World Teachers Day पर शिक्षा की असली भूमिका पर बहस तेज़ है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) सीखने की प्रक्रिया बदल रहा है। विश्वविद्यालय, छात्र और समाज कैसे इससे प्रभावित हो रहे हैं, यही भविष्य की सबसे बड़ी चुनौती है।
लेखक-हानी शेहादा। 5 अक्टूबर को पूरी दुनिया विश्व शिक्षक दिवस (World Teachers’ Day) मनाने की तैयारी कर रही है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि शिक्षक केवल ज्ञान देने वाले नहीं, बल्कि पीढ़ियों को सोचने, सवाल पूछने और कल्पना करने की क्षमता देने वाले होते हैं। लेकिन आज, जब हमें उनकी भूमिका का सम्मान करना चाहिए, तभी एक नई ताकत शिक्षा की दुनिया को बदल रही है — आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI)।
AI अब शिक्षा के दरवाज़े पर दस्तक नहीं दे रहा, बल्कि उसे पूरी तरह खोल चुका है। जो बदलाव हमें दशकों बाद देखने की उम्मीद थी, वह अब कुछ ही वर्षों, यहाँ तक कि महीनों में सामने आ रहा है। विश्वविद्यालय, जो लंबे समय तक ज्ञान के सबसे बड़े स्रोत और संरक्षक रहे, अब अपनी इस भूमिका को खोते हुए देख रहे हैं।
विश्वविद्यालय और AI का टकराव
यह विडंबना है कि वही विश्वविद्यालय जो छात्रों को भविष्य के लिए तैयार करने का दावा करते हैं, खुद इस तेज़ी से बदलते भविष्य के लिए तैयार नहीं हैं। यही सवाल खड़ा होता है कि आखिर विश्वविद्यालय का मूल उद्देश्य क्या था?
संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के 80वें अधिवेशन में भी यह विषय चर्चा का हिस्सा बना। 'Youth and AI: Risks, Opportunities, and Insights' जैसे पैनलों ने यह साफ किया कि शिक्षा जगत इस बदलाव को अपनाने में पीछे है।
शिक्षा का असली मकसद
स्कूल बच्चों को बुनियादी पढ़ाई-लिखाई, गणित और विज्ञान सिखाते हैं। लेकिन उच्च शिक्षा (Higher Education) हमेशा कुछ अलग और खास रही है। यह सिर्फ जानकारी देने के लिए नहीं, बल्कि दिमाग को चुनौती देने, आलोचनात्मक सोच सिखाने और कठिन समस्याओं को हल करने का अभ्यास कराने के लिए होती है।
अब यही अभ्यास खतरे में है। AI तुरंत उत्तर दे देता है, निबंध लिख देता है, जटिल सिद्धांतों को आसान बिंदुओं में बांट देता है। छात्र वह मेहनत और मानसिक संघर्ष नहीं कर रहे जो सोचने की क्षमता को मज़बूत बनाता है। जितना हम AI पर भरोसा करेंगे, उतना ही हमारी सोचने की शक्ति कमजोर होगी।
विश्वास का संकट: क्या AI पर भरोसा किया जा सकता है?
AI पूरी तरह निष्पक्ष नहीं है। यह उन्हीं आंकड़ों पर आधारित है जो पहले से मौजूद हैं और जिनमें समाज की पक्षपातपूर्ण झलक मिलती है। जब डेटा का बड़ा हिस्सा पश्चिमी देशों से आता है, तो वैश्विक दक्षिण (Global South) की आवाज़ कहाँ जाती है?
शरणार्थी शिविरों में छात्रों के लिए कभी-कभी AI ही एकमात्र शिक्षक होता है। लेकिन जो ज्ञान वे पाते हैं, वह अधूरा या पक्षपाती हो सकता है। कई बार AI आत्मविश्वास से उत्तर देता है, लेकिन वे गलत या सतही हो सकते हैं। शिक्षा का मूल सार- संदेह और गहराई से सोचने की आदत- धीरे-धीरे गायब हो रहा है।
उच्च शिक्षा पर खतरा और समाज पर असर
विश्वविद्यालय हमेशा से समाज के सोचने वाले नेताओं, वैज्ञानिकों, डॉक्टरों, न्यायाधीशों और कलाकारों को तैयार करते आए हैं। अगर वही शिक्षा सतही और मशीन-निर्भर हो गई, तो इसके दुष्परिणाम हर क्षेत्र पर पड़ेंगे।
- डॉक्टर मशीन पर अधिक भरोसा करेंगे
- न्यायाधीश AI लिखित तर्कों को बिना गहराई से जांचे मान लेंगे
- नीति-निर्माता मशीन आउटपुट तक सीमित हो जाएंगे
हाशिए पर खड़े युवाओं और शरणार्थियों के लिए खतरा और भी बड़ा है। एक तरफ AI उन्हें बिना वीज़ा या सीमाओं के उच्च शिक्षा तक पहुंच देता है। दूसरी तरफ यह उन्हें ऐसे ज्ञान ढांचे में बांध देता है जिसमें उनकी भाषा, संस्कृति और इतिहास की जगह नहीं होती।
विश्वविद्यालयों की भूमिका और ज़िम्मेदारी
अब समय है कि विश्वविद्यालय अपनी असली भूमिका को याद करें। उनका काम केवल जानकारी बाँटना नहीं, बल्कि सोचने और निर्णय लेने की क्षमता विकसित करना है।
- परीक्षाएं रटने की बजाय तर्कशक्ति और विश्लेषण को परखें
- निबंध सिर्फ सारांश न हों, बल्कि संकलन और आलोचना का माध्यम बनें
- छात्रों को सूचनाओं की जांच, पक्षपात पहचानने और स्रोतों को चुनौती देने की आदत डालें
- AI की नकल से परे मैदानी कार्य, प्रयोगशालाएँ, मौखिक प्रस्तुतियाँ और कला को महत्व दें
भविष्य हमारे हाथ में है
AI अब इंतज़ार नहीं करेगा। यह पहले से ही उच्च शिक्षा को बदल रहा है। असली सवाल यह है कि क्या हम इसे शिक्षा का अर्थ खोने देंगे या इसे गहराई बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करेंगे?
शिक्षा का मकसद सिर्फ उत्तर देना नहीं, बल्कि दिमाग को तैयार करना है ताकि वह ऐसे सवाल पूछ सके जिनका जवाब मशीनें नहीं दे सकतीं। अगर हम इसमें असफल रहे, तो हम न केवल विश्वविद्यालय खो देंगे, बल्कि इंसान होने का सार भी खो बैठेंगे।
विश्व शिक्षक दिवस हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि शिक्षा का भविष्य केवल तकनीक पर निर्भर नहीं होना चाहिए। AI एक साधन है, समाधान नहीं। असली चुनौती यह है कि हम युवा पीढ़ी को ऐसा दिमाग दें जो मशीनों से आगे सोच सके।
कौन हैं हानी शेहादा?
हानी शेहादा Education Above All Foundation’s Al Fakhoora Programme में रिजनल मैनेजर हैं। दुनिया भर से मिलने वाली मदद से वह ऐसे युवाओं को उच्च शिक्षा दिलाने के लिए काम करते हैं जिनका भविष्य युद्ध और अन्याय के कारण बाधित हो गया है।
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