सार

राजेश सरियाम ने गोंडी गाने की धुन पर दो से 10 तक का पहाड़ा लय बद्ध किया है। आदिवासी अंचल के ग्रामीण बच्चे इस धुन को खूब पसंद कर रहे हैं और मन से पहाड़ा सीख रहे हैं। इससे पहले जो बच्चे पहाड़ा याद करने से कतराते थे, वे अब डांस के जरिए मस्ती से इसे अपना रहे हैं।

करियर डेस्क : अभी तक आपने पढ़ाई का कई अनोखा तरीका देखा होगा लेकिन आज हम जो आपको बताने जा रहे हैं, वैसा शायद ही आपने कभी कल्पना की होगी। इस स्कूल में डांस पर बच्चे गिनती और पहाड़ा सिखते हैं और टीचर भी उनके साथ थिरकती हैं। बच्चों को सिखाने का यह प्रयोग हो रहा है मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के बैतूल (Betul) के केलापुर गांव में.. यहां के शासकीय मिडिल स्कूल में 78 बच्चे पढ़ते हैं। स्कूल टाइम में म्यूजिक पर ये पढ़ाई करते हैं। मस्ती की पाठशाला ऐसी होती है कि बच्चे गोंडी डांस के स्टेप पर दो एकम दो, दो दुनी चार पढ़ रहे हैं। स्कूल में हर दिन इसी अंदाज में पढ़ाई होती है। 

गाने की धुन पर पहाड़ा
बच्चों को अनोखे अंदाजा में पढ़ाने का यह प्रयोग बैतूल में शिक्षक रहे समाजसेवी और संगीतज्ञ राजेश सरियाम ने किया है। राजेश ने 10 तक के पहाड़े को गाने पर तैयार किया है। आदिवासी जनजाति गोंडी के डांस स्टेप भी उन्होंने ही बनाए है। स्कूल में बच्चे खेल-खेल में पहाड़ा सीखते हैं। राजेश की बात करें तो वे बैतूल में प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए मुफ्त कोचिंग चलाते हैं। सोशल मीडिया पर उनका म्यूजिकल अकाउंट और एक ग्रुप भी है। इस ग्रुप में वे अक्सर गोंडी भाषा के गाने गाकर अपलोड किया करते हैं। कोचिंग में भी म्यूजिक से ही पढ़ाई कराते हैं। उनका यह प्रयोग लोगों को काफी पसंद आ रहा है।

20 तक पहाड़ा भी जल्द होगा तैयार
राजेश सरियाम का कहना है कि अभी सिर्फ 10 तक के पहाड़े को ही म्यूजिक से जोड़ा है। जल्द ही 20 तक के पहाड़े को भी इसी तरह से बनाएंगे। बता दें कि इस स्कूल में कुल तीन शिक्षक हैं। यहां के प्राइमरी और मिडिल स्कूल में इसी तरह की एक्टिविटी बेस्ड पढ़ाई कराई जा रही है। स्कूल की टीचर संध्या रघुवंशी और रजनी इस प्रयोग को आगे बढ़ा रही हैं। उनका कहना है कि बच्चों को एक्टिविटीज के जरिए अगर कुछ सिखाया जाता है तो वे उसे आसानी से सीखते हैं। बच्चों के एक्सप्रेशन, आर्ट्स और म्यूजिक और डांसिंग जैसी चीजों से कुछ न कुछ सिखाने की कोशिश है। ताकि उनकी लर्निंग कैपसिटी अच्छी हो सके।

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