सार
पत्नी को वापस लाने पति ने पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर सभी प्रयास किए। लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ी रही, जिसके बाद मामला फैमिली कोर्ट तक पहुंचा लेकिन वहां इसे नामंजूर कर लिया गया। फिर पति ने हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की।
बिलासपुर : छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बिलासपुर (Bilaspur) में पत्नी की मनमानी और जिद पर हाईकोर्ट ने जमकर फटकार लगाई है। दरअसल, शादी के तीन महीने ससुराल में रहने के बाद एक पत्नी अपने मायके चली गई थी। जब उसका पति उसे लेने गया तो उसने वापस आने से इनकार कर दिया। उसने कहा कि वह ससुराल वालों के साथ नहीं रह सकती। पति को उसके साथ मायके में ही रहना होगा। पहले तो मामला सामाजिक तरीके से ही सुलझाने का प्रयास हुआ लेकिन जब बात नहीं बनी तो अदालत में अर्जी लगानी पड़ी।
क्या है पूरा मामला
कोरबा (Korba) के शैलेंद्र चंद्रा की शादी 18 जून 2011 को सक्ती की भारती से हुई थी। शादी के तीन महीने तक तो सबकुछ ठीक रहा लेकिन उसके बाद दोनों के बीच झगड़ा होने लगा। फिर एक दिन उसकी पत्नी अपने मायके चली गई। उसके बाद पति उसे लेने पहुंचा तो उसने ससुराल आने से साफ-साफ मना कर दिया। उसने कहा कि वह पति के परिवार वालों के साथ नहीं रह सकती। पति से ये भी कहा कि वह वहीं मायके में ही उसके साथ रहे। कई बार समझाने के बाद वह किसी तरीके से ससुराल वापस लौटी, लेकिन वहां नहीं रहने की जिद पर अड़ी रही।
कुछ दिन बाद फिर मायके चली गई
कुछ महीनों तक इसको लेकर तकरार चलती रही। फिर 22 मार्च 2013 को वह अपने पिता के साथ मायके चली गई। 11 अप्रैल 2013 को पति ने उसे बताया कि मां की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए वापस लौट आओ लेकिन वह नहीं आई। पति अपने परिवार के सदस्यों और समाज के लोगों के साथ पत्नी को लाने गया, लेकिन फिर भी उसने लौटने से इनकार कर दिया। उसने पति पर दहेज प्रताड़ना का केस करने की भी धमकी दी। आखिरकार परेशान होकर पति ने फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी लगाई। यहां दोनों में समझौता करा दिया गया लेकिन बावजूद इसके वह ससुराल नहीं लौटी।
हाईकोर्ट की चौखट पर मामला
जब मामला हाईकोर्ट पहुंचा तो अदालत ने कोरबा फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए कहा कि कोर्ट ने आदेश जारी करने में बड़ी गलती की है। उच्च न्यायालय की जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस एनके चंद्रवंशी की बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि पति पर मायके में रहने के लिए दबाव बनाना क्रूरता की श्रेणी में आता है। इसलिए दोनों की तलाक की अर्जी मंजूर की जाती है।
सुप्रीम कोर्ट के किस फैसले का हवाला
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का हवाला दिया जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि भारतीय परिवार में शादी के बाद माता-पिता से अलग रहने की परंपरा नहीं है। बच्चे की परवरिश के साथ उसे योग्य बनाने वाले माता-पिता कभी नहीं चाहते कि उनका बेटा उनसे अलग रहे। स्थिति तब और भी अलग होती है जब परिवार में कमाने वाला सिर्फ वही हो। ऐसी स्थिति में पति पर अपने परिवार से अलग रहने का दबाव क्रूरता माना जाएगा।
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