What is Bhajan Clubbing: भारत में युवाओं के बीच अब एक नया ट्रेंड वायरल हो रहा है, भजन क्लबिंग का। Gen Z अब क्लबों में डीजे नहीं, भजन की बीट्स पर झूम रही है। जानिए भजन क्लबिंग क्या है और कैसे बदल रहा है यंग जनरेशन का स्पिरिचुअल कनेक्शन।
Bhajan Clubbing: आज की युवा पीढ़ी यानी Gen Z को अगर आप सिर्फ EDM नाइट्स, पार्टियों और पब कल्चर से जोड़ते हैं, तो अब नजरिया बदलने का वक्त आ गया है। शहरों में एक नया ट्रेंड तेजी से वायरल हो रहा है ‘भजन क्लबिंग’ (Bhajan Clubbing)। यहां ना तो डीजे की धुनें हैं, ना ड्रिंक्स की ट्रे, बल्कि यहां भक्ति के सुरों में झूमती एक नई सोच है, जो आध्यात्मिकता को एक मॉडर्न अंदाज में पेश कर रही है। जानिए क्या है भजन क्लबिंग, कहां से शुरू हुआ यह ट्रेंड और क्या होता है इसमें।
भजन क्लबिंग क्या है?
भजन क्लबिंग दरअसल एक ऐसा स्पिरिचुअल और सोशल मूवमेंट है, जिसमें युवा मिलकर भजन गाते हैं, उन पर थिरकते हैं और दिव्य वाइब्स को एंजॉय करते हैं। लेकिन यह कोई पारंपरिक शांत पूजा-सत्संग नहीं होता बल्कि यह मॉडर्न जेम सेशन की तरह होता है, जहां कृष्ण गोविंद हरे मुरारी, राम राम जय राजा राम जैसे भजनों पर लोग हाथों से ताल देते हुए झूमते नजर आते हैं। कमरे में हल्की रोशनी, फेयरी लाइट्स, जमीन पर बिछे मेट्स और चारों ओर सकारात्मक एनर्जी, माहौल ऐसा होता है कि भक्ति भी महसूस होती है और रिदम भी।
कहां से शुरू हुआ ये ट्रेंड?
इस ट्रेंड की शुरुआत कुछ क्रिएटिव ग्रुप्स ने की, जिनमें सबसे चर्चित नाम है Backstage Siblings ग्रुप जो मुंबई और कोलकाता जैसे शहरों में ‘भजन क्लब नाइट्स’ आयोजित करता है, जहां युवा मिलकर पुराने भजनों को नए म्यूजिक बीट्स के साथ गाते हैं। सोशल मीडिया पर इन इवेंट्स के वीडियो जमकर वायरल हो रहे हैं। भीड़ में लोग भजन गा रहे हैं, हंस रहे हैं और भक्ति के साथ झूम रहे हैं।
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Gen Z को क्यों पसंद आ रही है भजन क्लबिंग
Gen Z एक ऐसी पीढ़ी है जो Spotify, Reels और बीट्स के जरिए खुद को एक्सप्रेस करती है। लेकिन अब वही म्यूजिक उन्हें आध्यात्मिक कनेक्शन दे रहा है। भजन क्लबिंग उनके लिए एक बैलेंस बनकर आई है, जहां वो अपने मॉडर्न लाइफस्टाइल को छोड़े बिना भी खुद को ग्राउंडेड और कनेक्टेड महसूस कर सकते हैं। यह भक्ति को आज के समय में फिट करने का नया तरीका है।
भजन क्लबिंग: युवाओं में भक्ति का नया अंदाज
भजन क्लबिंग ने साबित कर दिया है कि आध्यात्मिकता खत्म नहीं हो रही, बल्कि नए रूप में लौट रही है। आज की पीढ़ी मंदिर जाने या लंबे रिवाज निभाने की बजाय संगीत के जरिए भगवान से जुड़ना पसंद कर रही है।
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