Piyush Pandey: पीयूष पांडे, वो शख्स, जिन्होंने भारत को दिल से बोलना सिखाया। ‘अबकी बार मोदी सरकार’, ‘कुछ खास है’ और ‘फेविकोल का जोड़’ जैसे विज्ञापनों के पीछे की कहानी जानिए कैसे टी-टेस्टर से शुरू हुआ उनका सफर उन्हें भारत का सबसे बड़ा एडमैन बना गया।

Piyush Pandey Biography: भारत के मशहूर विज्ञापन गुरु पीयूष पांडे नहीं रहे। गुरुवार को उनके निधन की खबर ने पूरे देश को भावुक कर दिया। वो सिर्फ एक एडमैन (Adman) नहीं थे, बल्कि ऐसे कहानीकार थे जिन्होंने रोजमर्रा की जिंदगी को शब्दों में ढालकर हर दिल में जगह बना ली। चार दशक से भी ज्यादा लंबे करियर में उनका नाम Ogilvy India से इस तरह जुड़ा रहा जैसे कोई पहचान, जो भावनाओं, रचनात्मकता और भारत की असल आवाज से गूंजती थी। उनकी झिलमिलाती आंखें, गूंजती हंसी और घनी मूंछें, सब उनके व्यक्तित्व का हिस्सा थीं। पियूष पांडे ने सिर्फ विज्ञापन नहीं बनाए, उन्होंने भावनाओं की कहानियां लिखीं। उनके विज्ञापन चाय की दुकानों से लेकर क्रिकेट मैदानों और घरों तक गूंजे। उन्होंने भारत को उसकी ही भाषा में बोलना सिखाया।

टी-टेस्टर से एडवर्टाइजिंग के लीजेंड तक पीयूष पांडे का सफर

कभी क्रिकेट, कभी चाय चखने का काम, तो कभी कंस्ट्रक्शन साइट, करियर में पीयूष पांडे ने सब आजमाया। फिर 1982 में 27 साल की उम्र में उन्होंने Ogilvy and Mather (अब Ogilvy India) में कदम रखा। वो वक्त अंग्रेजी बोलने वाले विज्ञापन गुरुओं का था, लेकिन पियूष ने अपने देसी अंदाज में इस दुनिया को बदल दिया। उन्होंने सोचा, ‘अगर भारत हिंदी में सोचता है, तो उसके विज्ञापन भी उसी भाषा में सांस लें।’ फिर शुरू हुई वो कहानी जिसने भारत के विज्ञापन जगत का चेहरा बदल दिया। Fevicol का ‘मजबूत जोड़ है’, Cadbury Dairy Milk का ‘कुछ खास है’ और Asian Paints का ‘हर घर कुछ कहता है’, ये सब सिर्फ लाइनें नहीं, बल्कि भावनाओं की पहचान बन गईं।

दुनिया के सबसे चर्चित एडमैन बने पीयूष पांडे

एक सहयोगी ने कहा था, “उन्होंने सिर्फ विज्ञापन की भाषा नहीं बदली, उसका दिल बदल दिया।” ‘टीम के भरोसे खेलना ही असली जीत है’ भले ही पीयूष पांडे दुनिया के सबसे चर्चित एडमैन बने, लेकिन उन्होंने कभी खुद को स्टार नहीं कहा। वो हमेशा कहते थे, विज्ञापन क्रिकेट की तरह है। ब्रायन लारा भी अकेले मैच नहीं जिता सकता, फिर मैं कौन हूं? वो बॉस से ज्यादा मेंटॉर थे। ऑफिस में कॉफी टेबल पर, नैपकिन पर बने आइडिया को वो राष्ट्रीय कैंपेन में बदल देते थे। उनकी अगुवाई में Ogilvy India ने कई अंतरराष्ट्रीय सम्मान जीते। साल 2018 में, वो और उनके भाई प्रसून पांडे पहले एशियाई बने जिन्होंने Cannes Lions का Lion of St Mark (लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड) जीता।

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मशहूर विज्ञापन गुरु पीयूष पांडे की दिल छूने वाली सोच, जिसने भारत को जोड़ा

पीयूष पांडे का मानना था, महान विज्ञापन कोई ट्रिक नहीं होता, वो दिल से निकली बात होती है। उनका कहना था कि कोई भी विज्ञापन देखकर ये नहीं कहता, वाह, कैसे बनाया!’ वो बस मुस्कुरा कर कहता है, मुझे अच्छा लगा। इसी सोच ने उनके हर काम को खास बनाया। चाहे वो Fevicol की मस्ती भरी हंसी हो, Cadbury का मीठा गर्व, या फिर 2014 का ऐतिहासिक राजनीतिक नारा, ‘अबकी बार, मोदी सरकार’। उनके शब्दों ने भारत की भावना को आवाज दी।

एड गुरु पीयूष पांडे की मशहूर टैगलाइनें जो आज भी जिंदा हैं

  • फेविकोल: “फेविकोल का जोड़ - मजबूर जोड़ है”
  • कैडबरी डेयरी मिल्क: “कुछ खास है जिंदगी में”
  • एशियन पेंट्स: “हर घर कुछ कहता है”
  • भाजपा 2014 अभियान: “अबकी बार, मोदी सरकार”
  • फेविक्विक: “तोड़ो नहीं, जोड़ो”
  • तालाब: "गुगली वूगली वूश"

हर लाइन सिर्फ मार्केटिंग नहीं थी, वो भावनाओं, रिश्तों और भरोसे की कहानी थी।

पीयूष पांडे वो शख्स जो हमेशा जिंदा रहेगा

2023 में जब उन्होंने Ogilvy India के एक्जीक्यूटिव चेयरमैन पद से कदम पीछे खींचे, तब भी उनकी मौजूदगी हर स्क्रिप्ट, हर लाइन, हर नए क्रिएटिव में महसूस होती रही। आज पियूष पांडे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके बनाए शब्द, मुस्कानें और विज्ञापन भारत की हर पीढ़ी को छूते रहेंगे। वो सच में वो इंसान थे, जिन्होंने भारत को दिल से बोलना सिखाया।

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