैंक RBI से कर्ज लेते हैं। वहीं, रिवर्स रेपो रेट वह ब्याज दर है जिसपर RBI बैंकों से कर्ज लेती है। रेपो दर का इस्तेमाल बाजार में नगदी बढ़ाने के लिए किया जाता है, जबकि रिवर्स रेपो दर का उपयोग बाजार से अतिरिक्त नगदी को कम करने के लिए होता है।

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